एकदिन स्त्री चल देती है चुपचाप …दबे पाँव – कमाल सुरेया, अनुवाद एवं प्रस्तुति – यादवेन्द्र कमाल सुरेया (1931-1990) एक दिन स्त्री चल देती है चुपचाप …दबे पाँव कोई स्त्री रिश्तों को निभाने में सहती है बहुत कुछ ..मुश्किलें उसका दिमाग,दिल Read More » March 30, 2013
गिरिराज किराडू की कविताएँ गिरिराज के यहां कविता एक नाज़ुक विषय है, गो वो अकसर ख़ुद को कठोर कवि कहता पाया जाता है। मैंने पहले भी दो-तीन बार अनुनाद Read More » March 24, 2013
गिर्दा की दो कविताओं पर एक टिप्पणी-अनिल कार्की नाज़िम ने कहा था कि ”मैं कविता के भविष्य पर विश्वास करता हूँ. ऐसे कई रहस्य हैं, जो लोगों को अभी जानने है…. इन शब्दों Read More » March 15, 2013
अच्युतानन्द मिश्र की कविताएं बहुत उम्मीद जगाने, भरोसा बढ़ाने वाले युवा कवि-साथियों में अच्युतानन्द मिश्र का नाम ख़ास तौर पर लिया जाना चाहिए। अनुनाद को उनकी कविताएं मिलीं हैं, Read More » March 13, 2013
पंखुरी सिन्हा की कविताएं बातों का पुलिंदा सब सच नहीं है, अभिलेखागार के कागजों में, प्रमाण सिर्फ कागज़ का होना है, उसकी बातों का सच नहीं, हज़ार चिट्ठियां हैं, Read More » March 9, 2013