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कमल जीत चौधरी |
मेरे इंतज़ारों की कविता – अब तक इस वाक्य का
प्रयोग कुछ चुनिन्दा अग्रजों की कवियों की कविता के लिए किया है मैंने, लेकिन कमल जीत चौधरी की कविताएं मिलीं तो ये इस युवतर कवि की कविता के लिए सहज ही सम्भव हो
गया। कमल जीत की कविताओं में मुझे वह सब कुछ मिला, जिसकी मैं
उम्मीद करता हूं – ये राजनीतिक बयान से पीछे नहीं हटतीं,
इनमें इनके आसपास की आवाज़ें आतीं हैं, ये एक बौद्धिक
छटपटाहट से भरी हैं, इनमें वे मर्म हैं, जो पाठक के मन में सीधा हस्तक्षेप रखते हैं, इनके
बिम्ब अधिक मानवीय हैं – उनमें मनुष्यता की ध्वनि है। कुल मिलाकर कमल जीत चौधरी
की कविताओं का संसार अनावश्यक प्रभावों से दूर एक अधिक मौलिक और आत्मीय संसार है।
मैंने कमल जीत से अनुनाद के लिए कविताओं के लिए अनुरोध
किया था, जिसे उन्होंने पूरा किया। अनुनाद
इस सहयोग के लिए उनका आभार व्यक्त करता और ख़ुशआमदीद भी कहता है।
लोकतंत्र की सुबह
आज सूरज निकला है पैदल
लबालब पीलापन लिए
उड़ते पतंगों के रास्तों
में
बिछा दी गई हैं तारें
लोग कम मगर चेहरे अधिक
देखे जा रहे हैं
नाक हैं नोक हैं फाके हैं
जगह जगह नाके हैं
शहर सिमटा सिमटा है
सब रुका रुका सा है
मुस्तैद बल पदचाप है
पैरों तले घास है
रेहड़ी खोमचे फुटपाथ सब
साफ है
आज सब माफ है !
बेछत लोग
बेशर्त बेवजह बेतरतीब
शहर के कोनों
गटर की पुलियों
बेकार पाइपों में ठूंस
दिए गए हैं
जैसे कान में रूई
शहर की अवरुद्ध करी
सड़कों पर
कुछ नवयुवक
गुम हुए दिशासूचक बोर्ड ढूँढ रहे हैं
जिनकी देश को इस समय
सख़्त ज़रूरत है
बंद दूकानों के शटरों से
सटे
कुछ कुत्ते दुम दबाए
बैठे हैं चुपचाप
जिन्हें आज़ादी है
वे भौंक रहे हैं
होड़ लगी है
तिरंगा फहराने की
वाकशक्ति दिखलाने की ...
सुरक्षाघेरों में
बंद मैदानों में
बुलेट प्रूफों में
टीवी चैनलों से चिपक कर
स्वतंत्रता दिवस मनाया
जा रहा है
राष्ट्रगान गाया जा रहा
है ...
सावधान !
यह लोकतंत्र की आम सुबह
नहीं है।
***
वह बीनता है
बीच जंगल
खेलता पत्ता
वह बीनता है
मधुमक्खियों का छत्ता
बीच बाज़ार
कल आज कल
वह बीनता है
आलू सब्जी फल
पुल के नीचे
गुजार जीवन पूरा
वह बीनता है
आदमियों का घूरा
वह बीनने वाला
छिनता आदमी
कभी कभी अखबार में
थोड़ी सी जगह छीनता है
भूख से लड़ता
अक्सर परिवार बीनता है।
***
छोटे बड़े
उन्होंने
छोटे छोटे काम किए
छोटे नहीं
छोटी छोटी बातें की
छोटी नहीं
वे छोटे छोटे थे
छोटे नहीं थे
उन्होंने
बड़े बड़े काम किए
बड़े नहीं
बड़ी बड़ी बातें की
बड़ी नहीं
वे बड़े बड़े थे
बड़े नहीं थे।
***
बर्तन
वह रेत है
कच्ची मिट्टी है
गल गल कर
तुम्हारे सांचे में ढल
कर
जल जल कर
कभी दोना
कभी खिलौना
कभी बन्दूक
कभी सीना
कभी खून
कभी पसीना
कभी टापू
कभी सफ़ीना हो जाता है -
तुम सत्ता के रक्षक
अंगूठे के कलाकार हो
दायित्व निभाते हो
उसे चाक पर बैठाकर
अंगूठा घुमाते हो
धागे से काटकर
उसे बर्तन बनाते हो।
***
बहुसंख्यक बनाम
अल्पसंख्यक
तुम कहते हो
जहां हिन्दू बहुसंख्यक
थे
मुस्लिम लूटे
मस्जिद मकबरे टूटे
सलमा नूरां के भाग फूटे।
मैं कहता हूँ
जहां मुस्लिम बहुसंख्यक
थे
हिन्दू लूटे
मंदिर शिवाले टूटे।
सीता-गीता के भाग फूटे
यह सच है
अपने अपने दड़बों में
हम ताक़त दिखा गए
पर खेत बाज़ार सड़क
फैक्टरी
जहां हम दोनों बहुसंख्यक
थे
अल्प से मात खा गए -
हम चुप हैं
या गलत बांगें लगा रहे
हैं।
***
चिट्ठियां
फोन पर लिखीं चिट्ठियां
फोन पर बांचीं
चिट्ठियां
फोन पर पढ़ी चिट्ठियां
अलमारी खोलकर देखा एक
दिन
बस कोरा और कोहरा था
...
डायल किया फिर
फिर सोची चिट्ठियां
मगर कुछ नंबर
और कुछ आदमी
बदल गए थे
कबूतर मर गए थे।
***
आग
आओ
हम एक दूसरे से टकराएँ
प्रेम से न सही
नफ़रत से बस में चढ़ते
उतरते
टिकट खिड़की के सामने
धक्का मुक्की करते
होड़ की दौड़ में ही सही
मगर टकराएँ भी सही
इस पाषाण युग में
हम आदमी नहीं पत्थर हो
गए हैं
हमारा टकराना टकराव
नहीं
आग पैदा करेगा
आग
जो प्रम्थ्यु स्वर्ग से
लाया था
जो मानव की सबसे बड़ी
खोज थी -
शवासनों पर विराजे राजे
वाघ से नहीं आग से डरते
हैं
आओ
टकराओ
आग पैदा करो।
***
सत्यापन
मेरे पास एटेस्टेशन
ऑथोरिटी है
देश के असली दस्तावेज
देख
मैं सत्यापित करता हूँ
दस उंगलियों
तीस पोरों
उनके बीच की पकड़ को -
तिरंगे की
पत्थर की
माचिस की।
सत्यापित करता हूँ
हाथों में पोस्टर थामे
नारे लगाते
गलों की आग को
पुलिसिया पदचाप को
काली सड़कों पर
बिखरे लाल खून को
जो लिखे नहीं जा रहे
उन खतों के मजमून को।
सत्यापित करता हूँ
उस सफेद बर्फ़ को
जो राजनेताओं के
जांघियों में पैठ गई है
बिना कानों वाली किटकिटाती पाकिस्तानी बिल्ली को
जो वार्ता में टेबुल पर
बैठ गई है।
सत्यापित करता हूँ
लोकतंत्र के डिब्बों
में
पलते चूहों को
बीस करोड़ खाली उदरों को
फुटपाथी चीथड़ों को
घर बनाने वाले बेघरों
को।
सत्यापित करता हूँ
क ख ग
A B C
1 2 3
परमाणु करार
जम्मू - कश्मीर विवाद।
जुलाई , 2008 पर हस्ताक्षर कर
मैं यह कहता हूँ -
दुम पकड़े
धृतराष्ट्र और गांधारी
का हाथी
रस्सी जैसा है
देश में यह वह समय है
जब आम पर चिनार उग आए
हैं।
***
सुन्दर लड़की
सुन्दर लड़की की अंगुलिओं में
चाबियों का छल्ला खेल रहा है
उसका पोर पोर बोल रहा है
नदी बहेगी
सड़क चलेगी
अलमारी खुलेगी -
जो तालों में बंद है
उसकी पहली पसंद है |
***
सम्पर्क- काली बड़ी , साम्बा
जे एंड के , 184121
दूरभाष - 09419274403