Monday, October 10, 2022

अपनी समझ के संग्रहालय को खंगालते हुये- ऋतु डिमरी नौटियाल की कविताएं

ऋतु डिमरी नौटियाल की कविताएं आज के मनुष्य-जीवन और जीवन-शैली में घटित हो रहे प्रसंगों और प्रश्नों को स्पर्श करते हुए उनका सरल उत्तर देती अविरल-सी बहती प्रतीत होती हैं। अनुनाद पर यह उनका प्रथम प्रकाशन है, हम कवि का यहाँ स्वागत करते हैं।

        -        अनुनाद  

 

 

   जाल के साथ उड़ान   

 

    संध्या को प्रोमोशन रुक जाने का खतरा था

    विद्या को दूसरे शहर में ट्रांसफर हो जाने का

    मीता को पढ़ाई के लिए किया गया

    छुट्टी का आवेदन निरस्त होने का खतरा

    प्रीति को दूसरे डिपार्टमेंट में 

    भेज दिये जाने का खतरा

 

    सभी समझ रही थी

    एक दूसरे के अंतर्द्वंद

    पर माया सिर्फ एक अकेला वजूद नहीं थी

    वो सब

    कम से कम एक बार झेल चुकी थी

    माया की तरह

    बौस के लिए

    काम करती हुई अधीनस्थ औरत होने का

    का अर्थ

 

    जुट गयी सारी चिड़ियाँ

    डालें हाथ में हाथ

    आकाश में उड़ने के लिए

    जाल के साथ

    ***

 

 

   प्रार्थना के क्षण   

 

     नास्तिक

     बुदबुदा रहा है

     सारे फूलों के नाम

     उसने कभी तोड़ने की

     सोची नहीं

 

     आस्तिक 

     बुदबुदा रहा है मंत्र

     किसी राग की कोशिश में

     जिसे सुन

     काल 

     अपना रास्ता भटक जाये

 

     बच्चा रो रहा है

     मर रही माँ की छाती के पास

     कि उसका रोना सुन

     माँ की धड़कनें

     अपने ही दूध की नदी से

     भीतर प्राण के लिए

     रास्ता बना ले

 

     काल सुन रहा है

     अजन्मे बच्चों, पौधों, जानवरों की भी

     गुहार

     "हमारे लिए जीवन में जगह बना दो "

 

     इन प्रार्थनाओं के घट रहे क्षणों में

     वो 

     बांच रहा है कहीं

     जीवन - मृत्यु की बही

     ***

 

   व्‍ह्ट नेक्स्ट !!   

 

    बच्चे ने उठा लिया मोबाईल

    पढ़ रहा है कुछ

 

    जाने कितने बरसों तक

    रट रहे थे

    तोते हमारे भीतर

    सारी अदृश्य पंक्तियां

    हमारे दिमाग की सतह में

    नीली भाप की तरह जमी हैं

   

    किसी अपार शक्ति ने

    समझ लिया दीमकों का साम्राज्य

    

    भेज दिया फरिश्ता गूगल

    दीमकों का अस्तित्व खतरे में है

    तारीखें नहीं पूछी जा रही

    प्रश्न-पत्रों में

       ना ही पूछे जा रहे हैं

       याद ना रह पाने वाले 

       मुश्किल नाम

       हमारे समझने को समझ रहे हैं

       परीक्षक 

       अपनी समझ के संग्रहालय को

       खंगालते हुये

       

       उपजाऊ मिट्टी के कण

       हमारे भीतर

       तय करेंगे

       कहाँ है हमारी जगह

       भविष्य में होने की

 

    विकीपीडिया देख रहा बच्चा

    माँ से पूछ रहा है

    "व्‍ह्ट नेक्स्‍ट ? "

     ***

 

   गीले जूते   

 

       गीले जूते 

       मैं रख देता हूँ 

       दरवाजे के बाहर

       आफिस से आते ही

 

       मेरे पैरों को 

       घर के भीतर

       रात की नींद में

       सूखे पैरों के सपने चाहिए

 

       पुलिस में काम करता 

       मेरा एक दोस्त

       मेरी इस हरकत पे

       हंसता है बहुत

 

       उसके जूते और पैर 

       हमेशा गीले होते हैं

       उसके लिए 

       सारी सड़कें, सारे साल 

       पानी से भरी हैं

       उसके शरीर ने गीले और सूखे का

       अंतर करना कब का बंद कर दिया है

 

       वो बता रहा था

       हमारा एक डाक्टर दोस्त भी

          पानी से भरे अस्पताल में काम करता है

          उसका भी यही हाल है

          गीला और सूखा 

          अब वो सूंघ नहीं पाता 

 

       सोच रहा हूँ

       कब तक मेरे हिस्से में रहेंगे

       घर के भीतर

       नींद में

       सूखे पैर लिए हुए

       सपने

       ***

 

    अंधेरे की खिड़की से झाँकते हुए   

 

     कितनी चकाचौंध रौशनी थी

     मेरे घर में

     घर के इर्दगिर्द

 

     नहीं झुक पाई आंखें

     सड़क के गड्ढों को

     देखने के लिये

     जब आंखों के लिए

     समां सारा

     मेरे क़द से ऊंचा था

 

     जब शोर 

     संगीत लग रहा था

     आडम्बर

     एक धुन लग रही थी

     नहीं सुन पाया

     शम्भू के बच्चों के

     खाली पेट में

     भूख से होती गुड़ गुड़

     कूड़े में फेंक रहा था खाना

     जो मोहल्ले के कुत्तों के लिए भी

     इतना था

     आधे से ज्यादा

        माहौल में गंध भरने के लिए

        बिना खाया छोड़ दिया

 

     कहाँ सुन पाया विधवा चाची की बात

     "बेटा !! कई महीनों से बिल नहीं जमा कराया

     कट गयी है

     घर की बिजली"

 

     आज एक उंची इमारत पे खड़े

     दो सांडों ने

     चकाचौंध को

     उसकी औकात दिखा दी

 

     आज देख पा रहा हूँ

     अपने घर के अंधेरे की खिड़की से

     शम्भू के घर से

     गीली लकड़ियों से उठता धुंआ

 

           चाची के घुटनों के दर्द की वजह से

           बार बार उठती कराह

           भी साफ साथ सुनाई दे रही है

 

             साफ दिख रहे हैं

             अपने- परायों के वो नम्बर

             जो अब मेरा

             फोन नहीं उठा रहे हैं

             मैसेज पढ़ नहीं रहे

     देख पा रहा हूँ अब

     सड़क के गड्ढों को

     साफ साफ

     सुन पा रहा हूँ 

               घड़ी की अलार्म की आवाज

               जो कई दिनों 

               से मुझको

               ठीक से सुनाई नहीं दी

    ***

 

 

     लोकतंत्र के भीतर का निरंतर द्वन्द्व   

 

        कमाल है

        वो हर परत का नाम

        संख्याओं की नदी के बीच से

        ढूँढ ढूँढ कर

        पुकार रहे थे

 

        बता रहे थे कैसे

        हर परत का नदी के बहाव के

        भीतर रहना जरुरी है

        तभी तो नदी 

        नदी रह पायेगी

        जब अपने अंगूठे की छाप से

        हर परत

        एक ही दिशा में जायेगी

        कोई भंवर नहीं उगेगा

        कोई मुश्किल नहीं आयेगी

       

           बस वही तो सबसे बड़ी मुश्किल है

           हर परत को नदी के भीतर

           तय करना जरूरी है

           कौनसी दिशा की तरफ गटर है

           और किस तरफ समन्दर 

          

        और कौन जाने

        हर परत की एक ही दिशा चुनने के बाद

        समन्दर और गटर की आपस में

        जगह ही बदल जाये

        ***

  

   बाय वन गैट वन   

 

मैं भटक रहा हूँ

एक सड़क से दूसरी सड़क के बीच में

अपनी जेब में 

नौकरी के आवेदन पत्र लिये

 

बेरोज़गारी के मौसम में

सामान्य श्रेणी का होना

हृदय पे सुई की तरह

चुभ रहा है

 

मेरी सामान्य श्रेणी

ढो रही है

मेरे पूर्वजों के द्वारा किये गये

सारे अन्यायों के

पश्चाताप

 

बहुसंख्यक होना

बचा गया मुझे हर दंगे से

जिंदा सही सलामत

जबकि आततायी भीड़ के

मैं कभी नहीं खड़ा था साथ

 

कसूर ना करते हुए भी

कितना ज्यादा कसूरवार हूँ मैं

 

और ट्रैफिक लाईट में 

डस्टर के कपड़े हाथों में लिए

धीरे धीरे दौड़ रहा बच्चा

जोर जोर से बोल रहा है

"बाय वन गैट वन "

***

 

   नाल-विमर्श   

 

समय सबके लिए एक जैसा नहीं है

कहीं वर्तमान में 

भविष्य के लिए;

जन्मे बच्चे की नाल संभाली जा रही है

 

कहीं ढूँढी जा रही है

फूड बिल की प्रतियां

कब आई थीं

कैसे गायब हो गयी

कुछ पता नहीं

 

किसी किसी को अपनी माँ से जुड़ी नाल से

सिर्फ भूख की कोशिकाएं मिली हैं

 

गर शाहजहाँ के पास होता 

ये नाल वाला समाधान

तो करता क्या वो चार बादशाह पैदा

जब मालूम था

तीन ने हर हाल में

मारे जाना है

बचाकर रखता एक को

राजकाज के लिए

फिर चाहे वो बादशाह

सूफी होता 

या नृशंस खूंखार

 

नाल के भीतर हम ही तो हैं

नदी के रूप में

अपने वंशजों में 

खुद को जिंदा रखते हुए

 

जाने क्या क्या संभालेगी

आने वाले वक्त में नाल

गति, समय, सृजनसरोकार

या कुछ और

***

 

   खेत   

 

 "उन्हें"

 अपने बीज से अन्न चाहिए था

 पर स्थाई ज़िद के साथ 

 कि  

 "खेत" कोई और पैदा करे

 

 सभी ने बीज के अंदर ही 

 खेत मार दिये

 सभी को अपने लिए

 सिर्फ अन्न चाहिए था

 

 विज्ञान ने कहा

 बीज के अंदर 

 खेत की भी भागीदारी है

 उन्होंने मानने से इंकार कर दिया

 "खेत"

 "खेत" के गर्भ में मरते रहे

   

 सुनने में आता है

 'खेत' को मारने में

 'खेत' ही हथियार बने

 

 शून्य का द्वार खुल गया था

 उसके भीतर कर रहे थे

 'खेत'

 प्रवेश

 

 बीज!! आधे से

 जाने कब तक भ्रम में रहना चाहते हैं

 "उनके अब तक के

 अन्न के भीतर 

 उनकी अनंत पीढ़ियां 

 जिंदा हैं "

 ***

 

   चेतना का चरम   

 

उसने तोड़ दिये

सांचे

खिलौनों के सारे

 

वो ले आया चाक

घड़ा बनाने के लिए

 

डाल पे बैठा कौआ भी

जोड़ने लगा कंकड़

घड़े और अपने बीच

पानी के रिश्ते के लिए

 

उस बार सिर्फ खिलौने बनाने वाले ने ही 

ने नहीं बढ़ाया

घड़ा बनाने के अपने सपने की तरफ

पहला कदम

 

चम्पारण की मिट्टी ने भी 

बढ़ाया

नील की खेती की आदत से

भरे हुए खेतों में;

रस से भरे हुये अन्न के

खेत के

सपने की तरफ

पहला कदम

 *** 

 

 

 


3 comments:

  1. ऋषिकेश अहमदOctober 11, 2022 at 1:57 PM

    बेहद शानदार, आज के समय के सशक्त हस्ताक्षर, वैसे हमें इनकी इससे भी अच्छी रचनाये पढ़ने को मिली हैं.

    ReplyDelete
  2. ऋषिकेश अहमदOctober 11, 2022 at 3:15 PM

    behtreen

    ReplyDelete

यहां तक आए हैं तो कृपया इस पृष्ठ पर अपनी राय से अवश्‍य अवगत करायें !

जो जी को लगती हो कहें, बस भाषा के न्‍यूनतम आदर्श का ख़याल रखें। अनुनाद की बेहतरी के लिए सुझाव भी दें और कुछ ग़लत लग रहा हो तो टिप्‍पणी के स्‍थान को शिकायत-पेटिका के रूप में इस्‍तेमाल करने से कभी न हिचकें। हमने टिप्‍पणी के लिए सभी विकल्‍प खुले रखे हैं, कोई एकाउंट न होने की स्थिति में अनाम में नीचे अपना नाम और स्‍थान अवश्‍य अंकित कर दें।

आपकी प्रतिक्रियाएं हमेशा ही अनुनाद को प्रेरित करती हैं, हम उनके लिए आभारी रहेगे।

LinkWithin

Related Posts with Thumbnails