अनुनाद

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बर्तोल्‍द ब्रेख्‍़त की कविता / अनुवाद असद ज़ैदी – आनेवालों के नाम

फेसबुक पर काम करने का कोई ईनाम भी मिलेगा, कभी सोचा न था। पिछले दिनों अपनी पीढ़ी के कवियों को पढ़वाने के लिए बहुत टीस के साथ बर्तोल्‍द ब्रेख्‍़त की एक कविता वाल पर लगाई थी और ईनाम मिला अग्रज कवि असद ज़ैदी की ओर से ! उन्‍होंने इस कविता शानदार हिन्‍दी अनुवाद किया है। अनुनाद इसे यहां लगाते हुए अनुवादक को सलाम करता है।


आने वालों के नाम – बर्तोल्त ब्रेख़्त / अनुवाद: असद ज़ैदी

1.

सचमुच मैं अँधेरे युग में जीता हूँ!
एक मासूम बोल बेवक़ूफ़ी की अलामत है। जिस इन्सान के माथे पर शिकन नहीं
ज़रूर वह पत्थरदिल है। कोई आदमी हँसता है तो
जान लो कि उस तक अभी पहुँची नहीं है
बुरी ख़बर।

आहयह कैसा युग है
जिसमें पेड़ों के बारे में बात करना लगभग जुर्म है
क्योंकि शामिल है इसमें अन्याय के बारे में ख़ामोशी!
और वो शख़्स जो आराम से सड़क पार कर रहा है
क्या वह अपने मुसीबतज़दा दोस्तों की 
पहुँच से दूर नहीं जा चुका?

यह सही है कि मैं अपनी रोज़ी कमाता हूँ
लेकिनयक़ीन करोयह महज़ संयोग है।
मेरा कुछ भी किया मुझे पेट भरने का अधिकार नहीं देता।
इत्तिफ़ाक़न मैं बच निकला। (अगर इस बार क़िस्मत ने साथ न दिया
तो मैं समझो गया।)

वे मुझसे कहते हैं : खाओपियो। मौज मनाओ तुम क़िस्मतवाले हो!
मैं कैसे खाऊँ और पियूँ लेकिन 
कि मेरे हाथ का निवाला किसी भूखे के मुँह से छीना हुआ है
और पानी का यह गिलास किसी प्यास के मारे आदमी का है?
फिर भी मैं खाता हूँ और पीता हूँ।

मैं भी बुद्धिमान होना चाहता हूँ।
शास्त्रों में बताया गया है बुद्धिमत्ता क्या होती है :
संसार के झमेलों से बचकर रहना
जो थोड़ा समय बचा है उसे ठीक से गुज़ार देना
किसी से डरे बिना
बिना हिंसा किये
हर बुराई का जवाब अच्छाई से देना —
कामनाओं को पूरी करने के बजाय भुला देना
यही सब बुद्धिमत्ता के लक्षण हैं।
इनमें से कोई चीज़ मेरे बस की नहीं :
सचमुच मैं अँधेरे दौर में जीता हूँ!

2.

मैं शहरों की तरफ़ आया अशांति के दौर में
जब भूख राज करती थी।
मैं लोगों में आ मिला तो विद्रोह का समय था 
और उनके साथ मैंने भी बग़ावत की।
इस तरह कटा मेरा वक़्त
जो इस धरती पर मेरे नसीब में आया।

क़त्ले-आम के बीच मैंने अपना खाना खाया।
हत्यारों के बीच मैं जाकर सोया।
और प्यार भी किया तो बेमन से।
मैंने प्रकृति पर भी नहीं डाली तसल्ली की नज़र।
इस तरह कटा मेरा वक़्त
जो इस धरती पर मेरे नसीब में आया।

मेरे वक़्त में सारे रास्ते गहरे दलदल में ख़त्म होते थे। 
मेरी ज़बान ने मुझे क़साई के हाथों में सौंप दिया।
मैं किसी का क्या बिगाड़ लेता! लेकिन मेरे बग़ैर
हाकिम और ज़्यादा महफ़ूज़ थे। बस इतनी ही मेरी उम्मीद थी।
इस तरह कटा मेरा वक़्त
जो इस धरती पर मेरे नसीब में आया।

ताक़त हमारे पास कम थी। और हमारी मंज़िल
बहुत दूर 
वह साफ़ दिखाई पड़ती थीहालाँकि मेरा अपना
वहाँ तक पहुँचना मुमकिन न था।
इस तरह कटा मेरा वक़्त
जो इस धरती पर मेरे नसीब में आया।

3.
तुम जो इस सैलाब से उबरे हो
जिसमें हम डूब गए
यह ख़याल रखना —
कि जब हमारी कमज़ोरियों पर बात करो
तो उस अंधेरे दौर को न भूल जाना 
जो तुम्हें न देखना पड़ा।

क्योंकि हम मारे मारे फिरे
जितने हमने जूते बदले उससे ज़्यादा देश बदले।
वर्ग-युद्ध के बीचहताशा से घिरकर
जब सिर्फ अन्याय ही अन्याय था और कोई प्रतिरोध नहीं।

तो भी हम यह जानते थे :
नफ़रत चाहे वह कमीनेपन से क्यों न हो 
इन्सान के चेहरे को सख़्त बना देती है।
अन्याय के ख़िलाफ़ ग़ुस्सा भी
स्वर में कर्कशता ला देता है। अफ़सोसहम
जो रहमदिली की बुनियाद रखना चाहते थे
ख़ुद रहमदिल न बन सके।

लेकिन जब आख़िरकार वो समय आए
जब इन्सान इन्सान का मददगार हो,
तो हमारे बारे में सोचते हुए
तुम सख़्ती न बरतना।
***
असद ज़ैदी




To
Posterity : Bertolt Brecht

1.

Indeed I live in
the dark ages!

A guileless word is
an absurdity. A smooth forehead betokens

A hard heart. He
who laughs

Has not yet heard
The terrible tidings.

Ah, what an age it is
When to speak of trees is almost a crime
For it is a kind of silence about injustice!
And he who walks calmly across the street,
Is he not out of reach of his friends
In trouble?

It is true: I earn my living
But, believe me, it is only an accident.
Nothing that I do entitles me to eat my fill.
By chance I was spared. (If my luck leaves me
I am lost.)

They tell me: eat and drink. Be glad you have it!
But how can I eat and drink
When my food is snatched from the hungry
And my glass of water belongs to the thirsty?
And yet I eat and drink.

I would gladly be wise.
The old books tell us what wisdom is:
Avoid the strife of the world
Live out your little time
Fearing no one
Using no violence
Returning good for evil —
Not fulfillment of desire but forgetfulness
Passes for wisdom.
I can do none of this:
Indeed I live in the dark ages!

2.

I came to the cities in a time of disorder
When hunger ruled.
I came among men in a time of uprising
And I revolted with them.
So the time passed away
Which on earth was given me.

I ate my food between massacres.
The shadow of murder lay upon my sleep.
And when I loved, I loved with indifference.
I looked upon nature with impatience.
So the time passed away
Which on earth was given me.

In my time streets led to the quicksand.
Speech betrayed me to the slaughterer.
There was little I could do. But without me
The rulers would have been more secure. This was my
hope.

So the time passed away
Which on earth was given me.

3.

You, who shall emerge from the flood
In which we are sinking,
Think —
When you speak of our weaknesses,
Also of the dark time
That brought them forth.

For we went,changing our country more often than
our shoes.

In the class war, despairing
When there was only injustice and no resistance.

For we knew only too well:
Even the hatred of squalor
Makes the brow grow stern.
Even anger against injustice
Makes the voice grow harsh. Alas, we
Who wished to lay the foundations of kindness
Could not ourselves be kind.

But you, when at last it comes to pass
That man can help his fellow man,
Do no judge us
Too harshly.
***
1940
translated by H. R. Hays


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