
गिर्दा को याद करते हुए एक पोस्ट लगा रहा हूँ, जिसे दो साल पहले कबाडखाना में लगाया था. अभी बिलकुल अभी व्यक्ति गया है पर स्मृतियों से पूरा आकाश भरा है...ये आँसूं तुम्हारे ही लिए हो सकते थे गिर्दा.....हमारी ग़लतियों और कोताहियों के लिए हो सके तो माफ़ कर देना।
ये वीडियो छोटे भाई और साधना न्यूज़ में पत्रकार प्रिय बीरेंद्र बिष्ट के सौजन्य से....कैमरे में क़ैद गिर्दा के कुछ अंतिम ऊर्जावान पलों की इस प्रस्तुति के लिए अनुनाद परिवार उनका आभारी है....
जो नर जीवें खेलें फाग
नैनीताल में युगमंच, श्री रामसेवक सभा, पर्यटन एवं संस्कृति निदेशालय, नैनीताल समाचार, नयना देवी ट्रस्ट, संगीत कला अकादमी, श्री हरि संकीर्तन संगीत विद्यालय आदि के सहयोग से तीन दिन का `होली महोत्सव´ मनाया गया। होली के नागर रूप - बैठी होली से लेकर ठेठ ग्राम रूप - खड़ी होली तक होलियों के कई दौर चले। समापन नैनीताल समाचार के पटांगण में बैठी होली से हुआ। अंत में एक होली जुलूस निकाला गया, जिसमें राजीवलोचन साह ने एक विशिष्ट अर्थच्छाया और व्यंजना के साथ उत्तराखंड की जनभावनाओं से खिलवाड़ करने वाले राजनीतिक दलों, तिब्बत में नरसंहार कर रही चीनी सरकार, अमरीका से एक दुरभिसन्धि में बंध रही भारत सरकार, स्थानीय निकायों के निर्वाचन में खड़े होने वाले प्रत्याशियों आदि के लिए आशीष वचन उचारे। जनकवि गिरीश तिवारी `गिर्दा´ ने स्थानीय निकायों के निर्वाचन की तिथि की घोषणा के बाद के मंज़र पर एक गीत रचा है, जिसे उन्होंने होली जुलूस के साथ घूमते हुए जगह-जगह रुककर सुनाया। कबाड़खाना के साथियों और यात्रियों के लिए प्रस्तुत है यह गीत, लेकिन मूल कुमाऊंनी में। जैसे श्रीलाल शुक्ल के राग-दरबारी के शिवपालगंज में पूरा देश समाया है, वैसे ही गिर्दा के इस गीत में पूरे देश की राजनीति !
मेरी बारी, मेरी बारी, मेरी बारी
हाइ अलबेरि यो देखो मजेदारी
धो धो कै तो सीट जनरल भै छा
धो धो के ठाड़ हुणै ए बारी
हाइ अलबेरि यो देखो मजेदारी
एन बखत तौ चुल पन लुकला
एल डाका का जसा घ्वाड़ा ढाड़ी
हाइ अलबेरि यो देखो मजेदारी
काटी मैं मूताणा का लै काम नी ए जो
कुर्सी लिजी हुणी ऊ ठाड़ी
हाइ अलबेरि यो देखो मजेदारी
कभैं हमलैं जैको मूख नी देखो
बैनर में छाजि ऊ मूरत प्यारी
घर घर लटकन झख मारी
हाइ अलबेरि यो देखो मजेदारी
हरियो काकड़ जसो हरी नैनीताल
हरी धणियों को लूण भरी नैनीताल
कपोरी खाणिया भै या बेशुमारी
एसि पड़ी अलबेर मारामारी
हाइ अलबेरि यो देखो मजेदारी
गद्यात्मक भावार्थ -
मेरी बारी ! मेरी बारी - कहते सोचते हैं चुनावार्थी ! हाय ! इस बार देखिए ये मजेदारी!बड़ी मुश्किल से तो सीट अनारक्षित हुई है, बड़ी मुश्किल से हम खड़े हो पा रहे है। और ये वही लोग है जो विपदा आने पर बिलों में दुबक जाते है पर इस समय तो डाक के घोड़ों की तरह तैनात खड़े हैं (पहाड़ के दुर्गम क्षेत्रों में डाक घोड़ों पर ले जायी जाती रही है)। गजब कि बात है कि जो कटे पर मूतने के भी काम नहीं आता, वो कुर्सी की खातिर खड़ा होने में कभी कोताही नहीं करता। कभी जो सूरत नहीं दिखती वही उन बैनरों में चमकती-झलकती है, जो घर-घर लटके झख मारते रहते हैं।
और अंत के छंद में समाया है अपार दुख - कि हरी ककड़ी के जैसा मेरा हरा नैनीताल! हरे धनिए के चटपटे नमक वाले कटोरे -सा भरा नैनीताल ! ऐसे हमारे नैनीताल को नोच-नोच कर खाने चल पड़े हैं ये लोग बेशुमार ! अबकी पड़ी है ऐसी मारामारी !
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yah dukhad khabar kuchh hi der pahale bhai Rajesh saklani ne phone se di thi use confirm karne ke liye hi ANUNAD aur KABADKHANA tak pahuncha hu.salaam is lok kavi. unki smrityon ko fir share karunga.
ReplyDeleteहम मानवीय प्रेम की उस दुर्लभ छुअन को किसी भी हाल में बचायेंगे...नहीं बचा पाए तो ख़ुद भी नहीं बच पायेंगे।
ReplyDeleteshrdhanjali!
वे बहुत प्यार भरे शानदार इंसान थे, जिनकी कोमल हथेलियों की छाप हमारे चेहरे और माथे पर हमेशा रहेगी....हमें उस स्पर्श की ज़रुरत हमेशा रहेगी.....हम मानवीय प्रेम की उस दुर्लभ छुअन को किसी भी हाल में बचायेंगे...नहीं बचा पाए तो ख़ुद भी नहीं बच पायेंगे।
ReplyDeleteआहात हैं हम सभी !विनम्र श्रद्धांजली!
समय हो यदि तो
माओवादी ममता पर तीखा बखान ज़रूर पढ़ें: http://hamzabaan.blogspot.com/2010/08/blog-post_21.html
गिर्दा और पहाड़ जैसे मेरे लिए पर्यायवाची हैं। उनका न रहना भी उतना ही सालेगा जितना किसी पहाड़ का ढह जाना। गिर्दा और उनकी जनकविता को सलाम।
ReplyDeleteबहुत ही मनहूस खबर है शिरीष! कल के स्थानीय अखबार में उनकी नाज़ुक हालत के बारे में पढ़ा, घबराहट तो थी लेकिन फिर भी ऐसी खबर के लिए दिल तैयार नहीं था। आज रास्ते खराब होने की वजह से अखबार ही नहीं आया और फिर आपकी यह पोस्ट! आप लोग जो पहाड़ की सांस्कृतिक सामाजिक गतिविधियों से सक्रियता से जुड़े हैं, उनके लिए यह कितना बड़ा आघात है समझा जा सकता है, क्योंकि मेरे जैसे लोग जिन्हें गिर्दा के सानिध्य में रहने के अवसर ही नहीं मिला बस चार-पांच पंक्ति की बातचीत या उत्तराखंड आंदोलन के समय उनके जोशीले गीतों के साथ स्वर मिलाने भर के इने-गिने मौकों में ही उनके साथ रह कर ही उनके न रहने की खबर से इतने विचलित हैं। श्रद्धांजलि के अलावा कुछ कहने के लिए अब है ही नहीं।
ReplyDeleteसही कहा प्रतिभा ने --- नहीं बचेंगे हम भी तब !
ReplyDeleteगिर्दा जी को नमन। ऐसे जन कवि मुश्किल से पैदा होते हैं।
ReplyDeleteमेरी भी श्रद्धांजली...
ReplyDeleteशिरीष जी ,
ReplyDeleteनमक्सर !
पुण्य आत्म'' गिर्दा साब '' को हार्दिक श्रधान्ज्जली हमारी और ऐ एवं '' आखर कलश '' कि और से ढेरो नमन जव कवि को .
इश्वर उनको मोक्ष प्रदान करे !
ओम शांति शांति !
सादर !
girda ka jana jaise pahad ka achnak gunga ho jana hai...n jaane ab ye pahad bol bhi payega... girda ko meri srdhanjli
ReplyDeleteगिर्दा जी को दी जाने वाली श्रद्धांजलि और उनकी स्मृति कारगर हो, यही कामना है.
ReplyDeleteis geet ko gaane waalon mein main bhee shammil thaa.geet hum ab bhi gayege,par aguaee karne ko girda nahi honge.yaad taazaa karne kaa dhanyawaad shirish jee
ReplyDeleteगिर्दा को मेरी भी श्रदांजली. गिर्दा की रह रह कर बहुत याद आयेगी, उनका रचना संसार, उनकी लोगो को प्यार करने की सहजवृति हमेशा रोशनी का सबब भी बनी रहेगी.
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