श्रीलाल शुक्ल नहीं रहे. राग दरबारी रहेगा. उनके न रहने की सूचना एक आघात है लेकिन उनका रचा हुआ एक विरासत. कितने दिन ऐसे गुज़रते हैं जब राग दरबारी के दृश्य एक एक कर आँखों के आगे खड़े हो जाते हैं. कभी सामान्य ज़िन्दगी जीते हुए और कभी किसी भंवर में फंसे हुए. कभी समकालीन समाज और राजनीति से अपने अपने हिस्से का संवाद करते हुए. और कभी अपने ही कुछ टूटे हुए हिस्से जोड़ते हुए. साहित्य के दिनों दिन सीमित होते जाते घेरे के बाहर भी वे उतने ही लोकप्रिय हैं. मेरे विश्वविद्यालय में इतिहास के अग्रज प्रोफ़ेसर अनिल जोशी के बैग में राग दरबारी ज़रूर होता है. वे कुछ भी भूल जाएँ पर रोज़ इस किताब को अपने साथ रखना नहीं भूलते और जीवन और नौकरी की जटिलताओं में अक्सर उसका कोई प्रसंग छेड़ बैठते हैं.
कथा के इस कालजयी चितेरे का कविता से प्रेम भी किसी से छुपा नहीं है. लिहाजा कविता की यह पत्रिका अनुनाद अपने इस अद्भुत बुज़ुर्ग को अपना सलाम पेश करती है. जब तक हममें सही साहित्य पढने की बुद्धि सलामत रहेगी तब वे हमेशा हमारे साथ रहेंगे...हमारे सिरहाने उनका हाथ रहेगा.
कथा के इस कालजयी चितेरे का कविता से प्रेम भी किसी से छुपा नहीं है. लिहाजा कविता की यह पत्रिका अनुनाद अपने इस अद्भुत बुज़ुर्ग को अपना सलाम पेश करती है. जब तक हममें सही साहित्य पढने की बुद्धि सलामत रहेगी तब वे हमेशा हमारे साथ रहेंगे...हमारे सिरहाने उनका हाथ रहेगा.
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फोटो hindini.com से साभार |
Aameen!
ReplyDeleteखुद राग दरबारी मे कविता की सी लय है. यह उन उपन्यास है गिनती के उपन्यासों मे से एक है जिन्हे मे पूरा पढ़ पाया..... वो भी एक ही सिटिंग में .
ReplyDeleteश्रद्धाँजलि !
Shreelal Ji ka jana sachmuch riktta se roubaru hona hai.
ReplyDeletekubayasthaon(mismanagement) se trast janta ke liiae raag darbari ka nastar
anand deta hai.unki smriti ko naman.