संजय व्यास की कविता – दूसरी किस्त
घर गृहस्थी में धंसता पुराना प्रेम पत्र (एक काव्यकथा) ” श्री गोपीवल्लभ विजयते” बम्बोई(तिथि अस्पष्ट) प्यारी सुगना, मधुर याद. श्री कृष्ण कृपा से मैं यहाँ
घर गृहस्थी में धंसता पुराना प्रेम पत्र (एक काव्यकथा) ” श्री गोपीवल्लभ विजयते” बम्बोई(तिथि अस्पष्ट) प्यारी सुगना, मधुर याद. श्री कृष्ण कृपा से मैं यहाँ
आत्मकथ्य इन कविताओं में हिमालय का घूमंतू जीवन है. हिमालय के भीतर और ट्रांस हिमालय के आदिम समुदायों में दो तरह की जीवन धाराएं हैं
होमलैंड सिक्योरिटीघंटे दर घंटे दिन प्रतिदिन एअरपोर्ट सुरक्षाकर्मी खड़ी रहती है एक्सरे मशीन के पास बगल से गुज़रते भूतों को मॉनिटर पर देखते हुए तह
एक पुरस्कार समारोह से लौटकरवह सीकरी का दरबार ही था भरा-पूराऔर वहां संत ही थे सारेयह ग़र्मियों की एक ख़ुशनुमा शाम थी जब शहर के
स्त्रियों की खिलखिलाहटेंधू धू कर जला देती हैं अन्याय के महल चौबारेऔर झूठी मनगढ़ंत कहानियाँइनमे तप कर सुन्दर सफ़ेद दीप्ति से निखर जाती हैं…ये संसदीय
मैं अनुनाद के लिए जिन कवियों की कविता हासिल करना चाहता रहा हूँ…संजय उनमें से एक हैं। इस बार काफ़ी संकोच के बाद अंततः उन्होंने
वेन गोग़ की पेंटिंग गूगल से साभार पुराने दोस्त याद आते हैं पुराने दोस्त स्मृतियों में रहते हैं मेरा जीवन तीन चौथाई स्मृतियों से बना