अनुनाद

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थक जाते थे हम कलियाँ चुनते – प्रचण्‍ड प्रवीर (बाल साहित्‍य/कविता पर आलेख)

इक्‍कीसवीं सदी के आरम्‍भ में हिन्‍दी में जिन महत्‍वपूर्ण कथाकारों की आमद हुई है, प्रचण्‍ड प्रवीर उनमें बेहद ख़ास और अलग नाम है। वे क़िस्‍सागोई

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जो कुछ है बेतरतीब मेरा – तस्‍लीमा नसरीन की तीन कविताऍं : अनुवाद – सुलोचना वर्मा

विख्‍यात बॉंग्‍ला लेखिका तस्‍लीमा नसरीन का आज जन्‍मदिन है। इस अवसर पर हम उनकी तीन कविताऍं बधाई और शुभकामनाओं के साथ प्रकाशित कर रहे हैं,

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उन सपनों को पूरा करने की चाह में – विजय विशाल की कविताऍं

                                                  कवि ने कहा            वस्तुतः लेखक होने से पहले मैं स्वयं को एक सजग पाठक के रूप में देखता हूँ। एक

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सभी जाएँगे मुझको भूल : विष्णु खरे की कविता पर विशाल श्रीवास्तव का लेख

विष्‍णु खरे हिन्‍दी कविता के इलाक़े में हुई बहुत बड़ी हलचल का नाम है। कितनी ही उथलपुथल उनके नाम दर्ज़ हैं। विवादों में बदलते हुए

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जब सारी बड़ी-बड़ी नदियाँ थक गईं – संदीप तिवारी की चार कविताऍं

संदीप नौजवान कवियों में उम्‍मीद से भरा एक नाम हैं। उन्‍हें पिछले वर्ष युवा कविता के लिए रविशंकर उपाध्‍याय स्‍मृति पुरस्‍कार बनारस में दिया गया

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पिछले शरद के पहले नए थे नीलकुरिंजी के फूल – कुशाग्र अद्वैत की कविताऍं

कुशाग्र अद्वैत बाईस बरस के नौजवान हैं, जिनके पास कुछ विशिष्‍ट जीवनानुभव हैं, जैसे हर नौउम्र इंसान के पास होते हैं। कुशाग्र जीवन की सांद्रता

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