अनुनाद

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कविता की टिहरी डूब गई

इधर कुछ समय से उत्‍तराखंड में तथाकथित विकास के प्रबल पक्षधर बनकर सामने आए मेरे बहुत प्रिय वरिष्‍ठ कवि लीलाधर जगूड़ी के लिए सादर तस्‍वीर: मनोज भंडारी-अनिल कार्की

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टूटकर ही बनते हैं पहाड़ -भास्कर उप्रेती

भास्‍कर उप्रेती छह बरस पहले मि㨜ला एक युवा कवि-पत्रकार, जिससे समय के साथ मि㨜त्रता गाढ़ी होती गई। मैंने उसमें बहुत भावुक-संवेदनशील इंसान पाया। लेकिन उसकी

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हेमा दीक्षित की कविताएं

अपने लिए तुम्हारे घर की तिमंजिली खिडकी से कूदती है और रोज भाग जाती है छिली कोहनियों और फूटे घुटनों वाली औरत ढूंढती है नीम का

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