भारत विविधताओं का देश है। उसकी यह विशेषता उसे हर क्षेत्र
में विकास की आरे अग्रसर करने में सक्षम रही है। उसकी अनेकता उसे एकता के सूत्र में
बांधती चली आ रही है। यही कारण है कि समूचे विश्व में भारत ही एकमात्र ऐसा देश है कि
जिसमें विभिन्न भाषाएँ बोली जाती है।
संविधान में प्रारम्भ में 15 भाषाओं को स्वीकृत किया गया था, जिन्हें राजकीय स्तर पर मान्यता भी मिली थी। संविधान
में समय-समय पर हुए संशोधनों ने अब इन भाषाओं की संख्या 22 हो चुकी है। इन भाषाओं में हिंदी,
असमिया, बंगला,
गुजराती, कन्नड़,
कश्मीरी, मलयालम,
मराठी, उडि़या,
पंजाबी, संस्कृत,
सिंधी, तमिल,
तेलगू, उर्दू,
नेपाली, मणिपुरी,
कांेकणी, मैथिली,
संथाली, बोडो,
डोगरी, भाषाएँ प्रमुख हैं।
वैदिक भाषा ही प्राचीन भारतीय आर्यभाषा मानी जाती है। यह
वही भाषा हे जो युगों से संस्कृत,
पालि,
प्राकृत और अपभ्रंश हिंदी नामों से
विख्यात हो गई है। भारत में हिंदी लगभग 60 करोड़ जनों की संपर्क भाषा है।
वास्तव में हिंदी भाषा को हिंदी नाम सबसेे पहले ईरानियों
ने दिया। लगभग ढाई हजार वर्ष पहले ईरान में भारत के लिए जो शब्द प्रचलित किया गया वह
मुख्य रूप से हिंदी शब्द का सिंधु नदी के संपूर्ण भू-भाग को ‘हिंदी’
कहा गया, वहाँ के निवासी ‘स’
का उच्चारण ‘ह’
से करते थे, इसी कारण ‘सिन्ध’ को ही आगे ‘हिंद’
कहा गया और हिंद की भाषा हिंदी कहलाई।
फिरदौसी,
अलबरूनी, अमीर खुसरो,
अबुल फजल, आदि ने हिंद शब्द का प्रयोग ‘हिंद’
की भाषा के अर्थ में किया है। इसी
के आधार पर हिंद शब्द की उत्पत्ति मानी जाती है।प्राचीन हिंद क विकास में तुर्की, फारसी और अरबी,
के शब्द सम्मिलित होने लगे, उस समय अपभ्रंश में तुर्की, अरबी,
फारसी शब्दों की संख्या सौ के लगभग
थी, किन्तु उस समय उत्तर भारत में मुसलमानों
का प्रभाव बढने लगा,
इससे प्राचीन हिंदी में रचनाएँ होने
लगी। ‘अमीर खुसरो’ ने अपनी रचनाओं में अधिक से अधिक हिंदी शब्दों का प्रयोग
किया।
छठी शताब्दी में हिंदी शब्द का पुनः विस्तार हुआ। इस समय
मध्यकालीन अरबी तथा फारसी साहित्य में भारत की संस्कृति, पाली,
प्राकृत और अपभ्रंश के लिए ‘जबाने हिंद’
शब्द का प्रयोग किया जाने लगा।
मध्यकाल के विकास में इस काल का अपना विशेष महत्व है। उस
समय संपूर्ण भारतवर्ष में तुर्कों का राज्य स्थापित हो चुका था। यह स्वाभाविक है, जिस समय जिसका शासन काल होता है, वह चाहे मुस्लिम हो या हिंदू वह अपने शासन काल में अपनी
मातृभाषा का प्रयोग करने के लिए सदैव उद्यत रहते हैं। इसी कारण मुस्लिम शासकों ने अपने
शासनकाल में अरबी व फारसी भाषा का प्रयोग किया। शासन की भाषा फारसी होने पर हर क्षेत्र
में फारसी का प्रयोग किया जाने लगा, किन्तु फारसी शब्दों के साथ-साथ हिंदी भाषा का अधिक प्रयोग
किया जाने लगा। मुगलों ने भारतीय सभ्यता को अधिक महत्व दिया, उन्होंने पंडित वर्ग में संस्कृत भाषा को महत्व दिया, किन्तु जन मानस मे अवधी व ब्रज भाषा की प्रधानता सदैव
बनी रही।‘हिंदी और हिंदवी’ का अर्थ एक ही है,
एक शब्द हिंद से उत्पन्न हुआ है, तो दूसरा हिंदू से हिंद और हिंद के निवासियों को ही
हिंदू कहा जाता था। हिन्दुस्तान के अर्थ हैं ‘हिंदुओं का देश’, हिंदी,
हिंदू, हिंद,
हिंदुस्तानी ये सब नाम मुसलमान शासकों
के मुस्लिम लेखकों की देन हैं। यही कारण है कि मध्य देश की भाषा हिंदी कही जाने लगी।
आधुनिक काल में अंग्रेजों का राज्य स्थापित होने से भारत
में अवधी ब्रज भाषा धीरे-धीरे कम होने लगी। उसका स्थान खड़ी बोली ने ले लिया था। सन्
1800 ई0 में कलकत्ता में फोर्ट विलियम कालेज की स्थापना की
गई। विलियम प्रशासन ने हिंदी,
हिंदवी, हिंदुयी,
खड़ी बोली, ठेठ हिन्दी आदि नाम सर्वाधिक प्रचलित होने के कारण भारत
उत्तर पश्चिम की भाषा के लिए हिंदी नाम हो ही श्रेष्ठ माना।
उन्नीसवीं सदी में अंग्रेज सम्पूर्ण उत्तर भारत में बस
चुके थे। यद्यपि वे हिंदी से अनभिज्ञ थे,
किंतु राज्य स्थापित करने व राज्य
के विकास के लिए उन्हें हिंदी सीखना अत्यन्त आवश्यक हो गया। ‘खड़ी बोली’
का आदर्श रूप प्रस्तुत करने के लिए
लल्लू लाल ने प्रेम सागर व सदल मिश्र ने नासिकेतोपाख्यान की रचना की। गद्य साहित्य
में ‘खड़ी बोली’ प्रचार का श्रेय भारतेंदु हरिश्चन्द्र को दिया जाता
है। ‘खड़ी बोली’ के प्रचार में भारतेंदु हरिश्चन्द्र के बाद ‘महावीर प्रसाद द्विवेदी’
का नाम आज खड़ी बोली को जो रूप हमारे
सामने मुखरित हो रहा है;
वह केवल उत्तर प्रदेश में ही नहीं
संपूर्ण भारत की राजभाषा के रूप में प्रतिष्ठित हो चुकी है।
वर्तमान समय में हिंदी की जो स्थिति है उसके दो रूप हमारे
सामने हैं, एक राजभाषा और दूसरी शिष्ट यानी साहित्य
की भाषा। साहित्य हमेशा वही लोकप्रिय होता है,
जो भाषा में लिखा हो। उसका प्रचार
प्रसार भी अधिका हो। तुलसीदास का रामचरितमानस व सूरदास कृत सूरसागर इसके प्रमुख उदाहरण
हैं। इसकी लोकप्रियता बढ़ने का प्रमुख कारण टेलीविजन है। इसके साथ-साथ हिंदी भाषा का
भी प्रचार होने लगा।आजादी से आज तक यही सवाल सामने आया है कि राष्ट्रभाषा क्या है।
इस पर विचार विमर्श अनेक गोष्ठियाँ होती आईं है। किंतु आज भी हिंदी को राष्ट्रभाषा
बनाने में अनेकों समस्याएँ,
उत्पन्न हो रही है।
संविधान के 17वे अनुच्छेद में ‘राजभाषा’
के रूप में हिन्दी को ही स्वीकार
किया गया। इसकी लिपि देवनागरी मानी,
साथ ही भारतीय अंकों को अन्तर्राष्ट्रीय
रूप में भी अपनाया गया। 1950,
1952 व 1960 में राष्ट्रपति ने अध्यादेश जारी किया, जिसमें राजभाषा हिंदी को कुछ लोगों में अनिवार्य घोषित
किया गया। शिक्षा मन्त्रालय में एकरूपता लाने के लिए मानक शब्दकोश बनाने के प्रयास
किए गए। इसके अलावा केन्द्र सरकार व राज्य सरकार के सभी कर्मचारियों के लिए हिंदी का
ज्ञान होना अनिवार्य कर दिया गया। चूंकि हिन्दी एक विशाल भू-भाग की भाषा है, अतः इसकी सभी प्रयुक्तियों की शब्द बोलियों में काफी
असमानता रही है। हिंदी के प्रचार-प्रसार में और संघ के विभिन्न सरकारी प्रयोजनों के
लिए उसके क्रमिक प्रयोग में तेजी लाने के लिए अनेकों विस्तृत कार्यकम किए जा रहे हैं।
जिसे हम आज हिंदी कहते हैं,
वह अन्य प्रान्तीय भाषाओं का मिलाजुला
रूप है। स्वतंत्रता के बाद से ही हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए विचार किया गया, किंतु इस पर अनेकों विरोध हुए, तब से आज तक प्रशासनिक कार्यों में हिंदी की स्थिति
सुधारने के लिए, अनेकों कार्यक्रम किए गए हैं। किंतु
आज भी हिंदी का वही रूप सामने है जो स्वतंत्रता के समय था।भारत में प्रशासन के क्षेत्र
में हिंदी का विकास दिनों-दिन बढता जा रहा है। हिंदी के विकास के रूप में बालगंगाधर
तिलक ने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए अनेक आंदोलन किए, इसी से प्रशासन द्वारा 14 सितम्बर को प्रतिवर्ष हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता
है।
हम लोगों को एकता के सूत्र में बांधने के लिए गाँधी जी
ने इसे राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया,
हिंदी भाषा के बिना सब कुछ अधूरा
है। हम अंग्रेजी को अधिक महत्व देकर अपनी मातृभाषा हिंदी को भूलते जा रहे हैं। जब इग्लैण्ड, चीन,
अमेरिका की अपनी राष्ट्रभाषा होती
है तो हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी क्यों नहीं हो सकती है?
अतः हमें घर, कार्यालयों,
समाज सभी जगहों में हिंदी को दैनिक
प्रयोग में लाना चाहिए।
15 सितम्बर,
2005 को राष्ट्रभाषा संदेश पत्र में हिंदी के विषय में प्रधानमंत्री
डॉ.मनमोहन सिंह ने यह भरोसा दिलाया कि हिंदी शीघ्र संयुक्त राष्ट्र की अधिकारिक भाषा
बन जाएगी। इसके लिए उन्होंने सरकारी कामकाज में हिंदी के ज्यादा से ज्यादा प्रयोग पर
बल दिया, उन्होंने भी इस बात पर चिन्ता व्यक्त
की कि विज्ञान और तकनीकि शिक्षा में भी हिंदी को उतना महत्व नहीं दिया जाता है, जितना दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा जब तक विज्ञान
और तकनीकि शिक्षा हिंदी के माध्यम से नहीं होती,
तब तक इस भाषा का संपूर्ण रूप से
विस्तार नहीं हो पाएगा। इसके लिए उन्होंने हिंदी भाषा को अत्यन्त सरल बनाने के विषय
में लिया है। प्रधानमंत्री ने हिंदी के प्रचार-प्रसार में टेलीविजन के योगदान की चर्चा
करते हुए कहा कि इससे हिंदी की लोकप्रियता बढ़ी है। प्रशासन में हिंदी की स्थिति सुधारने
में हमें हिंदी का अधिक से अधिक प्रयोग एवं विस्तार करना होगा।
सन्दर्भ-
1. राष्ट्रभाषा संदेश,
पत्रिका, 15 अक्टूबर, 2005 संपादक विभूति मिश्र।
2. हिन्दी भाषा का इतिहास,
डाॅ. केशव दत्त रूवाली (भारतीय आर्यभाषा
हिंदी)
3. राष्ट्रभाषा संदेश,
पत्रिका, 30 नवम्बर, 2005 संपादक विभूति मिश्र।
4. राष्ट्रभाषा संदेश,
पत्रिका, 15 अक्टूबर, 2005 संपादक विभूति मिश्र।
5. राष्ट्रभाषा विवधा,
डाॅ. मणिक मृगेश।
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