स्त्री का कंकाल
(लीलाधर मंडलोई की एक कविता)
खुदाई में
न माया मिली
न राम
मिला स्त्री का कंकाल
राम के ज़माने का
जिसका कोई ज़िक्र नहीं रपट में
***
(लीलाधर मंडलोई की एक कविता)
खुदाई में
न माया मिली
न राम
मिला स्त्री का कंकाल
राम के ज़माने का
जिसका कोई ज़िक्र नहीं रपट में
***

(चित्र गूगल से साभार)
मंडलोई जी की कमाल की कविता है। कविता की जरूरत हमेशा बनी रहेगी, इस निष्पक्ष आलोचना के लिए। इस कविता ने मेरे भीतर एक लम्बी खरोंच छोड़ी है। शिरीष भाई को आभार इस कविता के लिए।
ReplyDeleteमंडलोई जी देरी हो गई इस कविता के आने में, शर्मा जज पढ़ लेते तो राम और सीता दोनों का जन्मस्थान एक साथ तलाश लेते..
ReplyDeleteक्यों न इस कविता और इसके रचियता पर ये आरोप लगाया जाए कि ऐसी मायावी कविता कोई स्पष्ट स्टैंड न लेने और वाहवाही लूटने के इए लिखी जाती है. जिस स्कूल का यह प्रतिनिधित्व करती है, उसके संचालक ऐसी प्रगतिशील कवितायेँ खूब लिख चुके हैं, जो मुद्दों को गोलमोल करके भी विमर्श की कविता कह ली जाती हैं. निश्चय ही विश्वनाथ प्रसाद तिवारी से लेकर तरुण विजय तक कोई भी नाराज नहीं होगा. बधाई हो.
प्रिय कवियो, कुछ ऐसा भी कहो, ऐसे मौके पर जो सत्ता प्रतिष्ठान की भाषा न हो या फिर हमारे कई दोस्तों की तरह चुप रहो..
धीरेश भाई ! हर वक्त इजनी नाराजगी भी ठीक नहीं। सेहत का भी कुछ ख्याल रखा करो।
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