
आप तो नाहक ही डर गए
मैं तो अभी गुस्से में नहीं मुहब्बत में झपटता हूँ हर आने वाले पर उसकी अंगुलियां अपने मुंह में रखकर
अपने दांतों के हल्के दबाव से परखना चाहता हूँ
उनकी मज़बूती
त्वचा का स्वाद मैं महसूस करना चाहता हूँ अपनी अबाध बहती लार में लपेटकर
जान-पहचान बढ़ाने का यह मेरा तरीका है
आप तो .....
मेरा कोई मालिक नहीं...जिन्हें मालिक कहा जाता है मेरा वो तो बब्बा, मम्मा और दद्दा हैं मेरे
मेरी तरह कभी आंखों में देखिए उनकी
ये कुत्ता क्या होता है प्रणय जी?
बब्बा कहते हैं कभी-कभी नाराज़गी में मुझे
'कुत्ता है साला'
और ये साला क्या होता है प्रणय जी?
नाराज़गी क्या होती है मैं पहले नहीं जानता था पर अब जानता हूँ जब बब्बा बात नहीं करते मुझसे
देखते नहीं मुझको देखते भी हैं तो बहुत खुली आंखों से
वरना तो प्यार में
उनकी आंखें कभी खुलती ही नहीं पूरी
प्यार क्या होता है मैं नहीं पूछूंगा आपसे
आप चाहें तो पूछ सकते हैं मुझसे
बब्बा आपको कहते हैं प्रणय जी इसलिए मैं भी कह रहा हूँ प्रणय जी और बब्बा जब कहते हैं प्रणय जी तो उनकी आंखों में भी वैसी ही मुहब्बत होती है जैसी मुझमें जब मैं झपटता हूँ आप पर
बब्बा झपट नहीं सकते हैं इसलिए कहते हैं प्रणय जी शब्दों के हल्के दबाव से
वे भी परखना चाहते हैं
आपकी मज़बूती
ये अज्ञेय क्या होता है प्रणय जी?
बब्बा जब कहते हैं प्रणय जी किसी से बात करते हुए फोन पर तो वो अज्ञेय भी कहते हैं
कभी-कभी मैं जब अलस काली रात के बेहद दार्शनिक दबाव में
निपट लेता हूँ घर के भीतर ही
किसी चोरकोने में तो मुझे डर लगता है
मैं आंखें नहीं मिला पाता बब्बा से मुंह फेरता किसी और जगह चले जाना चाहता हूँ
तब बब्बा सारा ग़ुस्सा छोड़ हंसकर कहते हैं -
कितना तो अपराधबोध है इस साले कुत्ते में
दुनिया चलाने वाले कच्चा चबा रहे हैं उसे और उनमें कोई अपराधबोध नहीं ... अब तो अपराधबोध का न होना ही हमारे देश में सच्चा राष्ट्रवाद है
ये महान क्या होता है प्रणय जी?
ये अपराधबोध क्या होता है प्रणय जी?
ये देश क्या होता है प्रणय जी?
ये राष्ट्रवाद क्या होता है प्रणय जी?
जब मैं खाना खाता हूँ बहुत सारा और पेट भर जाने पर भी और मांगता जाता हूँ तब बब्बा कहते हैं -
कुत्ता है कि अमरीका है साला !
ये अमरीका क्या होता है प्रणय जी?
ये जो आपके साथ बैठे थे सौम्यता साधे बब्बा पंकज भाई कहते हैं इन्हें
इनके बारे में कुछ बोलते बब्बा की आवाज़ बहुत मुलायम हो जाती है
शायद वो प्यार करते हैं इन्हें
इनका या किसी और का भी बब्बा से हाथ मिलाना पसन्द नहीं मुझे
बब्बा सिर्फ़ मेरे हैं और मम्मा के हैं और दद्दा के हैं
दद्दा को देखा है आपने ध्यान से - गौतम दद्दा मेरा!
कितना प्यारा दोस्त...यार
जिसके साथ उछलना-कूदना-झपटना-काटना-चाटना सभी कुछ सम्भव है
प्यार क्या होता है आप गौतम दद्दा से पूछ सकते हैं
जब वो लाड़ में गाल खींचता मेरे कहता है बार-बार -
छ्वीटी....छ्वीट.....छ्वीटीबब्बा कुछ पीते हैं अकसर रात को जिसे आप पी रहे हैं दिन में
मैं भी बहुत चाव से पीता हूँ इसे बब्बा अकसर मेरे कटोरे में डाल देते हैं कुछ बूंदें उस तरल की फिर कभी ख़ुश तो कभी नाराज़ रहते हैं ऐसी हालत में अपने पिता से बात हो जाने पर हमेशा कहते हैं ज़ोर ज़ोर से -
सामंत!
सामंत!
सामंत!
मैं भी उन्हें देख पूरी ताक़त से सिर झटकाता भौंकता हूँ बार-बार
ये सामंत क्या होता है प्रणय जी?
अभी शाम जब आप चले गए बब्बा के पंकज भाई के साथ तो बोतल की बची हुई थोड़ी मुझे देते और बाक़ी ख़ुद पीते हुए वे बड़बड़ा रहे थे थोड़ी ख़ुशी और थोड़ी खीझ के साथ -
जसम....जसम.....जसम...
पार्टी.....पार्टी....पार्टी....
कविता....कविता....कविता....
दोस्ती.....दोस्ती...दोस्ती...
ये जसम क्या होता है प्रणय जी?
ये पार्टी क्या होती है प्रणय जी?
ये कविता क्या होती है प्रणय जी?
जैसी गौतम दद्दा की और मेरी है उसके अलावा ये दोस्ती क्या होती है प्रणय जी?
मुझे आपकी हंसी बहुत अच्छी लगती है प्रणय जी
जैसा आप और पंकज भाई और बब्बा मिलकर हंस रहे थे अभी
या जैसी गौतम दद्दा और मम्मा और बब्बा मिलकर हंसते हैं हमेशा
उसके अलावा भी कोई हंसी होती है क्या?
मैं तो हंस नहीं सकता इसलिए हांफता हूँ ऐसे मौकों पर पूरी जीभ बाहर निकाल कर
बब्बा कहते हैं एक और हंसी दुनिया में होती है -
तानाशाह की हंसी....
अनाचारकी हंसी...
ज़बरे की हंसी..
ये तानाशाह क्या होता है प्रणय जी?
ये अनाचार क्या होता है प्रणय जी?
ये ज़बरा क्या होता है प्रणय जी?
भौं...भौं...भौं...गुर्रर्र.....भौं...भौं...गुर्र......भौं...भौं
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पहुंचाने वाला- शिरीष कुमार मौर्य शाम/9 अक्टूबर 2010/नैनीताल।
(प्रणय जी यानी हमारे ख़ूब जाने-पहचाने प्रणय कृष्ण। वे उन चन्द आलोचकों में हैं, जिनसे हिन्दी की विचारशील प्रतिबद्ध आलोचना का भविष्य बंधा हुआ है। आइसा के जुझारू कार्यकर्ता और जे.एन.यू स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष रहे। इन दिनों इलाहाबाद विश्वविद्यालय में हिन्दी के एसोसिएट प्रोफेसर हैं और जन संस्कृति मंच के महासचिव भी। कर्रे वक्ता हैं और प्यारे इंसान। हमारे दोस्त हैं। 9 अक्टूबर को वे कुमाऊं विश्वविद्यालय में हिन्दी के रिफ्रेशर कोर्स में व्याख्यान देने आए तो मुलाक़ात हुई मुझसे और हमारे घर में पले इस प्यारे काले लैब्राडोर कुत्ते से भी जिसका का नाम उसके गौतम दद्दा ने 'चार्जर' रखा है। इसकी उम्र अभी एक साल है पर लगता है ये हमेशा से हमारे साथ था...आंखों से ओझल...पर हमेशा हमारे साथ।
पंकज चतुर्वेदी भी इस दिन साथ थे...ये कविता जैसा कुछ इन्हीं सब लोगों के लिए...बकौल वीरेन डंगवाल ख़ुदा करे हमारी ये `नदियों जैसी महान वत्सल मित्रताएं´ बची रहें हमेशा। आमीन!)