Saturday, July 31, 2010

मैं हूँ निदा : शोले वोल्पे



मैं हूँ निदा

बसीजी* की गोली मेरे दिल में फंसी रहने दो
करो मेरे खून में सिजदा
और चुप भी हो जाओ, बाबा
- -मरी नहीं हूँ मैं

पिंड कम रौशनी अधिक
मैं यूँ बह निकलती हूँ तुमसे होकर,
तुम्हारी आँखों से लेती हूँ साँसें
खड़ी होती हूँ तुम्हारे जूतों में पैर रख,
खड़ी होती हूँ छतों पे,रास्तों में,
अपने मुल्क के शहरों और गाँवों में
तुम्हारे साथ बढ़ती जाती हूँ आगे
चीखते हुए तुम्हारी मार्फ़त, तुम्हारे संग.
मैं हूँ निदा - कड़क तुम्हारी ज़ुबां की.

*****

29 जून 2009 को निदा आगा-सुल्तान नामक एक छब्बीस वर्षीया ईरानी युवती को, जो तेहरान में राष्ट्रपति महमूद अहमदेनिजाद के पुनर्निर्वाचन के दौरान मतगणना में हुई धोखाधड़ी के विरोध में हो रहे प्रदर्शन में हिस्सा ले रही थी, किसी घर की छत पर छुप कर बैठे बसीजी ने निशाना साधकर सीधे दिल में गोली मारी. इस घटना के एक प्रत्यक्षदर्शी द्वारा अपने मोबाइल फ़ोन के कैमरे से बनाए गए उजबक से वीडियो में उसके सीने से, मुंह से खून उफनते वक़्त उसके पिता का विलाप देखा नहीं जाता; वे निदा का नाम पुकार रहे हैं, उस से रुक जाने की, कहीं न जाने की गुहार कर रहे हैं. फ़ारसी में 'निदा' के मायने हैं स्वर/आवाज़.
*बसीज ईरान का एक सशस्त्र संगठन है जिसे सरकार का समर्थन प्राप्त है; इस संगठन के सदस्य को बसीजी कहा जाता है.

(ईरानी मूल की अमरीकी कवि शोले वोल्पे के दो संकलन,रूफ़टॉप्स ऑफ़ तेहरान और दि स्कार सलून, प्रकाशित हैं. इसके अलावा फरोग फरोखजाद की चुनी हुई कविताओं का (अंग्रेजी अनुवाद में) संकलन हाल ही में आया है, और जिसके लिए उन्हें अमेरिकन इंस्टिट्यूट ऑफ़ इरानियन स्टडीज़ ने वर्ष 2010 के लोइस रॉंथ अनुवाद पुरस्कार से सम्मानित किया है. वे लॉस एंजिलिस में रहती हैं.)

5 comments:

  1. शिरीषजी, आप के ब्लाग पर आकर कुछ नया जरूर मिलता है. खास तौर से विदेशी कवियों और उनकी रचनाओं के बारे में. पीडा, दुख और संघर्ष में हर अच्छी कविता एक ही आवाज में बोलती है, वह चाहे किसी भी देश के कवि की हो. ऐसी रचनाएं मन को गहराई तक आन्दोलित करती हैं. शुभकामनाएं.

    ReplyDelete
  2. aapki kavita me ek nayapan hai.....sacharaachar dekhne ko nahi milta.........good

    ReplyDelete
  3. aapki kavita me ek nayapan hai.....sacharaachar dekhne ko nahi milta.........good

    ReplyDelete
  4. ओह! अद्भुत...क्या कहूं कविता सुन्दर है लेकिन
    काश ये कविता बनती ही न...कितने खूंखार
    हालत से निकली है कविता...वो विडिओ आँख
    के सामने है....

    ReplyDelete
  5. वह विडिओ देखने की हिम्मत नहीं मुझमें…एक बेटी का बाप हूं मैं भी…भारत यार रुला दिया…अद्भुत है इस कविता की ताक़त…प्रतिभा जी सच में काश यह कविता न बनती

    ReplyDelete

यहां तक आए हैं तो कृपया इस पृष्ठ पर अपनी राय से अवश्‍य अवगत करायें !

जो जी को लगती हो कहें, बस भाषा के न्‍यूनतम आदर्श का ख़याल रखें। अनुनाद की बेहतरी के लिए सुझाव भी दें और कुछ ग़लत लग रहा हो तो टिप्‍पणी के स्‍थान को शिकायत-पेटिका के रूप में इस्‍तेमाल करने से कभी न हिचकें। हमने टिप्‍पणी के लिए सभी विकल्‍प खुले रखे हैं, कोई एकाउंट न होने की स्थिति में अनाम में नीचे अपना नाम और स्‍थान अवश्‍य अंकित कर दें।

आपकी प्रतिक्रियाएं हमेशा ही अनुनाद को प्रेरित करती हैं, हम उनके लिए आभारी रहेगे।

LinkWithin

Related Posts with Thumbnails