अनुनाद

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स्त्री-कविता का सामाजिक स्वर और शुभा की कविताएँ – आशुतोष कुमार

आलोकधन्वा  की  कविता “भागी  हुई  लड़कियां” १९८८ में छपी . यह  घटना  हिंदी कविता के इतिहास  में  एक मील का   पत्थर है . इसके  बाद 

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यहां कविता में पुराने छंद चाहे न आ रहे हों किन्तु उन छंदों की लय आज भी बची हुई है – वरिष्ठ आलोचक जीवन सिंह से महेश पुनेठा की बातचीत/3

                                      महेश चंद्र पुनेठा – आप कविता के केंद्र में मनुष्य भाव को मानते हैं.कविता ही मनुष्य भाव की रक्षा करती है.यह अच्छी कविता

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