(1943 में जन्मी निकी जियोवानी अफ्रीकी मूल की अमरीकी कवयित्री हैं, इनकी कविताओं में नस्लीय गौरव और प्रेम की झलक है। निकी वर्जीनिया में अंग्रेज़ी की प्रोफेसर हैं और नागरिक अधिकारों के लिए समर्पित हैं)
1)
ब्रह्माण्ड के छोर पर
लटकी हूं मैं,
बेसुर गाती हुई,
चीखकर बोलती,
ख़ुद में सिमटी
ताकि गिरने पर न लगे चोट।
मुझे गिर जाना चाहिए
गहरे अंतरिक्ष में,
आकार से मुक्त और
इस सोच से भी कि
लौटूंगी धरती पर कभी।
दुखदायी नहीं है यह।
चक्कर काटती रहूंगी मैं
उस ब्लैक होल में,
खो दूंगी शरीर, अंग
तेज़ी से..
आज़ाद रूह भी अपनी।
अगली आकाशगंगा में
उतरूंगी मैं
अपना वजूद लिए,
लगी हुई ख़ुद के ही गले,
क्योंकि..
मैं तुम्हारे सपने देखती हूं।
2)
ख़ूबसूरत ऑमलेट लिखा मैंने,
खाई एक गरम कविता,
तुमसे प्रेम करने के बाद।
गाड़ी के बटन लगाए,
कोट चलाकर मैं
घर पहुंची बारिश में..
तुमसे प्रेम करने के बाद।
लाल बत्ती पर चलती रही,
रुक गई हरी होते ही,
झूलती रही बीच में कहीं..
यहां कभी, वहां भी,
तुमसे प्रेम करने के बाद।
समेट लिया बिस्तर मैंने,
बिछा दिए अपने बाल,
कुछ तो गड़बड़ है...
लेकिन मुझे नहीं परवाह।
उतारकर रख दिए दाँत,
गाउन से किए गरारे,
फिर खड़ी हुई मैं
और
लिटा लिया ख़ुद को,
सोने के लिए..
तुमसे प्रेम करने के बाद।
अनुवाद- माधवी शर्मा गुलेरी
Thursday, December 2, 2010
3 comments:
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एक सिम्फनी...गहन...।
ReplyDeleteप्रेम और अस्तित्व की सघन-अमूर्त अभिव्यक्ति।
बहुत खूब !!!!
ReplyDeleteप्रेम की इतनी मर्मस्पर्शी कविता बहुत दिनों बाद पढ़ी, अनुवाद ने कविता की रूमानियत को बरकरार रखा है।
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