अनुनाद

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नित्‍यानन्‍द गायेन की पांच नई कविताएं

कविता का नियमित पाठक और कार्यकर्ता होने के नाते मैं कहना चाहता हूं कि युवा कवि नित्‍यानन्‍द गायेन की कविताओं ने पिछले कुछ समय से मुझे निरन्‍तर प्रभावित किया है। जाहिर है कि मैं अकेला नहीं हूं, हिन्‍दी कविता के इलाक़े में उनकी बहुत स्‍पष्‍ट पहचान बन चुकी है। वे ज़मीनी हक़ीक़तों को ज़मीनी ज़बान में बयां करने वाले कवि हैं….बहुत सादा लेकिन पारदर्शी और उतने ही मर्मस्‍पर्शी अभिप्रायों से घिरी उनकी कविताएं हिन्‍दी में नई-नई और अलग-सी हैं। उनकी कविताओं का अनुनाद को कब से इंतज़ार था। कवि को यहां अपनी महत्‍वपूर्ण उपस्थिति दर्ज़ कराने के लिए शुक्रिया।    

*** 


गांवों का देश भारत


नर्मदा से होकर
कोसी के किनारे से लेकर
हुगली नदी के तट तक
रेतीले धूल से पंकिल किनारे तक
भारत को देखा
गेंहुआ रंग , पसीने में
भीगा हुआ तन
धूल से सना हुआ चेहरे
घुटनों तक गीली मिटटी का लेप
काले -पीले कुछ कत्थई दांत
पेड़ पर बैठे नीलकंठ
इनमें देखा मैंने साहित्य और किताबों से गायब होते
गांवों का देश भारत
दिल्ली से कहाँ दीखती है ये तस्वीर …?
फिर भी तमाम राजधानी निवासी लेखक
आंक रहे हैं ग्रामीण भारत की तस्वीर
योजना आयोग की तरह ….

*मध्य प्रदेश से होकर बिहार,बंगाल की यात्रा के बाद लिखी गई एक कविता

***

ज़मीर से
हारे हुए लोग
 

उन्होंने खूब लिखा सत्य के पक्ष में 
किन्तु यह सत्य 
औरों का था 
उन्होंने सार्वजनिक बयान दिया 
कि नही हटेंगे सत्य के मार्ग से 

फिर एक वक्त आया 
उन्हें परखने का 
जैसा हम सबके जीवन में आता है 
कभी न कभी 
अपने स्वार्थों के खातिर वे खामोश रहें 
सत्य ने उन्हें पुकारा 
कि फिर
दोहराव
 
अपना पक्ष 
किन्तु  उन्हें डर था, कि 
सच बोलने पर बिखर जायेंगे रिश्ते 
और पूरे नही होंगे कुछ सपने 

किन्तु सत्य ने हार नही माना 
सदा की तरह अडिग रहा 
पर
इसी तरह सत्य ने भी देख लिया उनका चेहरा 
और 
एक नाम दिया उन्हें 
ज़मीर से हारे हुए लोग  ||

***

टूटी नही है प्रतिबद्धता

समय के कालचक्र में रहकर भी 
टूटी नही है कवि की प्रतिबद्धता
उम्र कुछ बढ़ी जरूर है 
पर हौसला बुलंद है 
बूढ़े बरगद की तरह 

नई कोपलें फूटने लगी है फिर से 
उम्मीदे जगाने के लिए 
उन टूट चुके लोगों में …
कमजोर पड़ती क्रांति
फिर बुलंद होती है

कवि भूल नही पाता
अपना कर्म
कूद पड़ता है फिर से
संघर्ष  की रणभूमि पर
योद्धा बनकर 

तिमिर में भी लड़ता एक दीया 
तूफान को ललकारता 
लहरों से कहता –
आओ छुओ मुझे 
या बहाकर ले जाओ 
हम भी तो देखें 
हिम्मत तुम्हारी ….
*** 

होली और तुम्हारी याद

वे सारे रंग
जो साँझ के वक्त फैले हुए थे
क्षितिज पर
मैंने भर लिया है उन्हें अपनी आँखों में
तुम्हारे लिए

वर्षों से किताब के बीच में रखी हुई
गुलाब पंखुड़ी को भी निकाल लिया है
तुम्हारे कोमल गालों के गुलाल के लिए

तुम्हारे जाने के बाद से
मैंने किसी रंग को
अंग नही लगाया है
आज भी  मुझ पर चड़ा हुआ है
तुम्हारा ही रंग
चाहो तो देख लो आकर एकबार
दरअसल ये रंग ही
अब मेरी पहचान बन चुकी है

तुम भी  कहो  कुछ
अपने रंग के बारे में ….
***

आपके ये बंदर बड़े पाजी निकले 

गरीबी, भुखमरी
आत्महत्या, शोषण
के बीच
हमने की न्याय की अपील
उन्होंने दोनों हाथों से ढक लिया
अपने कानो को

जीर्ण–जीर्ण होते तन
भूख से बिलकते बच्चों की तस्वीरें
देखकर
दोनों हाथों से ढक लिया
उन्होंने अपनी आँखों को
हमने याद दिलाया, कि
देश की आज़ादी में
हमारे पूर्वजों ने दी थी कुर्बानी
उन्होंने होठों पर उंगली रखकर
खामोश रहने का इशारा किया

आ रहा है  आज मुझे
क्रोध
‘बापू’ के ‘तीन बंदरों’ पर
आपके बंदर बड़े पाजी निकले  ||
****

नित्यानंद गायेन
4-38/2/B, R.P.Dubey Colony,
Serilingampalli, Hyderabad -500019.



Mob-09642249030

0 thoughts on “नित्‍यानन्‍द गायेन की पांच नई कविताएं”

  1. सारी कवितायेँ अपनें आप में लाजवाब हैं, और कड़वी हक़ीक़त के मुंह पर तमाचा हैं/
    नित्यानंद भाई हमेशा से ज़ुल्म के खिलाफ और इंसाफ के हक़ में लिखते रहें हैं, जिसके लिए वो तारीफ़ के हक़दार हैं/
    सलमान रिज़वी

  2. "गांवों का देश भारत", जमीर से हारे हुए लोग", "आपके ये बंदर बड़े पाजी निकले" और "टूटी नहीं है प्रतिबद्धता" कवि के रूप में नित्या की बढ़ती परिपक्वता का साक्ष्य प्रस्तुत करती हैं. "होली और तुम्हारी याद" अलग रंगत की कविता है, पर बहुत मन-भावन है. नित्या को दिली मुबारकबाद !

  3. अपने समय के एक आदर्श कवि की बहुमूल्य टिप्पणी के साथ मेरी कविताओं का 'अनुनाद' जैसे चर्चित ब्लॉग पर स्थान मिलना मेरे लिए एक महत्वपूर्ण बात है | मैं ह्रदय से आपके प्रति आभार प्रकट करता हूँ इस सम्मान के लिए |
    आपका
    नित्यानंद
    सादर

  4. आज अच्छी कविताएं पढ़ने का दिन है शायद। पहली कविता और पाजी बंदर तो बहुत अच्छी लगी।

  5. मित्र शिरीष की इस टिप्पड़ी में मैं अपनी बात भी शामिल करता हूँ | यह और भी ख़ुशी की बात है , कि गैर-हिंदी प्रदेश से आने और एक गैर-हिंदी प्रदेश में रहने के बावजूद नित्यानंद हिंदी में अपनी यह जगह बना रहे हैं | सहज ढंग से संप्रेषित हो जाने वाली कवितायें लिखने वाले इस कवि को हमारी बधाई | हां…. पहली कविता बहुत अच्छी है ..उसके लिए विशेष बधाई मित्र ..|

  6. नित्‍यानन्‍द भाई ऐसी कोई बात नहीं…. आपकी कविताएं बहुमूल्‍य हैं, न कि मेरी टिप्‍पणी। अनुनाद अपने कवियों को धन्‍यवाद देता है… आपको भी पुन:

  7. नित्‍यानंद इधर की पीढ़ी में मेरे प्रियतम कवियों में हैं। उनके पास जैसी दृष्टि है वह अपने में इतनी अलग है कि कई बार चकित करती है… लेकिन सबसे महत्‍वपूर्ण बात यह है कि उनकी कविताएं बिना किसी शोरोगुल के अपनी वाजिब बात कहती हैं और ध्‍यान आकर्षित करती हैं। मेरी शुभकामनाएं और शिरीष भाई का शुक्रिया इस प्रस्‍तुति के लिए।

  8. सभी कवितायेँ बहुत परिपक्व और सच के बेहद करीब हैं। बेहतरीन लेखन। शुभकामनायें।

  9. नित्यानंदजी सचमुच अद्भुत लिखते हैं ,दिल में आग लेकर निकला हुआ ये यायावर जल्द गंतव्य पाए ,बहुत बहुत शुभकामनाएँ

  10. अद्भुत कविताएँ ! हर कविता में एक विशेष रंग, ढंग और प्रस्तुति । आगे भी लिखते रहिये । आपसे हिंदी काव्य जगत को बड़ी आशाएं हैं ।

  11. सरल भी – कठिन भी .. सीधी भी – वक्र भी — दोनों एक साथ …नितयानादजी का रंग अनूठा है….पहली कविता पढ़ कर सहज ही बाबा नागार्जुन की कल्कत्ते की ट्राम याद आ गई…इस बार की रेल यात्रा का पूर्ण आनंद लिया आपने …वाह….बंदर वाकई पाजी निकले…बधाई …

  12. संप्रेषणीयता कविता की सबसे बड़ी ताकत होती है और वह आप की कविताओं में है

  13. nityanand ji ke pas kavita ki koi takneek nahin hai jo ki achcha hai .ve jivan kram men jin cheejon se samvedit hote hain usi ko apne rang-roop men rachne pakdane ki koshish karte hain .unhen parh kar lagta hai ki kavita ke liye jaruri cheej unke pas hai aur dheere-dheere ve hindi bhasha ki jatiyta se parichit hote ja rahe hain ….

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