कवि कृष्ण कल्पित ‘भारतनामा’ शीर्षक से कविता की एक सिरीज़ लिख रहे हैं।
उनके जन्मदिन के अवसर पर बधाई देते हुए इसी सिरीज़ से बारह कविताएं। ये कविताएं उसी
क्रम में नहीं हैं, जिसमें कवि द्वारा इन्हें प्रस्तुत किया गया
है। वहां कविताओं की संख्या सौ पर पहुंचने को है, मैंने बारह का
चयन किया है।
कभी का धूल-धूसरित हो जाता यह देश
बिखर जाता
टुकड़ों-टुकड़ों में विभक्त हो जाता
लेकिन इस महादेश को
अभावों ने कसकर थाम रखा था
ग़रीबों की आहें
हमारी प्राण-वायु थी !
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2
खेत जोतने वाले मज़दूर
लोहा गलाने वाले लुहार
बढ़ई मिस्त्री इमारतसाज़
मिट्टी के बरतन बनाने वाले कुम्हार
रोज़ी-रोटी के लिये
पूरब से पश्चिम
उत्तर से दक्षिण
हर सम्भव दिशा में भटकते रहते थे
ये भूमिहीन लोग थे
सुई की नोक बराबर भी जिनके पास भूमि नहीं थी
बस-रेलगाड़ियाँ लदी रहती थीं
इन अभागे नागरिकों से
अब कहीं दूर-देश जाने की ज़रूरत नहीं थी
अपने ही देश में
निर्वासित थे करोड़ों लोग !
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3
मैं बहुत सारी किताबों की
एक किताब बनाता हूँ
मैं कवि नहीं
जिल्दसाज हूँ
जो बिखरी हुई किताबों को बांधता है
किताबें जलाने वाले इस महादेश में
मैं किताब बचाने का काम करता हूँ !
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4
वरमद्य कपोत: श्वो मयूरात् !
( आज प्राप्त कबूतर कल मिलने वाले मयूर से अच्छा है ! )
वरं सांशयिकान्निष्कादसांशयिक: कार्षापण:
इति लौकायतिका: !
( जिस सोने के मिलने में सन्देह हो उससे वह ताम्बे का सिक्का अच्छा जो असन्दिग्ध रूप से मिल रहा हो । यह लौकायतिकों का मत था ! )
अलौकिक लोगों के अलावा इस देश में
लौकिक लोग भी रहते थे
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5
ख़ामोश हो गया हूँ
अपने ही देश में
जब-जब खोलता हूँ ज़बान
बढ़ती जाती है दुश्मनों की कतार
कहाँ से लाऊँ प्रेम की बानी
अपनी आत्मा के दाग़ लेकर
किस घाट पर पर जाऊँ
किस धोबी किस रजक के पास
मेरी चादर मैली होती जाती है !
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6किसी ने मेरे भारत को देखा है
किसी ने
एक फटेहाल स्त्री
इस महादेश के फुटपाथों पर भटकती थी
अपने भारत को खोजती हुई
जैसे अपने खोये हुये पुत्र को !
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7आज भारतवंशी करोड़ों जिप्सी
यूरोप से लेकर सारी दुनिया में भटकते हैं
उनके क़ाफ़िले बढ़ते ही जाते हैं
एक पढ़-लिख गये जिप्सी ने
बड़ी वेदना से 1967 में अपने देश को याद करते हुये अपनी डायरी में यह दर्ज़ किया :
हम अपने छूटे हुये देश को कितना याद करते हैं लेकिन लगता है हमारा देश हमें भूल गया है । कितनी हसरत से मैं जवाहरलाल नेहरू लिखित 'डिस्कवरी ऑफ इंडिया' ख़रीद कर लाया लेकिन उसमें हमारे बारे में, अपने विस्मृत बंधुओं के लिये, एक शब्द भी नहीं है
ओ बंजारो
ओ जिप्सियो
मैं तुम्हें प्यार करता हूँ मेरे बिछुड़े हुये भाइयो
इस महादेश का एक कवि
अश्रुपूरित नेत्रों से तुमको याद करता है !
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8इब्न बतूता मोराको से हिंदुस्तान आया था
उसने अपने प्रसिद्ध यात्रा-वृत्तांत में
अपने ख़ैर-ख़्वाह मुहम्मद तुग़लक़ के बारे में लिखा है :
शायद ही कोई दिन जाता हो कि
बादशाह किसी भिखमंगे को धनाढ्य न बनाता हो
और किसी मनुष्य का वध न करता हो
प्रसिद्ध दानवीरों ने अपनी समस्त आयु में
इतना दान नहीं किया होगा
जितना तुग़लक़ एक दिन में करता था
ऐसा न्यायप्रिय और आदर-सत्कार करने वाला
कोई दूसरा मुहम्मद तुग़लक़ की बराबरी नहीं कर सकता
कोई सप्ताह भी ऐसा नहीं बीतता था जब यह सम्राट ईश्वर-भक्तों माननीयों धर्मात्मा सैयदों वेदान्तियों साधुओं और कवियों-लेखकों को न बुलवाता हो
और उनका वध करके
रुधिर की नदियाँ न बहाता हो
विद्वानों कवियों लेखकों विचारकों को
मुहम्मद तुग़लक़ ईनाम देकर मार देता था
या तेग़ से उनका सर काट देता था
मुहम्मद तुग़लक़ उनको दोनों तरह से मार देता था !
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9इस देश के बंजारे
जिप्सियों का भेस धरकर
पूरी पृथ्वी की परिक्रमा करते हैं
सिकंदर लोदी के समय
जिन्हें खदेड़ा गया था अपने देश के बाहर
कल के बंजारे
आज के जिप्सी
उतने ही चंचल मदमस्त
गीत गाते हुये परिव्राजक
उनकी दृढ मान्यता है कि
अंतिम जिप्सी व्यक्ति
पाश्चात्य दुनिया के बिखरे हुये खंडहरों से
अपना रास्ता खोजते हुये
अपने खोये हुये देश भारत लौटेगा
यह महादेश
निर्वासित बंजारों का गंतव्य है !
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10शताब्दियों बाद आज भी
वह पुष्करणी प्रवाहित है
जिसमें कभी वैशाली की नगरवधू
अपने चरण पखारती थी
खरौना पोखर की निर्मल जल-धारा में
आज भी आम्रपाली की
देह-गंध बसी हुई है
वह अपार-सौंदर्य
बुद्ध की अपार-करुणा के सिवा कहाँ समाता
और काल की क्रूर सड़क पर
साइकिल का चक्का दौड़ाता हुआ
वह नंग-धड़ंग बच्चा !
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11इस देश का समस्त प्राच्य-साहित्य
उत्कृष्ट श्रेणी की मेधा
और उत्कृष्ट श्रेणी की ठगी के मिश्रण से बना
बेसुध कर देने वाला आसव है
यह कोई कम करामात नहीं कि
शतपथ ब्राह्मण में यज्ञ-याग को
कितनी कुशलता से रंग-राग में बदल दिया गया है :
हे गौतम स्त्री अग्नि है उसकी इन्द्रियाँ समिधा है लोम धुंआ है योनि लौ है सहवास अंगारा है और आनन्द चिंगारियाँ हैं
इस अग्नि में देव वीर्य आहुति से पुरुष उत्पन्न होता है जब तक आयु है जीता है
मरने पर उसको अग्नि तक ले जाते हैं
इस महादेश में कामक्रीड़ा भी एक तरह का यज्ञ थी
और यज्ञ भी एक तरह की कामक्रीड़ा !
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12कितने रजवाड़े मिट गये
कितने साम्राज्य ढ़ह गये
कितने राजप्रासाद ढ़ेर हो गये
कितने राजा बादशाह सामन्त सुलतान शहंशाह वज़ीरे-आज़म और राष्ट्राध्यक्ष
इस महादेश की मिट्टी में मिल गये
फिर आता है कोई नया तानाशाह
सत्ता-मद में चूर
लोकतंत्र का नगाड़ा बजाता
भड़कीले वस्त्रों में भड़कीली भाषा बोलता हुआ
जिसे देखकर डर लगता है
कलेजा कांप जाता है
उसका भयानक हश्र देखकर
किसी से भी पूछकर देखो
इस देश की गली-गली में भविष्य-वक्ता पाये जाते हैं !
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