
पहली मार्च इकहत्तर को उ0प्र0 के एक निहायत छोटे गांव में जन्मे और फिर जे0एन0यू0 में दीक्षित अनिल त्रिपाठी को आलोचना के लिए `देवीशंकर अवस्थी सम्मान´ मिल चुका है।
वे कविताएं भी खूब लिखते हैं और उनका एक कविता संकलन `एक स्त्री का रोज़नामचा´ नाम से छपा और चर्चित हुआ है। अनिल की कविताओं में साफ़ दिखता है कि उन्होंने त्रिलोचन के ``कविता में वाक्य पूरा करने´´ के निर्णय को पूरी तरह अपनाया है। वे समकालीन हिंदी साहित्य की दुनिया का एक सुपरिचित नाम हैं। पहल के नए अंक में उनकी कुछ कविताएं छपी हैं, उन्हीं में से एक कविता आपके पढ़ने को !
इस समय बुलन्दशहर ज़िले के एक छोटे कस्बे में हिंदी के प्राध्यापक हैं।
एक क्षण भी भारी है
जब खूब बोझिल हो रात
तारे धरती पर उतर आने को तैयार हों
तब यह मुश्किल वक्त है
उन लोगो के लिए
जिनके जीवन में रोशनी की कोई लौ नहीं है
घर दुआर छोड़ पैदल
हज़ारों मील की यात्रा के बावजूद
सिर्फ कोरा आश्वासन
यह सब क्या है?
इस इतने बड़े लोकतंत्र में
गांधी की राह पर चलकर
आंदोलन के अब क्या कोई मायने नहीं?
यह वक्त ही बिकाऊ है
धरती जड़ ज़मीन सपने सभी तो
यहां तक कि भूख पर पहरेदारी बिठा
हसरतों का बैनामा हो चुका है
हंसी के आपातक्षण भी आखिर अब कहां बचे हैं?
किसने खरीद लिया है यह सब
मज़बूर किसने किया है?
चलनी में पानी पीने के लिए
पेड़ों को दुख है कि वे चल नहीं सकते
नहीं है उनके पास कोई उपाय
आरों से अपना सीना चाक करवाने के अलावा
वह दिन दूर नहीं जब
तुम्हें पड़ेगा प्राणवायु का टोटा
और तुम किसी बोतल में खरीदोगे उसे आज के पानी की तरह
तब समझ में आएगा विस्थापन का दर्द !
सेंसेक्स का गणित धरा रह जाएगा तब
क्योंकि पैसा नहीं है पानी और हवा का विकल्प
पानी, हवा और अनाज जीवन है
और जीवन जाहिर है टाटा की लखटकिया कार से
ज्यादा महत्वपूर्ण है
इसलिए दोस्तो ..... ऐसे में
जब गति हो तेज़
तब असावधानी का एक क्षण भी
भारी है समूची धरती पर !
जब खूब बोझिल हो रात
तारे धरती पर उतर आने को तैयार हों
तब यह मुश्किल वक्त है
उन लोगो के लिए
जिनके जीवन में रोशनी की कोई लौ नहीं है
घर दुआर छोड़ पैदल
हज़ारों मील की यात्रा के बावजूद
सिर्फ कोरा आश्वासन
यह सब क्या है?
इस इतने बड़े लोकतंत्र में
गांधी की राह पर चलकर
आंदोलन के अब क्या कोई मायने नहीं?
यह वक्त ही बिकाऊ है
धरती जड़ ज़मीन सपने सभी तो
यहां तक कि भूख पर पहरेदारी बिठा
हसरतों का बैनामा हो चुका है
हंसी के आपातक्षण भी आखिर अब कहां बचे हैं?
किसने खरीद लिया है यह सब
मज़बूर किसने किया है?
चलनी में पानी पीने के लिए
पेड़ों को दुख है कि वे चल नहीं सकते
नहीं है उनके पास कोई उपाय
आरों से अपना सीना चाक करवाने के अलावा
वह दिन दूर नहीं जब
तुम्हें पड़ेगा प्राणवायु का टोटा
और तुम किसी बोतल में खरीदोगे उसे आज के पानी की तरह
तब समझ में आएगा विस्थापन का दर्द !
सेंसेक्स का गणित धरा रह जाएगा तब
क्योंकि पैसा नहीं है पानी और हवा का विकल्प
पानी, हवा और अनाज जीवन है
और जीवन जाहिर है टाटा की लखटकिया कार से
ज्यादा महत्वपूर्ण है
इसलिए दोस्तो ..... ऐसे में
जब गति हो तेज़
तब असावधानी का एक क्षण भी
भारी है समूची धरती पर !
जन्माष्टमी के पावन पर्व पर आपको शुभकामनाएं
ReplyDeleteदीपक भारतदीप