अनुनाद

अनुनाद

बढ़ता ही जाता पृथ्वी पर भयावह सन्नाटा : मोहन कुमार डहेरिया की कविताएं

वरिष्‍ठ कवि मोहन कुमार डहेरिया नब्‍बे के दशक में प्रकाश में आयी कवि-पीढ़ी के महत्‍वपूर्ण प्रतिनिधि हैं। इनकी कविताएं समय, राजनीति और साहित्‍य के किसी भी प्रचलित मुहावरे से दूर कहीं जीवन की अभिधा से भरे साधारण मनुष्‍य जीवन के बीच से बोलती हैं, यही इनका मूल स्‍वर है। अनुनाद मोहन डहेरिया का स्‍वागत करते हुए इन कविताओं के लिए उनका आभार व्‍यक्‍त करता है। 

अनुनाद 

 

    ढहना मत    

ढहना मत फागूलाल भाई

मैं एक दिन जरूर आऊंगा

बढ़ा हुआ है अभी मेरा ब्लडप्रेशर

कम नहीं हो रहा शुगर का लेवल

 

जानता हूँ बाज़ारों में मनिहारी समान की दुकान लगाते लगाते

चूर चूर हो गए तुम्हारे घुटने

भर गई छेदों से बनियान

कांच की पिघली हुई गोली सी लगती हैं आंखें

पर ढहना मत

मैं एक दिन जरूर आऊंगा

अभी कमान पर तीर सा चढ़ा है मेरा इरादा

पक रही समय के छत्ते में करुणा

 

मैं जानता हूँ

जवान बेटे की मौत से नहीं उबरे हो तुम

अच्छी खासी ग्राहकी के दौरान

पड़ गया था तुम्हें मिर्गी का दौरा

बंध गई दंतकड़ी

तिरछा हो गया चेहरा ऐंठते ऐंठते

बमुश्किल पहुँचाया साथियों ने घर तक तुम्हारा गट्ठर

लेकिन फागूलाल भाई तुम ढहना मत

मैं एक दिन जरूर आऊँगा

अभी घास फूस के तिनकों से बुन रहा हूँ अपना साहस

बैसाखियों के सहारे चल रही मेरी आत्मा

 

मिल चुकी ख़बर

बार बार तुम्हारी तुम्हारी मुर्गियाँ खा जाता है नेवला

चक्कर काटते हो पंडित रमाकांत के कि

खोल दे मंत्रों से किसी साथी दुकानदार द्वारा बाँध दी गई

तुम्हारी दुकान

झल्लाकर लड़ पड़ते ग्राहकों से भी

एक दिन बिना बोहनी के लौटे थे जब तुम बाजार से

फ़ेंक दी घर लौटकर भगवान की फोटो

पीसने लगे
विक्ष्‍प्तता में दाँत

परंतु फागूलाल भाई तुम ढहना मत

मैं एक दिन जरूर आऊंगा

अभी अजगर सा जकड़े हैं मेरे पैरों को मेरे बच्चों के खिलौने

दलदल सा फैला है रास्तों पर मेरी पत्नी की मांग का सिन्दूर।

***

 

    छूटा
हुआ प्रेम    

 

क्या
करना चाहिए छूटे हुए प्रेम के साथ

 

सौंप
देना चाहिए किसी धर्मगुरु को

करेगा
पर वह इसे लेकर ईश्वर से विकृत संवाद

गलती
से छूट गई ट्रेन समझकर

भागते
रहना चाहिए ताउम्र इसके पीछे – पीछे छाती पीटते

ढोते
रहें पीठ पर भारी बोझ सा

मनुष्य
,
मनुष्य  नहीं हो जैसे मात्र हम्माल

या
माने इसे बीते समय का कोई खंडहर

घूमते
रहे दाँत पीसते हुए हमेशा जिसमें किसी मनोरोगी सा

 

क्या
करना चाहिए छूटे हुए प्रेम के साथ

कैसा
संबंध रखा जाए उसके साथ

पर्यटक
ओर टूरिस्ट पाइंट
, मरीज और डॉक्टर

या
इजराइल और फिलिस्तीन वाला

 

टूटे
हुए मुकुट सा धारण किया जाए सिर पर

और
गर्व कि थोड़े समय के लिए ही सही 

थे
कभी राजकुमार प्रेम की किसी रियासत के

करते
रहे उस पर हमेशा शिकायतों की गोली की बरसात

आमना
– सामना होने पर चोर नजरों से देख

कतराकर
निकल जाना भी हो सकता है एक विकल्प

या
हाथ मिलाकर उससे कर लें कोई कूट संधि

माना
जा सकता उसे आत्मा के आसमान में

 खिला इंद्रधनुष बरसाती भी

रही
नहीं उम्र जिसकी किसी भी दौर में ज्यादा

यह
भी हो सकता है

समझ
लें उसे अकड़ गई  रूई का कोई ढेर

धुना
जाए जिसे खूब

समझी
जाए गहरे धैर्य से रेशे दर रेशे उसकी जटिलता 

बताई
जाए लोगों को उसकी ठीक – ठीक तासीर

 

आखिर
क्या करना चाहिए छूटे हुए प्रेम के साथ

 

दिसंबर
की कड़कड़ाती सर्द रात है यह

निकल
रही मेरे शरीर के रोम छिद्रों से कामनाओं की चिंगारियां

भभककर
जलती कंठ में एक विराट पुकार की लौ

बताओ
नई टेक्नोलॉजी के सर्वश्रेष्ठ जानकारों
, ओ रोबोट भाई

क्या
है आप लोगों के पास ऐसा कोई ऐप

डीलिट
हो सके जिससे मनुष्य के जीवन से छूटा हुआ प्रेम ।

***

 

    वह
सिर्फ एक माँ
   

 

मत
फुसफुसाओ कानों में लोगों

अभी
वह सिर्फ एक माँ है

 

सामने
है उसके बेटे की लाश

झर-झर
बह रहे आँसू

मूर्छित
हो जाती बार-बार

डूबने
लगती नब्ज

मत
थूको उसके रूदन पर लोगों

कि
पकड़ी गई थी रात दो बजे प्रेमी संग

रहे
बहुतों के साथ अवैध संबंध

मत
कहो उसकी हिचकियों को धोखा

सिर
पटकने को नाटक

देवी-देवताओं
की फ़ोटो फेंकती

यमराज
के सींगो से जूझती

अभी
वह सिर्फ एक माँ है

 

व्यंग
से देख उसे न हँसों लोगों

कि
की उसने मोहल्ले में मारपीट कई बार

पकड़ी
गई बेचते गैरकानूनी शराब

बार
बार बंधती दन्तकड़ी

शून्य
में स्थिर खँडहर सी आँखें

मरे
हुए जवान बेटे को ब्लाउज खोल दूध पिलाना

कुछ
भी झूठा नहीं है

 

आर-पार
हो चुका है इस समय

उसकी
आत्मा में धँसकर पुत्र की मौत का भाला

बुदबुदा
रही वह

लौट
बेटा लौट आ

घूमते
रहना भले ही आवारा

नहीं
कहूँगी काम-धंधा करने के लिए

फिर
देने  लगती हिस्ट्रीयाई अंदाज में

गाते
हुए मोहल्ले वालों को आमंत्रण

कि
आओ रे आओ

बजने
लगे बैंड-बाजे

चली
रे चली मेरे बेटे की बारात

नाचो
रे नाचो

 

मत
करो उसके चरित्र पर टीका-टिप्पणी लोगों

अभी
वह सिर्फ एक माँ है।

***

 

    भाषा के
लिए
   

 

बहुत छोटी
है मेरी बेटी

उससे छोटी
उसकी दुनिया

हाथ भर
होगी लंबी जिद

पानी के
बुलबुले जैसा संताप

 

अभी

शिष्टाचार
ने जर्जर नहीं की उसकी भाषा

उठता
सपनों से उसके गाढ़ा झाग

सूत जितनी
जगह घेरती महत्वकांक्षाएँ

प्रसन्नता
का मतलब उसके लिए मुट्ठी भर चॉकलेट

या
डुगडुगी की धुन पर मटक मटककर ससुराल जाता बंदर

 

पिछले
दिनों हुआ ऐसा फेरबदल

हथेलियों
पर शतरंज सी बिछा ली कुछ लोगों ने धरती

मोहरों की
तरह करने लगे

नदियों , पेड़ों और पहाड़ों का इस्तेमाल

कि बढ़ता
ही जाता पृथ्वी पर भयावह सन्नाटा

मैं नहीं
जानता ऐसे माहौल में भी

कपड़े के
भालू से
, गुड़िया से , जोकर से

वह दिन
दिन भर क्या क्या बतियाती है

 

पुकारती
है जब बारीक आवाज में मुझे

पापा—पापा
— ए — पापा—–

कसमसा
उठता मेरे अंदर जैसे जल का सोता

लिए आशीष
की मोटी धार

 

गर नहीं
माना जाए इसे

वात्सल्य
के सम्मोहन में डूबे एक पिता का मुगालता

तो पूछना
चाहूँगा मैं

इन दिनों
जब

विदेश
यात्रा पर गए सर्वोच्च पद पर बैठे शासक हो

या चारा
करने जंगल गए मवेशी

सुनिश्चित
नहीं रही जब किसी की भी वापसी

क्या वह
मेरी बेटी का विश्वास ही है

पकड़कर
जिसकी नन्ही ऊँगली

लोगों के
सारे षड्यंत्रों के अरण्यों को भेदता

लौट लौट
आता हूँ मै फिर से अपने घर में ।

***

    परिचय    

जन्म
: 1 जुलाई 1958
,
बड़कुही, जिला
-छिंदवाड़ा (मप्र.)

शिक्षा
: एम हिन्दी
,
अर्थशास्त्र
)
,
बी
एड .

प्रकाशन
:  ‘कहाँ होगी हमारी जगह
, उनका बोलना,


लौटे कोई इस तरह
, इस घर में रहना एक कला है, चरण कमलों के
दौर में’
 (काव्य
संग्रह)। विभिन्न कविता-

संग्रहों
में कविताएँ शामिल। कुछ कविताओं के उड़िया
,मराठी,नेपाली में
अनुवाद प्रकाशित। कभी- कभार

कहानी
लेखन भी। ‘कहाँ होगी हमारी जगह’ कविता-संग्रह पर एम.ए. उत्तरार्ध ( हिन्दी साहित्य
) की एक छात्रा

द्वारा
बरकतउल्ला विश्वविद्यालय
, भोपाल के अंतर्गत लघु शोध-प्रबंध ।
कविता गुजरात विश्वविद्यालय के

पाठ्यक्रम
में शामिल।

पुरस्कार
 – सुदीप बनर्जी सम्मान
, शशिन सम्मान 

नई
पहाड़े कॉलोनी
,
जवाहर
वार्ड
,
गुलाबरा, छिंदवाड़ा 

जिला
– छिंदवाड़ा  (मप्र) 480001

फोन
नं॰  – 8718903626(वाट्स अप)
, 6268539927

Email
– mohankumardeheria@gmail.com

 


 

 

 

0 thoughts on “बढ़ता ही जाता पृथ्वी पर भयावह सन्नाटा : मोहन कुमार डहेरिया की कविताएं”

  1. मोहन डहेरिया जी अच्छी कविताओं को प्रस्तुत किया है आपने. अत्यंत गम्भीर कविताओं को लिखने वाले कवि हैं. 🌹 🙏

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