देश के 5 राज्यों में चुनाव हैं। जनता के बीच कुछ भ्रम पहले से थे और कई इस
बीच डाल दिए गए हैं। ऐसे ही भ्रमों के बीच हमें अमित श्रीवास्तव की यह कविता मिली है, जो कई जाले साफ़ करती
है और किनारे खड़े होकर नहीं, संकटों बीच धंसे रहकर बोलती है।
गालियों और
नारों के बीच
चुनो
फतवों और
निषेधाज्ञाओं के बीच
चुनो
हत्या और
आत्महत्या के बीच
चुनो
अपनी आख़िरी
आवाज़
अगला बंकर
जंग खाए ताले
और उलझी
बेड़ियों के बीच
चुनो
दरवाज़े चुनो
ये पर्दे फट
चुके हैं
ढांपने को कुछ
नहीं है
पर चुनो
कि बेशर्म साँसे
उधड़ी पड़ी हैं
चुनो भूख चुनो
प्यास चुनो
चुनो बेघर होने
के तमाम इंतजामों के बीच
कौन सा बेहतर
है
चीख और आंसुओं
में
अरदास और
प्रार्थनाओं में
घण्टे की पुकार
और मुहरों के तिरस्कार में
चुनो
रक्त छायाओं
और सफेद होती
परछाइयों में
चुनो
साजिशों को चुनो
हत्यारा चुनो
अपनी सज़ा
अपनी अदालत
चुनो
राम या रहमान
चुनो
अपना इम्तेहान
चुनो
कि चुनने के
अलावा
अब कोई और चारा
नहीं
बदरंग और
बेस्वाद के बीच
उलझन और उदासी
के बीच
ठहाकों के बीच
अपनी कमजोरियों से एक चुनो
चुनो बंजर
आसमान
काली धरती
बेहद शुष्क हवाओं
के बीच
बेवा या
बलात्कार चुनो
चुनो
तुम चुनने को
स्वतन्त्र हो
चुनो कि तुम
अभिशप्त हो
चुनो कि अब तक
तुमने चुना नहीं
सुना नहीं
हड्डियों के
ढाँचे
खिंची हुई
तलवारें
भिंचे हुए जबड़े
फटे हुए नक्शे
झुके तराजू
सुनो इनकी मरी
हुई आवाज़ें
सुनो ध्यान से
सुनो
जल गई एक किताब
के पन्नों की राख़ उँगलियों में लगाकर
चुनो
अपना विपक्ष
चुनो
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हे व्यवस्था !
ReplyDeleteमतदाता के "मन की बात"
तुम सुनती तो कम ही हो
पर सकती हो तो सुनो !!!!
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वाह साथी ---!
👌👌👌
Ek zaroori bechaini ... Viklp isi ke baad hai. Zindabaad!! Bhai Amit ji aur priy anunaad ko Salaam !!
ReplyDelete- Kamal Jeet Choudhary.
gahra kataksh ... vyavastha pe prahaar hai rachna ...
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