अनुनाद

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तिब्बत -उदय प्रकाश

नैनीताल के भोटिया मार्केट यानी तिब्बती मूल के लोगों के बाज़ार और तिब्बत को लेकर चल रहे आन्दोलन में उनकी भागीदारी को देखते हुए लगातार उदय जी के ये कविता याद आया करती है…
***

तिब्बत से आये हुए
लामा घूमते रहते हैं
आजकल मंत्र बुदबुदाते

उनके खच्चरों के झुंड
बगीचों में उतरते हैं
गेंदे के पौधों को नहीं चरते

गेंदे के एक फूल में
कितने फूल होते हैं
पापा ?

तिब्बत में बरसात
जब होती है
तब हम किस मौसम में
होते हैं ?

तिब्बत में जब तीन बजते हैं
तब हम किस समय में
होते हैं ?

तिब्बत में
गेंदे के फूल होते हैं
क्या पापा ?

लामा शंख बजाते है पापा?

पापा लामाओं को
कंबल ओढ़ कर
अंधेरे में
तेज़-तेज़ चलते हुए देखा है
कभी ?

जब लोग मर जाते हैं
तब उनकी कब्रों के चारों ओर
सिर झुका कर
खड़े हो जाते हैं लामा

वे मंत्र नहीं पढ़ते।

वे फुसफुसाते हैं ….तिब्बत
..तिब्बत …
तिब्बत – तिब्बत
….तिब्बत – तिब्बत – तिब्बत
तिब्बत-तिब्बत ..
..तिब्बत …..
….. तिब्बत -तिब्बत
तिब्बत …….

और रोते रहते हैं
रात-रात भर।

क्या लामा
हमारी तरह ही
रोते हैं
पापा ?
***

0 thoughts on “तिब्बत -उदय प्रकाश”

  1. सचमुच बच्‍चों के सवाल ऐसे ही होते हैं कि हमारे पास कोई जवाब नहीं होता। चाहे वह तिब्‍बत के बारे में हो चाहे हमारे अपने में बारे में।

  2. वाह!!!!
    निःशब्द हूँ….

    एक सुंदर सामायिक रचना सांझा करने का शुक्रिया.

    सादर
    अनु

  3. एक टीस उठती है इन शब्दों से और लगता है नरम-नरम से फूल सरीखे शब्द कितना अंदर तक नश्तर चुभोते हैं

  4. शिरीष भाई, नैनी ताल भोटिया मार्केट तिब्बती मूल के भोट लोगों का है या भारतीय हिमालयी " भोटिया" समुदाय का ? इधर इन दोनो समुदायों को अलग अलग देखना निहायत ही ज़रूरी हो गया है . महज़ जानकारी के लिये पूछना चाह रहा हूँ. मैं नैनी ताल कभी नहीं गया हूँ.

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