अनुनाद

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सुषमा नैथानी की छह कविताएं

सुषमा नैथानी की कविताएं लम्‍बे अंतराल के बाद अनुनाद पर आ रही हैं। वे उन कवियों में हैं, जिन्‍हें अनुनाद उपलब्धि की तरह देखता रहा है। एक वैज्ञानिक का हिन्‍दी कविता में आना मुझे अग्रज कवि लाल्‍टू की प्रिय याद दिलाता है। सुषमा कम लिखती हैं और अपने लिखे के प्रकाशन को लेकर भी ख़ासे संकोच में रहती हैं। यह संकोच उन्‍हें उस आत्‍मालोचन से मिला है, जिसकी इधर की कविता में कमी होती जा रही है।  उनका पहला संग्रह ‘उड़ते हैं अबाबील’ अंतिका प्रकाशन से छपा है, जिस पर मेरी समीक्षा यहां देखी जा सकती है। 
   
1. कथा सिर्फ कहवैया की गुनने की सीमा 

लालसा के गर्भ से
पहले पहल जन्म लेगा विष ही
अमृत मंथन की संतान
अमृतघट का पता कहीं नहीं
हलाहल सबके भाग
खोजी के लिए जरूरी है कोशिश, काफी नहीं
बाहर निकलने से पहले
बाहर निकलने के बाद भी
फिर-फिर दौड़ते रहना
भीतर-भीतर
भीतर-बाहर
बाहर-भीतर
भटकन के लिए जरूरी है बाहरी भूगोल, पर्याप्त नहीं
कि पर्यटन अन्वेक्षण का पर्याय नहीं
प्रेम में आकुलाहट होगी
सदाशयता का खुलता दरवाजा
और विदा में हिलता हाथ भी
प्रेम में होना आत्महंता होना है
कि प्रायोजित समाज, साहित्य-कला
और तमाम झंझटों के बीचों-बीच
अब भी प्रायोजित किया जाना बाक़ी है -प्रेम
कि प्रेमी पिंजरे में रहते नहीं
अनहोनियों के जंगल में
वटवृक्ष की कतर-ब्यौंत होती नहीं


जीवन में उलट है पाठ्यक्रम
नहीं है सीधी नीतिकथा
धूसर स्मृति और उबड़खाबड़ जीवन के बीच
फिर एकबार
अंत के मुहाने बैठा आरम्भ
फिर एकबार
हरे की इच्छा से तर आत्मा का कैनवस
कल नया दिन होगा
नयी रोशनी होगी
कि काल की गति रुकती नहीं
कहानी कहीं ख़त्म होती नहीं
कथा कहवैया की गुनने की सीमा है
जीवन का महाआख्यान नहीं…
          ***

2. दिल्ली

भाषा ख़त्म होने को है
एक पूरी सभ्यता विदा लेने को
हास्‍य-विद्रूप सजे यथार्थ से संगत की
इस कीच
इस किचकिच में उतरने की
मेरी इच्छा नहीं
दिखे कहीं साँझी जमीन
तो कहें दोस्त!
कैफ़ियत में तकल्लुफ़ के सिरे नहीं
न तबीयत दानिशमंदी की कायल
जाने किस नक्षत्र से झरती
पलकों पर गिरती
नींद
अपना खज़ाना ख़्वाबों का    
ख़्वाबों में डोलती जिप्सी परछाईयाँ
इतनी रात गए दिल के द्वार पर दस्तक
अल्लसुबह तक छाती पर नेह की थपकियाँ
कैसी तो मुहब्बतें
किसकी मुराद
निमिष भर जादू
आने की पुख्ता वज़ह न थी
न लौट जाने की ही
***

3. तुम रामकली, श्यामकली, परुली की बेटी

क्या पता तुम रामकली, श्यामकली
कि परुली की बेटी
तेरह या चौदह की
आयी असम से, झारखंड से
नेपाल या उत्तराखंड से
एजेंसी के मार्फ़त
बाकायदा करारनामा

अब लखनऊ, दिल्ली,
मुम्बई, कलकत्ता,
चेन्नई और बंगलूर
हर फैलते पसरते शहर के घरों के भीतर
दो सदी पुराना दक्षिण अफ्रीका
हैती, गयाना, मारिशस
फिजी, सिन्तिराम यहीं

बहुमंजिला इमारत के किसी फ्लेट के भीतर
कब उठती हो, कब सोती
क्या खाती, कहाँ सोती
कहाँ कपडे पसारती
कितने ओवरसियर घरभर
कभी आती है नींद सी नींद  
सचमुच कभी नींद आती

दिखते होंगे
हमउम्र बच्चे लिए सितार, गिटार
कम्पूटर, आइपेड पर टिपियाते
या दिखता
जूठी प्लेट में छूटा बर्गर-पित्ज़ा
सजधज के सामान
विक्टोरिया सीक्रेट के अंगवस्त्र
लगातार किटपिट चलती अजानी ज़बान के बीच
कहाँ  होती हो बेटी
किसी मंगल गृह पर
मलावी, त्रिनिदाद, गयाना में
तुम किसी  रामकली, श्यामकली, परुली की बेटी
किस जहाज़ पर सवार
इस सदी की जहाजी बेटी*

***
                 *जहाजी भाईयों की नक़ल पर 


4. गिरमिटिया

गिरमिटिया
कि तुम जहाँ हो वहीं रहो
अब, खारे पानी की मछरिया
एक सी बात अब
दोस्तों की चुप्पी
या अजनबी गुफ़्तगू
लौटगे तो आगे चलेंगी
काले  पानी की काली परछईयां
कि अब
ज़ब्त हुयी तुम्हारी ज़मीन
हुये तुम पंगत बाहर
घर से दर-ब-दर
गिरमिटिया
                 कि तुम जहाँ हो वहीं रहो …
         ***

5. बहक
सुनहरी उकाब का पंख है
मिट्टी, बारिश, धूप के रंग है इसमें
खुशबू सुदूर की
पंख है पैना
पंख है टूटा
गीली मिट्टी में बो दूं?
कि लहलहाती  सुनहरी एक झाड़ उग आये
कि सचमुच ही उस पर बैठ कोई चिड़िया गाये…
          ***


6. पतझड़

          धूसर में झरते
          ये पतझड़ के पत्ते
          लाल-नारंगीपीले-भूरे,
          किसी बसंती इच्छा के फूल…..

          ***

0 thoughts on “सुषमा नैथानी की छह कविताएं”

  1. बार बार पढने का सौन्दर्य छिपा है इन कविताओं में.शुक्रिया शिरीष जी इन्हें पढवाने के लिए.सुषमा जी की और कवितायेँ पढने के लिए इस बार,उम्मीद है, अंतराल ज़्यादा लम्बा नहीं होगा.

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