अनुनाद

अनुनाद

महेश वर्मा की कविताएँ

हिसाब ब्लेड से पेंसिल छीलते में
एक पूर्ण विराम भर कट सकती है उंगली
लेकिन अश्लील होता
बिल्कुल सफ़ेद काग़ज़ पर गिरना
अनुस्वार भर भी
रक्त की बूँद का।

नहीं आ पाई थी कोई भी ऐसी बात
कि उँगली से ही लिख दी जाती-
लाल अक्षरों में

उत्तापहीन हो चला था इतिहास,
सिर्फ़ हवाओं की साँय-साँय सुनाई देती थी
कविताओं के खोखल से

सिर्फ़ प्रेम ही लिख देने भर भी
ऊष्म नहीं बचे थे ह्रदय, तब
प्रेमपत्रों को कौन पढ़ता ?

बचती थी केवल प्रतीक्षा ज़ख्म सूखने की
कि पेंसिल छीलकर लिखा जा सके-
हिसाब।
***

एक जगह

उदासी एक जगह है जैसे कि यह शाम
जहां अक्सर मैं छूट जाता हूं।
मुश्किल है बाहर का कुछ देखना-सुनना।

उदासी की बात सुनकर
दोस्त बताते हैं नज़दीक के झरनों के पते
जहां बीने जा सकते हैं पारिवारिक किस्म के सुख।

पता नहीं यह अंधेरा है,
या नींद,
या सपना,
जिसपर,
गिरती रहती है झरने सी उदासी।

मेरी हर यांत्रिक चालाकी के विरूद्ध
मेरी अनिद्रा, मेरा प्रत्युत्तर है मुझको इस समय।
और एक जगह है यह अनिद्रा भी, जिसके भीतर सोकर,
नींद भूल गई हो बाहर का संसार।

पत्थर हो चुके इसको खोजने निकले राजकुमार।
***

भाषामैं अपनी धूल हटाता हूं
कि देखो वहां पड़े हुए हैं कुछ शब्द।
मेरे होने की संकेत लिपि से बेहतर,
विकसित भाषा के शब्द ये-
शायद इनसे लिखा जा सके निशब्द।

***

0 thoughts on “महेश वर्मा की कविताएँ”

  1. सुबह-सुबह पढ़ीं और आनन्द आ गया। छोटी-छोटी घटनाओं की कितनी अद्भुत व्यंजना रचते हैं महे्श। एक कविता पढ़ते हुए मुझे मंगलेश जी की एक कविता संकलन की शीर्षक कविता याद आई। असुविधा पर शायद पहली बार महेश जी की कवितायें आईं थीं…और वे भी अपने कथ्य और शिल्प में ऐसी ही कसी हुई।

    हां शिरीष्…पहली बार छापने के बावज़ूद आपने परिचय नहीं लिखा अपने अंदाज में? 🙂

  2. महेश की कविताओं को पढ़ कर कविता का अनूठा आस्वाद मिला. इन कविताओं में सामाजिक सरोकारों का काव्यात्मक विवेचन पूरी गहनता और व्यापकता से महसुसा हुआ सा लगता है. महेश की कविताओं को लगाने और अनुनाद के पाठकों तक पहुँचाने के लिए धन्यवाद.

  3. touching ones, congratulation. Leave them in Cirka for 6-8 months, then drain n add some fresh spices. Delayed 2nd draft will make these even better.
    Cheers!

    BK Manish

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