मित्रो ये एक पुरानी कविता है...१९९८ की...जो मेरे दूसरे संग्रह "शब्दों के झुरमुट में" शामिल है।

यहाँ
हवा कुछ उड़ाने के लिए
बेचैन है
और पानी कुछ बहाने के लिए
यहाँ
पत्थर कुछ दबाने के लिए
बेचैन है
और मिटटी कुछ उगाने के लिए
यहाँ
पाँव कहीं जाने के लिए
बेचैन हैं
और स्मृतियाँ आने के लिए
यहाँ
चिड़िया दाने के लिए
बेचैन है
और वंचितों का मन
कुछ पाने के लिए
यहाँ
एक शब्द है बेचैनी
जो
सारे शब्दों पर भारी है
छुपा हुआ
शब्दों के झुरमुट में
एक और शब्द है यहाँ
कविता
जो पहले शब्द से बना है
और
उसका आभारी है।
***
सुन्दर…बेहद ख़ूबसूरत कविता…
ReplyDelete(यह संकलन हमारे पास नहीं है…कैसे मिल सकता है?)
यहाँ
ReplyDeleteएक शब्द है बेचैनी
जो
सारे शब्दों पर भारी है
बढिया कविता .....
सही और सटीक ।
ReplyDeleteअशोक भाई किताब २००४ में छपी थी और २००६ में पहला संस्करण समाप्त होना बताया गया....फिर दूसरे की नौबत ही नहीं आई ... प्रकाशन ही बंद हो गया...कथ्यरूप से आई थी ये किताब...अनिल श्रीवास्तव जी ने बहुत स्नेह से छापी थी.
ReplyDeleteयानि कोई उम्मीद नहीं…:-(
ReplyDeleteतो इसकी कवितायें पढ़वाते रहियेगा…यहां भी और अन्य जगहों पर भी
सचमुच बैचेनी तो है।
ReplyDeleteयहाँ
ReplyDeleteएक शब्द है बेचैनी
जो
सारे शब्दों पर भारी है
..........
सुंदर !!!!!!
बहुत भारी है बैचेनी ,,बहुत भारी पड़ी ,,,बैचैन करती है
ReplyDeleteतो इसकी कवितायें पढ़वाते रहियेगा...
ReplyDeleteसन ९८ के शिरीष की कविता में व्यक्त सार्थक बेचैनी आज भी टटकी है. कविताई ये अंदाज बरकरार रहे तो क्या बात है. अच्छी कविता के लिए बधाई
ReplyDeleteyaha har koe bechin hai................sundar kavita
ReplyDeleteshikha shukla
http://baatbatasha.blogspot.com/
इस बेचैनी के मूल में कर्म का स्वप्न है, कुछ करने या रचने की तीव्र आकांक्षा है। दरअसल यह बेचैनी और कुछ नहीं चैन का स्वप्न है, एक ऐसा चैन जो कुछ करणीय को करने, रचनीय को रचने या प्राप्य को पाने से ही मिलता है। हर कवि को इस बेचैनी का आभारी होना चाहिए।
ReplyDeleteसुंदर कविता के लिए बधाई।
यहाँ दो शब्द हैं-
ReplyDeleteपहला शब्द है 'बेचैनी' और दूसरा , 'कविता'...... दूसरा शब्द पहले से बना है इसी लिए उस का आभारी है. नायाब विचार ! इस कविता को मैं भी लिखना चाहता हूँ.
यहाँ
ReplyDeleteएक शब्द है बेचैनी
जो
सारे शब्दों पर भारी है
shirish jee ,
namskar !
sunder rachna kavita 12 saal baad bhi taro tazza lagti hai .
sadhuwad
काफ़ी दिन बाद आया आपके ब्लॉग पर। आपकी यह कविता पढ़कर लगा कि वास्तव में एक बहुत प्यारी और अच्छी कविता पढ़ी। ऐसी प्यारी कविताएं पढ़वाते रहें।
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