Sunday, July 18, 2010

तरुण भारतीय की कविता -३

घर के लिए टोटके

पानक्वा*


दरवाज़े और आवाज़े शाम की
आशिक़ों की छुपन हराम की
यह जंगल नहीं शर्त साहित्य की
और नहीं तो आएगा सूरज
आएगा सूरज
आएगा सूरज

माँ ने कहा पश्चिम है रात
पिता ने कहा खोह है ग़म
बाडा ने कहा नमक है नींद
और नहीं तो आएगा रॉबिन
आएगा रॉबिन
आएगा रॉबिन

धनिया के क्यारी में कनफूल
किताब के अलमारी में उबाल
तुम्हारे कलम में मेरा पचास
और नहीं तो आएगा विश्वास
आएगा विश्वास
आएगा विश्वास
***

शक

झगड़े से डरना ही क्या
जैसे कभी चम्मच से नापा नहीं नमक
और 'अफ्रीका के शाकाहारी व्यंजन' में
सारे माप चम्मच के हिसाब में ही दिए गए हों

घर बनाने के सारे नक़्शे मेरी भाषा में
(जिसे हिन्दी कह सकते हैं)
भ्रष्ट नम्रता और ग़रीबी के लाईसेंस से ही
बनते हैं और बोलियों का किरानी ढीठ है
बिना अनुवाद के मानेगा ही नहीं

मेरे बाप ने नहीं दिया तुम्हे मुँह देखना
मेरी माँ ने अचानक किसी मानवशास्त्रीय रस्मों का विवेचन नहीं किया
तुम्हारे संस्कारों ने लोककथा का प्रकाशन नहीं किया
हमने मॉन्गाप में खायी पूडियाँ
और मॉन्गाप के डायनों के थ्लेन** मर गए

घर से डरना ही क्या
पिछली सदी ने दिया है घर को
उत्तर-संरचनावादी शक
***
*पानक्वा- भाग्य को बेवजह बुलाना
**थ्लेन- इच्छाधारी सांप जिसको पालने से धन मिलता है पर उसे समय समय पर इंसान का खून चाहिए। खून नहीं मिलने पर वह अपने मालिक के परिवार को ही खा जाता है।

No comments:

Post a Comment

यहां तक आए हैं तो कृपया इस पृष्ठ पर अपनी राय से अवश्‍य अवगत करायें !

जो जी को लगती हो कहें, बस भाषा के न्‍यूनतम आदर्श का ख़याल रखें। अनुनाद की बेहतरी के लिए सुझाव भी दें और कुछ ग़लत लग रहा हो तो टिप्‍पणी के स्‍थान को शिकायत-पेटिका के रूप में इस्‍तेमाल करने से कभी न हिचकें। हमने टिप्‍पणी के लिए सभी विकल्‍प खुले रखे हैं, कोई एकाउंट न होने की स्थिति में अनाम में नीचे अपना नाम और स्‍थान अवश्‍य अंकित कर दें।

आपकी प्रतिक्रियाएं हमेशा ही अनुनाद को प्रेरित करती हैं, हम उनके लिए आभारी रहेगे।

LinkWithin

Related Posts with Thumbnails