के पी सिंह नामक एक सज्जन ने मुझे आठ कविता वालपेपर अपनी इस टिप्पणी के साथ भेजे हैं - ''इस तरह फोटोशाप वाले पोस्टर हाथ के बने पोस्टरों के सामने दरअसल कोई स्थान नहीं रखते, वे आन्दोलन की तरह होते थे। पर शायद इस तरह के पोस्टर कम्प्यूटर के वालपेपर की तरह ही काम आ जाएं। मैंने खुद फेसबुक से ऐसे कई पोस्टर लेकर वालपेपर बना रखे हैं। उन्हीं से ऐसा जुगाड़ करने की प्रेरणा मिली। इन्हें भी अपने लैपटाप पर वालपेपर की तरह प्रयोग करने के लिए ही बना रहा हूं।'' मुझे ये पोस्टर बहुत सरल भाषा में कहूं तो सुन्दर लगे। इनमें रघुवीर सहाय की दो, वीरेन डंगवाल की एक, गिरिराज किराड़ू की एक, बल्ली सिंह चीमा की एक और मेरी तीन छपी-अनछपी कविताएं हैं। अशोक और केशव भाई के हवाले से सुना है कि के पी सिंह आजकल ही फेसबुक पर प्रकट हुए हैं और काफी हलचल मचाए हुए हैं। ख़ैर अब वो मेरी गली नहीं रही। इन पोस्टर्स को मूल बड़े आकार में देखने के लिए इमेज पर क्लिक कीजिए।
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बढ़िया कविताएँ,अच्छे पोस्टर्स
ReplyDeleteवाह, सुन्दर चित्र
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