
जब आदमी उम्रदराज़ हो जाता है
तो उसका जीवन
मुक्त हो जाता है समय और मौसमों की लय से
अंधेरा
कभी-कभी सीधे नीचे गिरता है आलिंगन में बंधे दो जनों के बीच
और गर्मियां अपने अंत पर पहुंच जाती हैं प्रेम के दौरान ही
जबकि प्रेम शरद में भी जारी रहता है
एक आदमी गुज़र जाता है अचानक ही बोलते-बोलते
और उसके शब्द बाक़ी रह जाते हैं दूसरे छोर पर
या फिर एक ही बरसात होती है
जो गिरती है
विदा लेते और विदा करते, दोनों तरह के लोगों पर
एक ही विचार भटकता है
शहरों और गांवों और कई मुल्कों में
और उस आदमी के दिमाग़ के भीतर भी
जो सफ़र कर रहा होता है
यह सब मिलकर एक अजीब-सी नृत्यलय बनाते हैं
लेकिन मुझे नहीं मालूम कि इसे कौन बजाता है और कौन लोग हैं वे
जो इस पर नाचते हैं
कुछ समय पहले
मुझे बहुत पहले गुज़र चुकी एक नन्हीं लड़की के साथ अपनी एक पुरानी फोटो मिली
हम एक साथ बैठे थे
बच्चों की तरह आपस में चिपके हुए
एक दीवार के सामने जहां एक फलदार पेड़ भी था
उसका एक हाथ मेरे कंधे पर था और दूसरा आज़ाद -
जो अब मुझे मृत्यु से अपनी ओर आता दीखता है
और मैं जानता था कि मृतकों की उम्मीदबस उनका अतीत है
जिसे ईश्वर ले चुका है !
०००
अनुवाद : ख़ाकसार का
तो उसका जीवन
मुक्त हो जाता है समय और मौसमों की लय से
अंधेरा
कभी-कभी सीधे नीचे गिरता है आलिंगन में बंधे दो जनों के बीच
और गर्मियां अपने अंत पर पहुंच जाती हैं प्रेम के दौरान ही
जबकि प्रेम शरद में भी जारी रहता है
एक आदमी गुज़र जाता है अचानक ही बोलते-बोलते
और उसके शब्द बाक़ी रह जाते हैं दूसरे छोर पर
या फिर एक ही बरसात होती है
जो गिरती है
विदा लेते और विदा करते, दोनों तरह के लोगों पर
एक ही विचार भटकता है
शहरों और गांवों और कई मुल्कों में
और उस आदमी के दिमाग़ के भीतर भी
जो सफ़र कर रहा होता है
यह सब मिलकर एक अजीब-सी नृत्यलय बनाते हैं
लेकिन मुझे नहीं मालूम कि इसे कौन बजाता है और कौन लोग हैं वे
जो इस पर नाचते हैं
कुछ समय पहले
मुझे बहुत पहले गुज़र चुकी एक नन्हीं लड़की के साथ अपनी एक पुरानी फोटो मिली
हम एक साथ बैठे थे
बच्चों की तरह आपस में चिपके हुए
एक दीवार के सामने जहां एक फलदार पेड़ भी था
उसका एक हाथ मेरे कंधे पर था और दूसरा आज़ाद -
जो अब मुझे मृत्यु से अपनी ओर आता दीखता है
और मैं जानता था कि मृतकों की उम्मीदबस उनका अतीत है
जिसे ईश्वर ले चुका है !
०००
अनुवाद : ख़ाकसार का
जेब्बात....तो हमारा भी ब्रत रहा। आसन से उठते हुए येहूदा ने कहा।
ReplyDeleteभाई कितना सुंदर अनुवाद है… पता नहीं अनुवाद कैसा है मगर कविता तो गजब है भई।
ReplyDeleteऔर अनिल भाई जेब्बात होरी है? देख रिया हूँ मैं।
ख़ाकसार साहब, कविता बहुत उम्दा पढ़वाई है .... बहुत ही उम्दा.
ReplyDeleteएक ही बरसात होती है
ReplyDeleteजो गिरती है
विदा लेते और विदा करते, दोनों तरह के लोगों पर
...
...
`अंधेरा
ReplyDeleteकभी-कभी सीधे नीचे गिरता है आलिंगन में बंधे दो जनों के बीच
और गर्मियां अपने अंत पर पहुंच जाती हैं प्रेम के दौरान ही
जबकि प्रेम शरद में भी जारी रहता है,
वैसे तो मेरे जैसे नासमझ के लिए भी हर पंक्ति दोहराने लायक.