Wednesday, October 12, 2016

चर्चित समकालीन मैसिडोनियन कवि निकोला मेदजीरोव की कविताएं ( पेगी, ग्राहम डब्ल्यू रीड, मेगडेल्ना होर्वट तथा एडम रीड के अंग्रेजी अनुवाद से) : हिदी अनुवाद -दुष्यंत




कवि की औपचारिक अनुमति से हिंदी में पहली बार अनूदित ये कविताएं प्रिंट में जनसत्ता में आई थीं, (वैसे ये अनुवाद मूलत : kritya international poetry festival के लिए किए गए थे), यानी इन अनुवादों से ही इस कवि को हिंदी दुनिया से पहली बार रूबरू करवाया गया ।स्‍त्रूमिका नामक स्‍थान पर बाल्‍कन वॉर के शरणर्थी परिवार में जन्‍में निकोला मेदजीरोव की कविताएं पहली नजर में पलायन की कविताएं लगती है, पर वे गहरे  इतिहासबोध के साथ विस्‍थापन और बदलते समय को दस्‍तावेज करती महीन काव्‍यात्‍मक कारीगरी वाली कविताएं हैं,उनकी कविताओं के दुनिया की तीस से ज्‍यादा भाषाओं में अनुवाद हुए हैं। हुबर्ट बुरदा यूरोपियन कविता पुरस्‍कार उन्‍हें मिल चुका है। 


***

दरवाजे से ठीक पहले की माटी में

तुम्हारे घर के गिर्द बनी बाड़ ने
तुम्हारे घर को दुनिया का केंद्र बना दिया है।

हर सुबह/ पर्दे की पारदर्शी बुनाई के फूलों से
फिसलती है सूरज की किरणें
खिड़की के कांच पर फैली धूल उतरती है
निष्ठावान विधवा के चहरे के मैकअप की तरह।

हमारा कमरा एक अंतहीन मरूस्थल है
चौखट पर रखे फूलदानों में सजे कैक्टसों के साथ
दरवाजे से ठीक पहले की मिट्टी में।

हम हर रोज उगाते हैं
वह जो कभी नहीं फलेगा फूलेगा
जैसे नाभिनाल या तुम्हारे कपड़ों झडी धूल का टुकड़ा।

कुछ जो बचा रहेगा हमेशा
जैसे किसी के बचपन से
एक स्टिकर रहता है फ्रिज पर चिपका हुआ।
***

हर दिन एक नई दुनिया है

हर दिन नया/ हम रचते हैं एक नया ही संसार
पहाड़ यहां खड़े होगे/ वहां होगे शहर
आज नदियां हमारे लिविंग रूम में बहेंगी

और कल नए सिरे से
बिल्कुल ही शुरूआत से

पतंगो को रहने दो आसमान में
और वहां युद्धविराम।

इस खेल में/ केवल हम बाहर हैं
हर दिन/ कुदरत तय करती है हमारा स्थान

ठीक उन्हीं जगहों पर
मैं सोने के लिए तैयार था एक माचिस की डिबिया में
और तुम एक वायलिन के बक्से में।
***

साए गुजरते हैं

हम मिलेंगे एक रोज
कागज की नाव की तरह और नदी में तैरते तरबूज की तरह
दुनिया का तनाव हमारे साथ होगा
हमारी हथेलियों से होगा सूर्य ग्रहण
और एक दूसरे तक पहुचेंगे हम
हाथों में लिए लालटेन।

एक दिन जब
हवाएं अपना रूख नहीं बदलेगी
सनोबर के पेड की पत्तियां चली आएंगी
हमारे जूतों में शामिल होकर
हमारे घर की दहलीज तक
हमारी मासूमियत के पीछे पड़ेगे क्रूर लोग
तितलियां अपनी धूल छोड़ जाएंगी
हमारे गालों पर

एक बूढी नानी सुनाएगी हमारी कहानियां
वेटिंग रूम में हर सुबह
यहां तक कि जो कह रहा हूं
वो भी कहा जा चुका है पहले
हम हवा के इंतजार में हैं
जैसे होते हैं दो ध्वज किसी सरहद पर ।

और / एक दिन हमारा साया हमसे आगे चला जाएगा।
***

दो चांद


एक लड़की ने देखा अपना अक्स
शहर की साफ~साफ सरहद पर
और अपनी दो आंखों में दो चांद
खोजी जा चुकी दुनिया के आखिरी कोनों को
उसकी नजर करीब ले आती है।

छतों के पार जाता है उसका काई से सना साया
और नीचे अकेलेपन से मरती स्थानीय प्रजातियों को देखता है
दैहिक कंदरा से लेकर
उसके कूल्हों और अस्थिपंजर के बीच से
चमकती है प्रकाश की एक रेखा हर रात।
***

हमारे जन्म से पहले

सड़कें डामर बिछी हुईं/ हमारे जन्मों से पहले
आकार ले चुके थे/ सारे के सारे तारामंडल।
फर्श के किनारों तक/ पत्तियां सड़ गई थीं
चांदी थी कलंक सी/ मजदूरों की त्वचा पर
नींद की लंबाई तक जा रही थी/ किसी की हड्डियां

यूरोप का एकीकरण हो रहा था
हमारे जन्म से पहले
एक स्त्री के केश बिखरे हुए थे
समंदर की सतह पर/ निःशब्द।
***

सूरज तुम्हारे गर्भाशय में निद्रामग्न है

हमने जो उगाए हैं
अनिश्चितता के बगीचे
रात तक इसमें फल आएंगे
जब सूरज सो चुका होगा
तुम्हारे गर्भाशय में
जो इंतजार में होगा मेरे बीज के।

हम खनिजों के बारे में अनजान हैं
और उन दफनाए गए खिलौनों के बारे में
और उन भंवरों के बारे में भी
दो युद्धरत देशों के बीच

भुला दिए गए/ बचपन के निशान
ढक दिए गए हैं/ बैलगाड़ी के पहियों के निशानों से
और धरती महकती है

यहां से हमारी मासूमियत
और गतिमान होता है चमकीले शहरों की ओर
और वजूद उसका सिर्फ नक्शों में बचा है
और आसमान में/ जब वहां चांद अनुपस्थित है।
*** 
दुष्यन्त हमारे लिए अब तक अनजान रहे कविता के कुछ हिस्से रोशन कर रहे हैं। अनुनाद इन अनुवादों के लिए उनका आभारी है।

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