
मृत्युंजय की कविता
भ्रष्टाचारी कांगरेस की लीला की बलिहारी
लोकपाल, दिक्पालों के बस में जनता बेचारी
नेता-अफसर सब लीलाधर, सत्ता मद में चूर
मिस्टर राहुल कुछ फरमाओ बोलो तनिक
हुजूर अन्ना अनशन पर , उस का चश्मा हिन्दुस्तानी
संग साथ जन गण मन है , सो बेकल हैं रानी
कांगरेस की बिल्ली को लो याद आयी नानी
एक आँख से दुनिया देखे साधो बौरानी
भाजपाईयों की नौटंकी दसटंकी चालू
कहाँ नहीं भ्रष्टाचारी, है कौन न घोटालू
यह ढांके तो वह खुल जाए वह ढांके तो पोल
राजनीति की चतुर चिकटई, सारी दुनिया गोल
नक्शा झाड़ रहे मंत्रीगण स्विस बैंक के बूते
टाटा, बाटा, अम्बानी के चाट रहे जूते
धूर-मलाई चाभो, चाभो जनता के अरमान
सौ करोड़ की करो तस्करी, ऊंची भरो उड़ान
पान चबाओ, उस में डालो मजदूरों का रक्त
अलबेले बाबाओं के तुम नए नवेले भक्त
नाजायज पैसे के मारे जब अफराये पेट
चूरन फांक दलाली का फिर नया खोल दो रेट
अन्ना बापू याद नहीं क्या यहीं कहीं सुखराम
हर्षद मेहता, तेलगी साहब सब करते विश्राम
शीबू जी सोरेन यहीं ,बाबू परमोद महाज़न
राजा, कलमाडी, मधु कोड़ा, रमलिंगम सत्यम
लालू की यह चरागाह है , माटी है बोफोर्स की
शशि थरूर की, मोदीजी की , तिकड़म-ताले-सोर्स की
अभिनन्दन है पैलागी है पूजा है शैतान की
इस माटी का तिलक लगाओ धरती यह बलिदान की
मनमोहक खूंखार सिंह ने माँगी मांगे तीन
अन्ना बापू समझे रहना ये हैं चतुर प्रवीन
जीते रहना और समझना इनकी मेहीं चाल
चले आ रहे लोग गाँव गंवाई गांठे हुए मशाल
गांधी बाबा की समाधि पर चलो जमायें जग्ग
काले धन को होम करें ऐसी लहरायें अग्ग
लोक क्रांति की गगन घटा घहराए , कांपें दुश्मन।
शुद्ध होय यह भूमि हमारी मुदित होएं जन गण मन
लोकपाल बिल से निकलेगी, आगे और लड़ाई
दम ले , काँधे जोड़, साथियों , भिड़ने की रुत आई
दुश्मन है खूंखार चतुर्दिक पसरी है परछाई
आगे बढ़, तैयारी कर, है लम्बी बहुत चढ़ाई
***
आशुतोष भाई ने मेल से यह कविता भेजी है। नागार्जुन से बहुत सारी बातें जस की तस लेती हुई यह कविता उस महाकवि को सलाम भी पेश करती है।
वाह ! एक हिमाचली हीरो का नाम भी है. शत शत नमन .
ReplyDeleteअन्ना की इस पहल का समर्थन है, और खुशी है कि लोग सामाजिक सरोकार के लिए घर दफ्तरों से निकल रहे है. जनतंत्र म बिना लोगो की भागीदारी के बेमतलब है. परन्तु लोकपाल बिल सिर्फ एक स्टेप है सही दिशा में. बाकी उसकी सीमा है, उससे हमारा समाज किसी बदलाव म...ें नहीं जाने वाला. क़ानून और उस क़ानून का भी पालन इसी समाज में होना है, जाने पहचाने रास्तों से बहुत अलग नहीं होगा. लोगो को उस पर भी नज़र रखनी होगी. इस सीमा के साथ ही इस आंदोलन को देखना होगा. ये मूढता है,कि भारत माता एक सम्भ्रांत जेवर और गहनों से भरी औरत है, जबकि स्वास्थ्य और शिक्षा और नागरिक अधिकारों में बहुसंख्यक औरते और बच्चे इस देश में सबसे निचले पायदान पर खड़े है. और ये देश सिर्फ हिन्दू नही है, और औरत नहीं है. किसी देश को इतनी सीमीत कल्पना और रोमानियत में देखना बताता है कि हिन्दुस्तान की किस तरह की समझ इन आंदोलन कारियों की है. कल्पना कितनी सीमीत है. ये बहुत दूर , सचमुच के किसी सोलुशन की तरफ कितना ले जायेगी. ये मूढता है, और उन सब लोगों के लिए जो इस देश में सबके लिए सामान अवसर और न्याय चाहते है, एक जीता जागता सिम्बल है कि लड़ाई बहुत छोटी है, उसे बड़े धरातल तक बढाने की ज़रूरत है. सबके लिए हो, सबसे ज्यादा जो लोग हर कौम के भर्स्ताचार की मार सहते हो, भूखे है, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं से बाहर है ये लड़ाई उनके लिए हो. हस्शिये पर खड़े सबसे कमज़ोर आदमी, औरत और बच्चे के लिए हो.
ReplyDeleteसही बात है स्वप्नदर्शी जी! अब हम सारे लोगों की यह जिम्मेदारी है की इस मुद्दे को सिर्फ बिल में सीमित होने से बचाएं, आगे ले जाएँ. दूसरी बात यह की किसी भी लड़ाई को बड़ी और सामान्य लड़ाईयों से जोड़े बिना कुछ नहीं होने का. बकौल मुक्तिबोध- अकेले में मुक्ति नहीं मिलती. पर इस जड़ने की प्रमुख शर्त है की इस लड़ाई को भी और बेहतर ढंग से चलाया जाए. मुझे ब्रेख्त की एक बात याद आ रही है, जो उन्होंने आलोचक के काम-काज को लेकर कही थी- आलोचक को नदी में से नहरें निकालनी चाहिए, पेड़ों में कलम लगाना चाहिए. यही सार्थक आलोचना है.
ReplyDeletekya kahe ; kise dosh de . jab tak aam insaan jaagruk nahi hoga . naa bhrast insaan rukega aur naa hi bhrastaachaar !
ReplyDeletesaadar !