निकानोर पार्रा और होर्खे लुईस बोर्खेस श्रीकांत दुबे के सौजन्य से
वे रहे, हू ब हू वैसे ही, जैसे वे थे उन्होंने चांद को पूजा – लेकिन थोड़ा कम उन्होंने टोकरियां बनाईं लकड़ियों कीगीत और धुनों
वे रहे, हू ब हू वैसे ही, जैसे वे थे उन्होंने चांद को पूजा – लेकिन थोड़ा कम उन्होंने टोकरियां बनाईं लकड़ियों कीगीत और धुनों
आज दोपहरमेरे जीवन के भीतर एक औरत चली जा रही थीगुस्से मेंअपने चार साल के बच्चे के साथ बच्चे के कंधे पर बस्ता थाबस्ता चार
अंगारा मेरी ख्वाहिश– सारा शगुफ्ता इज्जत की बहुत सी किस्में हैंघूंघट, थप्पड़, गंदुमइज्जत के ताबूत में कैद की मेखें ठोंकी गई हैंघर से लेकर फुटपाथ
हम गुनहगार औरतें किश्वर नाहीद ये हम गुनहगार औरतें जो अहले-जुब्बा की तमकनत से न रोआब खोयें न जान बेचें न सर झुकायें न हाथ
बारह फरवरी 1983 सईदा गजदार (पाकिस्तान में कानून-ए-शहादत के तहत किसी अदालत में औरतों की गवाही का कोई खास मूल्य नहीं है. 12 फरवरी 1983
विशाल बहुत दिनों बाद अपनी चुप्पी तोड़ कर संबोधन में विष्णु नागर पर एक लेख और परिकथा में कुछ कविताओं के साथ दिखाई दिया है….मेरे
वियतनामी भाषा में चूमना मेरी दादी ऐसे चूमती हैजैसे पिछवाड़े के आँगन में बम हों फूट रहे,रसोईघर की खिड़की से होकर जहाँपुदीना और चमेली अपनी
बस की लय को पकड़ते हुए ये बस दो रेगिस्तानी जिला मुख्यालयों को जोडती हैजो दिन में शहर और रात में गाँव हो जाते हैसुबह
फ्रेम एक भरी पूरी उम्र लेकरदुनिया से विदा हुई दादी के बारे मेंसोचता है उसका पोताबड़े से फ्रेम में उसके चित्र को देखता। विस्तार में