
यह उस संभावना के लिए है जो हमें राह दिखाती है
और उन संभावनाओं के लिए जो इंतज़ार में हैं अब भी
कि गाएँ और हमारे भीतर अपने पंख फैलाएँ,
क्योंकि आज की रात शनि घुटनों के बल बैठ
अपने सभी दस हज़ार छल्लों के साथ अर्ज़ कर रहा है
कि जो गीत हम गाते आए हैं उसे और भी गाएँ.
इस वक़्त है दुनिया को ज़रुरत हमारी जितनी पहले कभी नहीं रही.
कस लो सभी तार अपने.
हर सुर छेड़ो.
गर तुम लिख रहे हो ख़त कैदियों के नाम
शुरू करो सलाखों को उखाड़ फेंकना.
गर तुम बाँट रहे हो अँधेरे में टॉर्चें
शुरू करो सितारे बाँटना.
---एंड्रिया गिब्सन
(स्प्लिट दिस रॉक पोएट्री फेस्टिवल द्वारा 9 जून 2010 को अपने सदस्यों/मित्रों/शुभचिंतकों से आर्थिक सहायता मांगने के लिए भेजे गए पत्र से उद्धृत)
बहुत सुन्दर, बढ़िया
ReplyDelete"इस वक़्त है दुनिया को ज़रुरत हमारी जितनी पहले कभी नहीं रही."
...यहाँ कुछ अटपटा सा लगा सर जी, क्या संशोधन की जरुरत है ?
वाह ..कर्मठता और लग्न की ओर प्रेरित करती कविता ...शनि ही क्यों ..क्योंकि वो बड़ा जिद्दी और न्याय प्रिय होता है ?
ReplyDeleteबहुत ही शानदार कविता. हर एक पंक्ति शानदार. सचमुच ऐसी कविताओं की कितनी जरूरत है.
ReplyDeleteइस वक्त है दुनिया को जरूरत है हमारी
जितनी पहले कभी नहीं रही.
कस लो सभी तार अपने...
शुरू करो सलाखों को उखाड़ फेंकना...
शुरू करो सितारे बांटना...
शुक्रिया भारत जी!
bahut sundar.
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