मैं अनुनाद के लिए जिन कवियों की कविता हासिल करना चाहता रहा हूँ...संजय उनमें से एक हैं। इस बार काफ़ी संकोच के बाद अंततः उन्होंने मेरे अनुरोध का मान रखा है। संजय व्यास जोधपुर में रहते हैं और मैं नहीं जानता कि उनकी कविता उनके ब्लॉग के अलावा भी कहीं छपी है। इस तरह वे शायद पहली बार कहीं छप रहे हैं। मुझे उनसे काफ़ी उम्मीदें हैं। मेरी कामना है कि जल्द ही उनकी कविताएँ हिंदी की पत्रिकाओं में दिखाई दें। जब भी वे वहाँ होंगी युवा कविता की दुनिया में ज़रूर नया कुछ जोड़ देंगी। अनुनाद पर अभी संजय की कविताओं का सिलसिला चलता रहेगा।
आत्मकथ्य
राजस्थान के पश्चिमी सीमावर्ती जिले बाड़मेर के जिला मुख्यालय यानी बाड़मेर क़स्बे का मूलतः निवासी.पिछले कई सालों से जोधपुर में हूँ. आकाशवाणी में कार्यरत. विज्ञान और पत्रकारिता में स्नातक तथा इतिहास में अधिस्नातक. अपने व्यक्तित्व को भी इसी तरह से बेमेल घटकों का समुच्चय पाता हूँ.लगातार अच्छा पढने की रूचि को बनाए रखना चाहता हूँ.यही रूचि कभी कभी लिखने का मोह भी पैदा करती है पर अपने लिखे पर संशय हमेशा बरकरार रहता है।
- संजय व्यास
कोरस में असंगत
दुःस्वप्न उसकी उम्मीद से ज्यादा वास्तविक थे
वे तमाम हॉलीवुड मूवी चैनलों और
हॉरर धारावाहिकों की तरह रोज़ दीखते
और कुछ फीट के फासले पर
घटित होते थे
जिन्हें देखने के लिए रात और नींद का
इंतज़ार नहीं करना पड़ता था
पर हाँ रात और नींद में
कुछ अधिक तीव्रता से
मायावी प्रभाव के साथ
उपस्थित होते थे
स्कूटर पर लदे दिन में जबकि
देर तक मंद और घातक असर से युक्त।
दोनों प्रकारों के बीच सिर्फ़
सुबह की चाय ही रहती थी
या यूँ कहें कि
उसकी सुबह सिर्फ़ उस चाय की प्याली में ही
रहा करती थी
जो प्याली के साथ ही
रीत जाया करती थी
इसके बरक्स
उम्मीद
किसी रेगिस्तानी कसबे में
अरब सागर की
किसी लहर के इंतज़ार की तरह
क्षीण और दूरस्थ थी
या अखबार के परिशिष्ट की
बिना हवाले वाली अपुष्ट ख़बर की तरह अवास्तविक
जो अमेरिका द्वारा
तीसरी दुनिया की भूख के
जादुई डिब्बाबंद समाधान की शोध के
अन्तिम चरण में होने की
बात करती थी
असल में ये एक बीमारी थी
जिसके इलाज़ की ज़रूरत थी
वरना क्या वज़ह थी कि
दुनिया के विज्ञापक नमूने
हर वक्त रौशनी को
परावर्तित करते थे
टीवी के सैकड़ों चैनल
जिनमे न्यूज़ चैनल भी शामिल थे
तत्पर थे उसके मनोरंजन को
शहर के होटल चौबीस घंटे
परोसते थे खाना
और उपभोक्ता सेवा केन्द्र
टेलीफोन की एक घंटी पर
दौड़ पड़ते उसकी ओर।
शोर भी यही है कि
दुनिया बनी हुई है इन दिनों
उम्मीद की राजधानी
फ़िर उसका दम
क्यों घुट रहा है ***
संजय जी की दृष्टि बड़ी विलक्षण है और घटना को लिखने के लिए जिन शब्दों का वो संधान करते हैं वो बड़े चुने हुए होते हैं... यही कारण है कि वो तस्वीर साकार हो जाती है ... हम इनके कायल इन्ही वजहों से रहे हैं...
ReplyDeleteबढ़िया कविता है, वैसे संजय भाई ने कविता पर कितना काम किया है मालूम नहीं है किन्तु साल पिचियासी से नब्बे तक इनकी कहानियां निरंतर प्रकाशित होती रही हैं. हाल में ब्लॉग के जरिये भी बहुत से लोगों का काम सामने आ रहा है. अनुनाद पर कविता को लेकर काफी गंभीर काम हो रहा है. शुभकामनाएं.
ReplyDeleteअपनी बात को कहने की एक दम अनूठी शैली है संजय के पास।
ReplyDeleteएक अच्छी कविता पढ़वाने के लिए शुक्रिया
ReplyDeleteसबसे अलग और शानदार
ReplyDeleteशिल्प, विचार और कथ्य सब लाज़बाब.
जोधपुर स्थापना दिवस पर एक प्रयास
http://nukkadh.blogspot.com/2010/05/blog-post_9538.html
Sanjay-ji ka gadya achha lagta hai, kavita pahlee baar padhee.Agli kab tak?
ReplyDeleteSanjay-ji ka gadya achha lagta hai, kavita pahlee baar padhee.Agli kab tak?
ReplyDeleteसंजय जी को पढ़ना सुखद रहा !!!!! कलम मे नवीनता है ।
ReplyDeleteकविता अच्छी लगी संभावना जगाती हुई…
ReplyDeleteसंजय व्यास को अनुनाद पर देखना अच्छा लगा.इन का ब्लॉग निरंतर पढता हूँ. इन की और कविताएं लगाईए.
ReplyDeleteसुन्दर शब्दों को कविता में पिरोया है -श्री संजय व्यास जी ने । बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनायें।
ReplyDelete-सुरेश सोनी "सुमन"