Wednesday, July 7, 2010

कविता इसलिए कि मेरे तलवे मेरी माँ जैसे हैं : मरयम अफ़क

कविता इसलिए कि मेरे तलवे मेरी माँ जैसे हैं

जन्नत है माँ के क़दमों तले
-मुहम्मद साहब



और ताज्जुब कर रही हूँ मैं
कि अपने पैरों पर मौइशचराईज़र लगाने के सिवाय
मैंने किया ही क्या है जो मैं इस लायक हो गई
कि मेरे तलवे माँ जैसे हो जाएं?
मैं पांच बच्चे नहीं पैदा किये
और न ही बड़ा किया उन्हें
इस्लामाबाद में
या पेशावर या कुआलालम्पुर में
या सनीवेल में भी
रसोईघर में कभी खड़ी रही
कई रातों को लगातार
प्याज छीलते या छौंकते हुए
धीमी आंच पर लहसुन या अदरक भूनते हुए
बच्चों की गन्दी लंगोटियां नहीं बदली
न मुलाकातें की टीचरों से
और न बच्चों को स्कूल या दोस्तों के घर ही कभी छोड़ा
सिर्फ एक दिन नहीं बल्कि सालों के
मां के प्यार वाले कामों से ऐसी थक कर
कभी सोई नहीं
कि एक-एक हड्डी दर्द से टूटती रहे
अपनी माँ की तरह
मैंने ज़िन्दगी को सहा नहीं
मैंने इनमें से कुछ भी नहीं किया
पर रातों को माँ के पैरों की मालिश करकर
मैंने याद कर लिए है उसके तलवे
उसके थके हुए औंधे शरीर पर बैठ
नथुनों पर हमला सी करने वाली
गठिया की मरहम मलते हुए
उसके दुबले-पतले पैरों की मालिश करते हुए
रेत जैसे रूखे तलवे और भूकंप के बाद
धरती में पड़ी दरारों जैसे गहरी बिवाइयाँ
मैं सोचा करती
कि उसके तलवों का कुछ नहीं हो सकता
उसके पैर कभी नहीं हो सकते कोमल राजकुमारी जैसे
चाहे जितनी वेसलीन से भरी जुराबें रात भर पहना कर रखी जाएं
कोई भी दवा
मेरी माँ की बिवाइयों का इलाज नहीं कर सकती
अब चौबीस की उम्र में
देखती हूँ अभी से कि मेरे भी हैं बिवाइयाँ
शायद इतना ही बहुत है
कि मैं अपनी माँ की बेटी हूँ
और हम दोनों चलते हैं एक दूसरे के पीछे पीछे
एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप
एक शहर से दूसरे शहर
और तलवों की दरारों में अगर धूल बैठ जाए
और वहीँ बसेरा करने का मन बना ले
तो हम कर ही क्या सकते हैं?

*****

(यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफोर्निया, बर्कली की स्नातक मरयम अफ़क पाकिस्तान में पैदा हुईं, मलेशिया में पली-बढीं और दिसंबर २००२ में अमेरिका आ गईं. उनकी यह कविता देसीलिट मैगज़ीन के छठे अंक में (मूल अंग्रेजी में) प्रकाशित हुई है. इसे यहाँ प्रतिभा जी की 'पाकिस्तानी कविता में स्त्री तेवर' की एक और कड़ी के रूप में लगाया जा रहा है.)

6 comments:

  1. बेहतरीन कविता........

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  2. कहीं किसी का कहा पढ़ा था कि माँ पर कभी कविता नहीं लिखी जा सकती. यह वाक्य बजता रहा है, और अब यह कविता. यह कविता मेरे लिये एक और '' कभी नहीं लिखी जा सकती कविता '' है. अच्छी कविता के लिये अक्सर कहा जाता रहा है कि वह कई आगामी कविताओं का लिखा जाना नामुमकिन कर देती है. इस धारणा में यह भी जोड़ा जाना चाहिए कि वह ख़ुद में भी ख़ासी असंभव होती है.

    भारत भाई का शुक्रगुज़ार हूँ.

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  3. कहीं किसी का कहा पढ़ा था कि माँ पर कभी कविता नहीं लिखी जा सकती. यह वाक्य बजता रहा है, और अब यह कविता. यह कविता मेरे लिये एक और '' कभी नहीं लिखी जा सकती कविता '' है. अच्छी कविता के लिये अक्सर कहा जाता रहा है कि वह कई आगामी कविताओं का लिखा जाना नामुमकिन कर देती है. इस धारणा में यह भी जोड़ा जाना चाहिए कि वह ख़ुद में भी ख़ासी असंभव होती है.

    भारत भाई का शुक्रगुज़ार हूँ.

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  4. हाँ... लड़कियाँ माँ जैसी... हो ही जाती हैं ..

    कविता ठौर खोजती है मन में...

    भाव ही भाव ....

    बेहतरीन

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  5. बेहतरीन कविता, बधाई और धन्यवाद।

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