Friday, December 19, 2014

अमित श्रीवास्तव की एक कविता - आओ करके देखें



कविता में प्रयोग एक पुराना पद है। कभी-कभी वह नए आशय के साथ प्रकट होता है तो ध्यान खींचता है। दुनिया बदल गई है। पुरानी वैचारिक चुनौतियों में नई चुनौतियां शामिल हैं, कई बार वे पुरानी के लिए भी चुनौती हैं। अमित की यह कविता मिली तो कई ख़याल आए। उन्हें अभी मुल्तवी रखते हुए इस कविता को पाठकों के हवाले करता हूं। 
  
नीचे अमित की नई किताब का बैककवर है, मुख्य आवरण बाद में प्रकाशक जारी करेंगे। 


 
आओ करके देखें
एक नाम लें
उसे आधा आधा काट दें
अगला हिस्सा सहेज रखें
सीने के पास वाली जेब में
(या किसी सरौते के नीचे दें फर्क क्या)
दूसरा
यानि कि पिछ्ला हिस्सा
खोंस दें सभ्यता की आँख में
और ये जानें कि
टपकती बूँद लहू की के क्या माने
`जाने तू या जाने ना’
 
एक शीशे का जार लें
और कुछ चीजें
मसलन मेड़ पर गिरी किसी चिड़िया का खून
किसी हल की मूठ का पसीना
कारखाने का धुआं
होटल के पिछवाड़े फिंकी जूठन
कोई गाली, जो किसी दिन, महीने, साल या रिश्ते के तहत न दी गयी हो
एक मुट्ठी नमक
और एक चुल्लू शर्म
अब ढक्कन लगाएं और हिलाएं
खूब मिलाएं, देखें अब
कि शकल बनती है आत्महत्या की, या
पेड़ से लटकती धोती
`मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोती’

एक हथेली आगे करें
उसमे से लकीरें निकाल धर दें अलग
एक बूँद लें पसीने की दो खून की बूदें 
उस सपाट सफ्फाक हथेली पर डाल दें
खूब रगड़ें दोनों हथेलियों को मसल
सूंघकर देखें
किसी मरे हुए सपने की बू आती है
या नक्शा उभरता है अहद का कि जब सच
अपने ही अक्स से शर्मसार है
`ये क्या जगह है दोस्तों ये कौन सा दियार है’  

दीजिये तीन आसान सवालों के जवाब और जीतिए मौक़ा सलमान खान से मिलने का

यदि आपकी नाक के आगे धर्म निरपेक्षता है
दाहिने बाजू
आगे से घूमकर आया प्रजातंत्र
बाएं बाजू पीछे से मुड़कर पहुंचा समाजवाद
तो तीन तरफ तो रहे ये ससुरे तीन तिगाड़े काम बिगाड़े
तो क्या बचा आपके पिछवाड़े ?

सफ़ेद दाढ़ी,
भगवा चोला,
फतवा,
टोपी गोल,
कमंडल,
मुनादी,
अकल,
भैंस,
ओएलएक्स
भरा किसी की घड़ा क्या
इसमें सबसे बड़ा क्या?

मेरी बाईं आँख में रतौंधी है
दाहिनी ललछौर
नाभि में अखंड अपच हुआ पड़ा
किधर भी लुढकता है संतुलन
पैरों में बिवाइयां
बिवाइयों में भरा मवाद
धत्तेरी खवैये के न आये सवाद  
कहीं न पहुँचने की जल्दी थी
अब कहीं न पहुँचने की थकान
मेरी उम्र क्या हुई भाईजान?
***

5 comments:

  1. क्या गज़ब कवितायें है, कल्पना से बाहर, शीशे के जार की मिलावट और फिर हथेली में ... दुसरे में उम्र का हिसाब क्या खूब ... निःशब्द

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  2. Samay ko aayina dikhati shaandaar moulik kavita....Dhanyavaad!
    - Kamal Jeet Choudhary

    ReplyDelete

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