Thursday, September 15, 2011

एथेल आइरीन काबवातो - अनुवाद और प्रस्‍तुति - यादवेन्‍द्र

एथेल आइरीन काबवातो जिम्बाब्वे की युवा कवि हैं जिनकी कवितायेँ ब्रिटिश काउन्सिल के सौजन्य से सामने आयीं.कुछ संकलनों में उनकी कवितायेँ संकलित हैं और वे कई देशों में जा कर काव्य पाठ कर चुकी हैं.उन्होंने जिम्बाब्वे की स्त्री लेखकों को संगठित करने का काम भी किया है.फिलहाल वे स्लम सिनेमा नामक प्रोजेक्ट पर काम कर रही हैं.यहाँ प्रस्तुत है उनकी दो कवितायेँ:


स्मृतियाँ


यह वो जगह है जिसे हम घर कहा करते थे
हम नाचते गाते थे यहाँ
जब पूरे शबाब पर होता था पूनम का चाँद
और लुका छिपी खेलते थे मुखिया के घर के पिछवाड़े
बड़ी बड़ी चट्टानों के पीछे छिप छिप कर
तब तो गर्मियों में भी लबालब भरी बहती रहती थी नदी

उसके घर के आस पास से
और उसकी कोठी को ही हम अपना घर कहते थे...
हम जब तब हवा से बातें करते थे...
गा गा कर उस से मनुहार करते थे
कि वो हमारे लिए अच्छे वर ढूंढ़ कर भेजे

हवा ने हमारी आवाजें गौर से सुनीं..अमल किया
और हमें बख्श दीं मुट्ठियाँ भींचे हुए मर्दों की फ़ौज
उनकी क्रूरता अब तो जगजाहिर है
और स्पष्ट दिखाई दे रही है उनसे पैदा हुए
अनगिनत बच्चों की आँखों में
जिन्हें अपनी मरियल बांहों में टाँगे टाँगे फिर रही हैं हम

अब हमारा पीछा कर रही हैं कैसी कैसी दुश्चिंताएं
पर किसी और के कोप से नहीं पैदा हुई ये विपत्तियाँ

हम इंसानों की ही सिरजी हुई है ये दुनिया.
***

एक योद्धा की कब्र

उन्होंने आज उसको दफना दिया
होंठ और जीभ काट कर फेंक दिए अलग
जैसे वह कहीं गरज न पड़े
मरने के बाद भी
अचानक.
***

2 comments:

  1. beautyful smile.
    हवा ने हमारी आवाज़ें ग़ौर से सुनीं...अमल किया..
    दिल को छू लेती कविता.

    ReplyDelete
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