Saturday, September 24, 2011

स्ट्रेंज फ्रूट - अबेल मीरोपोल प्रस्तुति और अनुवाद - यादवेन्द्र

स्ट्रेंज फ्रूट पिछली सदी के तीस के दशक में न्यूयार्क स्टेट के एक स्कूल में अंग्रेजी पढ़ाने वाले रूस से भाग कर अमेरिका में बस गए गोरे यहूदी अबेल मीरोपोल(उस समय वे लेविस एलन के छद्म नाम से कवितायेँ लिखा करते थे) का गीत है जो अमेरिका की कम्युनिस्ट पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ता थे . तत्कालीन अमेरिका में अश्वेतों को खुले आम जला या पीट पीट कर मार डालने की घटनाएँ आम थीं.ऐसी ही एक घटना का चित्र देख कर मीरोपोल इतने उद्वेलित हुए कि यह गीत लिख डाला.उनका कहना था कि वे यातना देकर ऐसे मार डालने कि संस्कृति के खिलाफ हैं,अन्याय और उसके प्रश्रय देने वालों के प्रति अपनी नफरत का इजहार करने के लिए ही उन्होंने यह गीत लिखा.शुरू में इसका शीर्षक कसैला फल (बिटर फ्रूट) रखा गया था पर इस से राजनैतिक प्रतिबद्धता झलकती थी,सो मित्रों के कहने पर गीत का शीर्षक बदल दिया गया. पहली बार यह 1937 में अमेरिकी स्कूल शिक्षकों की वामपंथी यूनियन की पत्रिका में छपा और 1939 में मशहूर अश्वेत जैज़ गायिका बिली होलीडे ने इसको गाकर अमर कर दिया.तब नाईट क्लबों में हलके फुल्के गीत गाकर दर्शकों का मनोरंजन करने वाली होलीडे ने बड़े अनमने ढंग से इस गंभीर और मन को हिला कर रख देने वाले गीत कि प्रस्तुति की.उस समय की बड़ी रिकार्ड बनाने वाली कंपनी कोलंबिया ने यह गीत गंभीर राजनीतिक विषय होने के के कारण रिकार्ड करने से इंकार कर दिया.कहा जाता है कि होलीडे ने अपने पिता का प्रथम विश्व युद्ध में घायल होकर घर लौटने के बाद अमेरिका के अस्पतालों में अश्वेत होने के कारण इलाज न किये जाने से तिल तिल कर मरना देखा था,सो इस गीत ने उनके मन के तारों को झंकृत कर दिया.यह भी कहा जाता है कि होलीडे की माँ को हल्का फुल्का गा कर दर्शकों का मनोरंजन करने वाली बेटी का यह गीत गाकर एक राजनैतिक सन्देश देने का ढंग कतई पसंद नहीं था.. इस बाबत जब उन्होंने होलीडे को कहा तो उनका जवाब था: मैं यह गीत गाते हुए अश्वेतों के प्रति किये गए अन्याय को महसूस करती हूँ, अपनी कब्र में भी मैं मैं इसको याद रखूंगी.इस गीत ने जितनी ख्याति होलीडे को दिलाई उसको भुनाने के लिए उन्होंने इस गीत को लिखने का श्रेय लेने की कोशिश अपनी आत्मकथा में की पर बाद में मीरोपोल के स्पष्टीकरण से मामला साफ हो गया. उनके बाद से लगभग चालीस अन्य गायकों ने इस गीत को अपनी अपनी तरह से गया...पर अमेरिकी समाज में अश्वेत समुदाय पर किये जानेवाले अत्याचार का यह दस्तावेजी गीत बन गया.इस गीत के पक्ष और विपक्ष में बहुत तीखे विचार व्यक्त किये जाते रहे और अनेक रेडियो स्टेशनों और क्लबों ने इसपर प्रतिबन्ध भी लगाये पर आज तक के अश्वेत प्रतिरोध के गीतों में यह निरंतर अग्रणी बना रहा. डेविड मार्गोलिक ने इसपर एक बहुचर्चित किताब लिखी और इसपर बनायीं गयी फिल्म भी खूब चर्चित रही.१९९९ में टाइम मैगजीन ने इसको शताब्दी का गीत घोषित किया था. 2010 में न्यू स्टेट्समैन ने इस गीत को दुनिया के बीस सर्वश्रेष्ठ राजनैतिक गीतों में शुमार किया है. पुलित्ज़र पुरस्कार प्राप्त मशहूर इतिहासकार लियोन लिट्वाक इस गीत को बर्कले यूनिवर्सिटी में अपने छात्रों को कक्षा में पढ़ाते भी हैं.

अबेल मीरोपोल

 बिली होलीडे

एक अजीबोगरीब फल

दक्खिन के पेड़ों में लगा हुआ है एक अजीबोगरीब सा फल
पत्तियों पर लहू के धब्बे..जड़ें भी लहू लुहान
दक्खिनी हवाओं से हिल रहे हैं काले कलूटे शरीर
यह अजीबो गरीब फल झूल रहा है पोपलर के पेड़ पर..


लड़ाके दक्खिनी चरवाहों के इलाके का मंजर
बाहर निकल आयी आँखें और वीभत्स हो गए मुँह
फूलों की गमक उतनी ही मोहक और तरोताजा
पर बीच बीच में घुस आती है जलते हुए मांस की सडांध

यहाँ एक फूल खिला है जिसे नोंच ले जायेंगे कौवे
जिनपर गिरेगा बरसात का पानी,जिसको सूंघेगी बयार
जिसे सदाएगी धूप..जिसको एकदिन गिरा देगा पेड़
यहाँ उगी है एक अजीबोगरीब पर कसैली फसल...

***
प्रस्तुति: यादवेन्द्र , रूडकी
मो. 9411100294
तत्कालीन अमरीका, जो शायद ही कभी बदले 

Thursday, September 15, 2011

एथेल आइरीन काबवातो - अनुवाद और प्रस्‍तुति - यादवेन्‍द्र

एथेल आइरीन काबवातो जिम्बाब्वे की युवा कवि हैं जिनकी कवितायेँ ब्रिटिश काउन्सिल के सौजन्य से सामने आयीं.कुछ संकलनों में उनकी कवितायेँ संकलित हैं और वे कई देशों में जा कर काव्य पाठ कर चुकी हैं.उन्होंने जिम्बाब्वे की स्त्री लेखकों को संगठित करने का काम भी किया है.फिलहाल वे स्लम सिनेमा नामक प्रोजेक्ट पर काम कर रही हैं.यहाँ प्रस्तुत है उनकी दो कवितायेँ:


स्मृतियाँ


यह वो जगह है जिसे हम घर कहा करते थे
हम नाचते गाते थे यहाँ
जब पूरे शबाब पर होता था पूनम का चाँद
और लुका छिपी खेलते थे मुखिया के घर के पिछवाड़े
बड़ी बड़ी चट्टानों के पीछे छिप छिप कर
तब तो गर्मियों में भी लबालब भरी बहती रहती थी नदी

उसके घर के आस पास से
और उसकी कोठी को ही हम अपना घर कहते थे...
हम जब तब हवा से बातें करते थे...
गा गा कर उस से मनुहार करते थे
कि वो हमारे लिए अच्छे वर ढूंढ़ कर भेजे

हवा ने हमारी आवाजें गौर से सुनीं..अमल किया
और हमें बख्श दीं मुट्ठियाँ भींचे हुए मर्दों की फ़ौज
उनकी क्रूरता अब तो जगजाहिर है
और स्पष्ट दिखाई दे रही है उनसे पैदा हुए
अनगिनत बच्चों की आँखों में
जिन्हें अपनी मरियल बांहों में टाँगे टाँगे फिर रही हैं हम

अब हमारा पीछा कर रही हैं कैसी कैसी दुश्चिंताएं
पर किसी और के कोप से नहीं पैदा हुई ये विपत्तियाँ

हम इंसानों की ही सिरजी हुई है ये दुनिया.
***

एक योद्धा की कब्र

उन्होंने आज उसको दफना दिया
होंठ और जीभ काट कर फेंक दिए अलग
जैसे वह कहीं गरज न पड़े
मरने के बाद भी
अचानक.
***

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