अनुनाद

अनुनाद

तीसरी बेटी का हलफ़नामा व अन्‍य दो कविताएं – सोनी पांडेय


सोनी पांडेय उन कवियों में हैं, जिनसे मैं फेसबुक पर मिला। वहां उनके बारे में बस इतना जाना कि वे गृहिणी हैं, शिक्षण कार्य करती हैं और गाथान्‍तर नाम से एक पत्रिका सम्‍पादित व प्रकाशित कर रही हैं। दरअसल जिसे ‘इतना’ कहा उसमें एक आम भारतीय स्‍त्री के जीवन का आख्‍यान है। गृहिणी को गृहस्‍थी और आजकल आम हो चुके शिक्षकीय रोज़गार से बाहर निष्क्रिय या उदासीन मान लिए जाने का गुनाह समाज में आम है – जिसमें भीतर कहीं उसे ‘निष्क्रिय या उदासीन’ कर देने का गूढ़ार्थ भी उपस्थित है। हमारा समाज जीवन शैली के बदलावों के बावजूद अपनी दाग़दार आत्‍मा में आज भी कमोबेश वही पुराना समाज है – समाज की आत्‍मा से इन दाग़ों को मिटाने के अकादमिक विमर्शवादी प्रयास ख़ूब चलते हैं लेकिन इनके विरुद्ध भीतरी उजास पैदा करने वाली शक्तियों की शिनाख्‍़त उतनी ही कम होती है या कभी जानते-बूझते छोड़ भी दी जाती है। हमारा लेखकीय समाज इसी वृहद् समाज के भीतर अपनी तमाम आधुनिकता के बावजूद उसी का अनुकरण करने वाला एक सीमित दायरे वाला समुदाय भर साबित हुआ है। सोनी पांडेय की कविताएं मुझे मिलीं तो मुझे उस भीतरी शक्ति का अहसास हुआ, जिसका मैंने उल्‍लेख किया। समाज के भीतर एक दायरे में रहने के वचन निभाते हुए भी उसका रचनात्‍मक अतिक्रमण कर जाने का दृश्‍य निश्चित रूप से एक सुखद और आश्‍वस्‍त करने वाला दृश्‍य है। यहां अपने जीवन की तरह ही संघर्ष करती सादा कविताएं लिखी जा रही हैं, एक स्‍वप्‍न का प्रकाशन पत्रिका के रूप में हो रहा है – रोज़मर्रा के काम में लगी एक स्‍त्री बहुत सादगी से अपने आसपास के पार‍म्‍परिक जीवन को खंगालती हुई उसे चुपचाप बदल दे रही है। यह निजी लगती कार्रवाई किसी सामाजिक आन्‍दोलन से कम अहमियत नहीं रखती। मैं इन कविताओं के लिए आभार व्‍यक्‍त करते हुए अनुनाद पर सोनी पांडेय का स्‍वागत करता हूं।   

*** 
बेटी
का हलफ़नामा

 
1.
 
मैं जानती हूँ
वो रात अमावस थी
अम्मा के लिए ,
आपके लिए प्रलय की थी
जब में आषाण में
श्याम रंग में रंगी
बादलों की ओट से
गिरी आपके आँगन में ।

माँ धंसी थी
दस हाथ नीचे धरती में
बेटी को जन कर
बरसे थे धार धार
उमड़ घुमड़ आषाण में
सावन के मेघ
अम्मा की आँखों से
कहा था सबने
एक तो तीसरी बेटी
वो भी अंधकार-सी
और मान लिया आपने
उस दिन से ही
मुझे घर का अंधियारा
मनाते रहे रात दिन
तीसरी बेटी का शोक।
***

2.
 
माँ ने विदा करते समय
मेरे आँचल के छोर पर
तीन गाँठ बाँधे थे
कहा था
पहला तुम्हारे पिता का सम्मान है
दूसरा भाई का मान है
तीसरा बेटी मेरी लाज
जिसे बचाना
बना लेना छाती को वज्र
मार देना इच्छाओं को
सह लेना अनगिनत
अनिच्छाओं को
खोलना मत ये गाँठ
रहते जीवन तक
और बडी जतन से
मैं आज भी रखती हूँ
माँ की तीन गाँठों को
माँ की थाती को
***
3.
 
माँ मुझे याद है
जब तुमने रातों-रात
सिली थी सफेद झालरों वाली
फ्रॉक
ताकि स्कूल में मैं बन सकूँ नन्हीं परी सिन्ड्रेला
मेरे घने बालों में बाँधते हुऐ सफे़द रिबन तुम्हारे आँखों से
बरसा था दो बूँद अमृत
गिरा था मेरे ओंठों पर
और तब मैंने जाना था
उसका स्वाद नमकीन होता है
मुझे याद है आज भी जब मेरा रंग आडे़ आता था
तुम करती थीं यत्न गढ़ने का सिन्ड्रेला की कहानी
और बडे जतन से पहनाती थीं
सफे़द झालरों वाली फ्राक
तुम दिलाती रही तब तक मुझे
यक़ीन की तुम्हारी सांवली परी
सिन्ड्रेला है
जब तक मुझे एहसास न हुआ
कि रंग ढक देता है गुणों को
और आँखों की बरसात का
स्वाद कसैला भी होता हैँ
***
अन्‍य दो कविताएं
1.
 
मेरे घर के सामने की सड़क
जाती है ,
मन्दिर .मस्जिद, गुरुद्वारे और
गिरजाघर तक
जहाँ से मुझे केवल एक आवाज सुनायी देती है
सुनो !
गीता . कुरान , बाईबिल और
गुरुग्रन्थ से एक ही धुन निकलती है
जिसका भाव अर्थ केवल मनुष्यता है
जिसका एक लक्ष्‍य केवल मनुष्यता है।
ये सडक़ मिलती है
अस्पताल , कब्रगाहों और मशानों से
ये सड़क रौंदी जाती है सफे़द पोशों के जूते की धमक से
ये सड़क जहाँ भागती है ज़िन्दगी
जहाँ जागती है
ज़िन्दगी
अब खो रही है अपना वजूद
मूक वेदनाओं का इतिहास समेटे
मर रही है
जो जोडती थी शहर दर शहर
मनुष्य को मनुष्यता से ।
***
 
2. 
 
तुम जब – जब
मुझमें खजुराहो का शिल्प
तलाशोगे
मैं पाषाण प्रतिमा की तरह निर्विकार ही नजर आऊँगी
और तुम शिल्पकार की तरह
सदियों से अपने पौरुष के दंभ की छेनी हथौडी लिए
उकेरते रहोगे
अर्थहीन मौन
जिसमें केवल कला पक्ष होगा
भाव पक्ष समाधिस्थ
***


0 thoughts on “तीसरी बेटी का हलफ़नामा व अन्‍य दो कविताएं – सोनी पांडेय”

  1. सोनी पाण्डेय जी की कवितायेँ नारी के मन की भावनाओं का सही चित्रण करती हैं .इनको पढ़ते हुए लगता है की जैसे यह मेरे ही ह्रदय की बात हो . कविताओं का शिल्प भी बहुत सुन्दर है …. वंदना बाजपेयी

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!
Scroll to Top