इस पोस्ट के साथ प्रतिभा कटियार अनुनाद की टीम का हिस्सा बन रही हैं। अनुनाद परिवार की ओर से मैं उनका स्वागत करता हूँ। ब्लॉग जगत में प्रतिभा एक सुपरिचित शख्सियत हैं। उनका रचनात्मक संग - साथ निश्चित रूप से अनुनाद को और समृद्ध बनाएगा। यहाँ महिला दिवस के अवसर पर वे अपनी पहली पोस्ट के रूप में आलोक श्रीवास्तव की कुछ कविताओं के साथ उपस्थित हैं। इसके बाद वे ख़ुद अनुनाद पर पोस्ट लगाएंगी।
......... इधर हमारे साथी यादवेन्द्र ने प्रस्ताव किया है कि जब परिवार बढ़ रहा है तो एक बार उसे एक जगह इकठ्ठा हो मिलना भी चाहिए। प्रस्ताव बहुत अच्छा है पर अमरीकावासी भारत और रूसवासी अनिल जनविजय जी एक साथ हिंदुस्तान पधारें तो .... मैं इसे धरातल पर लाने का प्रयास करता हूँ....वरना रूस और अमरीका के मोह में न पड़ कर बाक़ी जनों को ही नैनीताल या पचमढ़ी आने का न्यौता दूंगा।
महिला दिवस पर विशेष
क्या होता है स्त्री होना. कैसा होता है एक स्त्री का मन. कैसा होता है उसका चेतन व्यक्तिव. कितनी जरूरत है सृष्टि को उसके संपूर्णत्व की. कैसे पूरी की जाती है एक लंबी यात्रा स्त्री के मन के करीब पहुंचने की. क्यों किसी स्त्री के करीब होकर भी उसके पास पहुंच पाना आसान नहीं होता है कभी भी. सृष्टि की कितनी व्याधियों को पार करने की क्षमताएं अपने भीतर समाए कैसे एक स्त्री सिर्फ जी रही है इस धरती पर उदास. उन संभावनाओं को, उसके मन को, उसके संपूर्णत्व में स्वीकार करने वाली, उनसे शक्ति लेने वाली कविताएं प्रेम कविताओं के रूप में आलोक श्रीवास्तव की कलम से सधती हैं. आलोक का नया संग्रह दिखना तुम सांझ तारे को उनका पांचवां कविता संग्रह है. उनकी लगभग सभी कविताएं स्त्री के लिए लिखी गई हैं. लेकिन इनकी खासियत ये है कि ये स्त्री की देह के पार जाकर उसे समझते हैं. उसे पाने की कामना नहीं करते, उसके मुक्त होने की कामना करते हैं. आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर इन कविताओं के जरिये चलते हैं स्त्री के मन के पास...वहां जहां वो सचमुच रहती है अपनी संपूर्णता में - प्रतिभा कटियार
आलोक श्रीवास्तव की कविताएँ
दिखना तुम सांझ-तारे को
तुम मुक्त पांखी की तरह उडऩा
लहरों की तरह खेलना चट्टानी तट से
देश-देशावर में सुगंध की तरह फैली रहना तुम
मेरा प्रेम तुम्हें बांधेगा नहीं
वह आसमान बनेगा
तुम्हारी उड़ान के लिए
तुम्हारे स्वप्न के लिए नींद
तुम्हारी गति के लिए प्रवाह
तुम्हारी यात्रा के लिए प्रतीक्षा
प्रिय तुम
अपनी ही खुशबू में खिलना
अपनी ही कोमलता में
दिखना तुम सांझ-तारे को
मेरा प्रेम लौटा देगा तुम्हें
सुदूर किसी नदी के किनारे छूटा तुम्हारा कैशोर्य
वह तुम्हें आगत युगों तक ले जाएगा
भव्यता के, सौंदर्य के उस महान दृश्य तक
जो तुम खुद हो
और जिसे मैंने
जीवन भर निहारा है
अपने एकांत में!
***
क्या होता है एक स्त्री का मन?
कितने फूल गुंथे होते हैं उसमें
कितने रंग, कितने राग
कितने स्वप्न अस्फुट
या कितने भय
कितने विकल स्वर
असुरक्षित वन
कितना छूटा बालपन
बीती किशोर वय
सुदूर देखती
अधेड़ दिनों की ठहरी कतार
पूरब के एक उदास देश में
दु:ख का एक गीत रोता है
पथ पर
तुम पूछते हो
क्या होता है प्रेम!
***
एक लहर विशाल...
तुम मुझे ले जाती हो इस पृथ्वी की निर्जन प्रातों तक
अक्लांत धूसर गहन रातों तक
तुम्हारे होने से ही खिलता है नील चंपा
मैंने तुममें देखा, पाया वह उन्नत भाव समवित
जो मानवता का अब तक का संचय
नहीं तुम रूप, नहीं आसक्ति, नहीं मोह, नहीं प्यार
जीवन का एक उदास पर भव्य गान
अंबुधि से उठी एक लहर विशाल
जिसमें भीगा मेरा भाल...
***
तुम्हारे जरिये
एक बहुत बड़ा संसार मिलता है मुझे तुम्हारे $जरिए
किसी अतीत में खोया हुआ
बीतता हुआ वर्तमान में
भविष्य में आता हुआ
जीवन से गुजरे तमाम चेहरे फिर से लौटते हैं
लौटती है एक शाम
एक तारा आसमान का फिर चमक उठता है सुदूर दिशा में
वह लड़की जो अल्हड़ उमर का एक प्रिय चेहरा थी
दिखती है जीवन की अनुभवी निगाहों से देखती हुई
एक किताब जिसमें मनुष्यों के दुख थे
आंसू बन टपकने लगती है आंखों से
यह जीवन गहरा है
इसमें सिर्फ उम्मीदें सच हैं
हजार दुखों और लाख हारों के बाद
सुदूर उदित वह तारा सच है.
***
तुम मुक्त पांखी की तरह उडऩा
लहरों की तरह खेलना चट्टानी तट से
देश-देशावर में सुगंध की तरह फैली रहना तुम
मेरा प्रेम तुम्हें बांधेगा नहीं
वह आसमान बनेगा
तुम्हारी उड़ान के लिए
तुम्हारे स्वप्न के लिए नींद
तुम्हारी गति के लिए प्रवाह
तुम्हारी यात्रा के लिए प्रतीक्षा
प्रिय तुम
अपनी ही खुशबू में खिलना
अपनी ही कोमलता में
दिखना तुम सांझ-तारे को
मेरा प्रेम लौटा देगा तुम्हें
सुदूर किसी नदी के किनारे छूटा तुम्हारा कैशोर्य
वह तुम्हें आगत युगों तक ले जाएगा
भव्यता के, सौंदर्य के उस महान दृश्य तक
जो तुम खुद हो
और जिसे मैंने
जीवन भर निहारा है
अपने एकांत में!
***
क्या होता है एक स्त्री का मन?
कितने फूल गुंथे होते हैं उसमें
कितने रंग, कितने राग
कितने स्वप्न अस्फुट
या कितने भय
कितने विकल स्वर
असुरक्षित वन
कितना छूटा बालपन
बीती किशोर वय
सुदूर देखती
अधेड़ दिनों की ठहरी कतार
पूरब के एक उदास देश में
दु:ख का एक गीत रोता है
पथ पर
तुम पूछते हो
क्या होता है प्रेम!
***
एक लहर विशाल...
तुम मुझे ले जाती हो इस पृथ्वी की निर्जन प्रातों तक
अक्लांत धूसर गहन रातों तक
तुम्हारे होने से ही खिलता है नील चंपा
मैंने तुममें देखा, पाया वह उन्नत भाव समवित
जो मानवता का अब तक का संचय
नहीं तुम रूप, नहीं आसक्ति, नहीं मोह, नहीं प्यार
जीवन का एक उदास पर भव्य गान
अंबुधि से उठी एक लहर विशाल
जिसमें भीगा मेरा भाल...
***
तुम्हारे जरिये
एक बहुत बड़ा संसार मिलता है मुझे तुम्हारे $जरिए
किसी अतीत में खोया हुआ
बीतता हुआ वर्तमान में
भविष्य में आता हुआ
जीवन से गुजरे तमाम चेहरे फिर से लौटते हैं
लौटती है एक शाम
एक तारा आसमान का फिर चमक उठता है सुदूर दिशा में
वह लड़की जो अल्हड़ उमर का एक प्रिय चेहरा थी
दिखती है जीवन की अनुभवी निगाहों से देखती हुई
एक किताब जिसमें मनुष्यों के दुख थे
आंसू बन टपकने लगती है आंखों से
यह जीवन गहरा है
इसमें सिर्फ उम्मीदें सच हैं
हजार दुखों और लाख हारों के बाद
सुदूर उदित वह तारा सच है.
***
ये जीवन गहरा है और उम्मीदें सच हैं. सुंदर समसामयिक चयन.
ReplyDeleteअनुनाद परिवार में प्रतिभा जी का स्वागत.
ReplyDeleteचयन के लिए आभार.
कवितायेँ स्त्री के लिए विराट कामना गीत लगीं.
फिर पढकर देखता हूँ.
pahli kavita wakayee stri ke liye premanubhooti se paripurn hai.pratibhaji ka shukriya.
ReplyDeleteइतने विशाल और सुंदर कोमल भावों से भरी कविता ने मन मोह लिया . प्रतिभाजी को शुक्रिया
ReplyDeleteप्रतिभा जी का स्वागत.
ReplyDeleteयादवेन्द्र जी का सुझाव स्वागतयोग्य है. अनिल जी तो साल में दो-तीन बार देश का चक्कर लगाते हैं पर मैं शायद सालेक भर न आ पाऊं. तो जैसा शिरीष भाई ने कहा है 'अमेरिका और रूस के मोह में न पड़कर' बाकी जनों का मिलाप हो जाये; हम 'अहले-क़फ़स' ऑनलाइन शिरकत कर लेंगे.
कविता कम भावों का उच्छ्वास अधिक...
ReplyDeleteसचाई कम, सच का आभास अधिक.....
इसमें हमारा ही स्वार्थ है ....
ReplyDeleteये बढ़िया है ... लोग बढ़ें... हमें भी ढेर सारी अच्छी कवितायेँ पढने को मिलेंगी...
देह से वाकई दूर लगी कवितायेँ...
पाठकों की तरफ़ से भी प्रतिभा का स्वागत …
ReplyDeleteदेश देशावर में सुगंध की तरह फैली रहना तुम
ReplyDeleteमेरा प्रेम तुम्हें बांधेगा नहीं
वह आसमान बनेगा
तुम्हारी उड़ान के लिए
तुम्हारे स्वप्न के लिए नींद
तुम्हारी गति के लिए प्रवाह
तुम्हारी यात्रा के लिए प्रतीक्षा....
बहुत उम्दां। आलोक जी का ये काव्य संकलन अब पढ़ना होगा। इन कविताओं को पढ़वाने के लिए प्रतिभा जी का शुक्रिया..।
चयन के लिए आभार.
ReplyDeleteप्रतिभा का स्वागत है ......,इसबार का चयन अनुपम .
ReplyDeleteptchle sangrah ke shrinkhla ki agli kadi me "dikhna tum..."stri man ko ek naye alok me dekhne ka hradysparshi prays
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