हमारा प्रिय कवि गीत अब अपना पहला कविता संग्रह "आलाप में गिरह" लाया है, जिसका मुझे पिछले कुछ समय से बेहद इंतज़ार था। संग्रह तो अभी मुझे नहीं मिला है पर यहाँ हमारे पास उसका ख़ूबसूरत जैकेट है और साथ में एक नई अप्रकाशित कविता भी। मैं अपने इस साथी को बधाई देता हूँ। गीत की कविता अपने नितान्त नए और मौलिक मुहावरे में भारतीय समय, खासकर २००१ के बाद के समय, का एक अनोखा आख्यान रचती है और ऐसा करने के लिए उसे किसी अपेक्षाकृत बहुत लम्बे शिल्प की ज़रुरत कभी नहीं होती - यह गीत का अपना ख़ास हुनर है, मैं ख़ुद अपने लिए भी जिसकी कामना तो बहुत करता हूँ पर जो मेरे पास नहीं है...इस पीढ़ी में शायद किसी के पास नहीं है....

दौड़ते दौड़ते उन स्टेशनों तक पहुंचा जहां ट्रेनें इन्तज़ार नहीं करतीं
पहुंचा तो लोगों को इन्तज़ार करते देखा
देखता रहा ट्रेनें मुझे लोगों की तरह दिखीं लोग ट्रेन की तरह
पुल की रेलिंग से दो बच्चे झुके हैं चीखते हुए बाय
झुके हैं क्योंकि बहुत छोटे हैं
उचकते हुए झुका जा सकता है ऐसा बड़प्पन भरा ख़याल आया
क्या करूं ये बड़प्पन जाता ही नहीं जैसे मुंहासों से बने छोटे सुराख़
मैले कपड़ों वाले एक आदमी को खोज रहा था
सोचिए, कपड़ों का मैला होना ख़त्म हो जाए
तो कितने प्रतीक यूं ही निकल जाएंगे जीवन से
अच्छा, आप असहमत हैं? लोग अक्सर रहते हैं मुझसे
जब कह देता हूं, इन दिनों
सहवासों को नहीं सहमति को सन्देह से देखो
सन्दिग्ध होने से डरता हूं तो साहस खो देता हूं
सिर झुका कहता हूं अपने शब्द मानो किसी और के
मूर्ख होना मंज़ूर करता हूं
सन्दिग्ध अक्सर बच निकलते हैं
तभी शोर हुआ चोर चोर चोर मेरे सामने वाले ने कहा सारे लोग चोर
मैं बेहद शर्मिन्दा हुआ दो चोर एक-दूसरे के सामने बैठे हैं
मैंने कहा- नहीं जिसे 'चाय पियोगे- नहीं' वाले नहीं की तरह लिया गया जबकि
मेरा नहीं सिर्फ़ मेरा नहीं नहीं है; लो, आप फिर असहमत हैं!
चलिए, मैंने हाथ जोड़कर नमस्कार किया
इस राजनीतिक हिम-युग में काइयांपन की निशानी कहा उन्होंने इसे
मैं इसे मुद्रा-स्फीति जैसा इन दिनों चर्चित एक शब्द देता हूं
***
बधाई...बधाई...बधाई!
ReplyDeleteपढ़ रहा हूँ।
ReplyDeleteख़ूब-ख़ूब बधाई
ReplyDeleteइस संकलन का लंबे समय से इंतज़ार था…
गीत जी की कविताएँ मुझे भी पसंद हैं.बधाई.
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई गीत भाई....
ReplyDeleteअरे गीत जी की प्रशंसक तो मै उसी समय से हूँ जब उन्होंने ''साहिब हैं रंगरेज '' कहानी लिखी थी , कविता पुस्तक के लिए हार्दिक बधाई .
ReplyDeleteगीत की कविता को पढ़ना प्रवाह में पड़ जाने जैसा है. वहाँ सूझ और शिल्प की इतनी आत्मसजग अनेकान्तता है कि सिर्फ़ उसकी शक्ति से भी एक वक्तव्य निर्मित होता है. मसलन '' उचकते हुए झुका जा सकता है ऐसा बड़प्पन भरा ख़याल आया '' में '' उचकते हुए झुका जा सकता है '' से भी भीतर एक फूल खिला था. लेकिन कविता सिर्फ़ खिलने से सम्पूर्ण नहीं हुई. वह खिलने मात्र को अधूरा मानने की शर्त पर होती है, और ज़ाहिर है कि इसका भी कोई नियम नहीं है. ( मेरे भीतर इसे समग्रता-बोध जैसा कोई '' शब्द दे देने '' का '' बड़प्पन भरा ख़याल '' भी आ रहा है.)
ReplyDeleteगीत को पढ़ते हुए गिरिराज याद आते रहते हैं. यही अनुभव गिरिराज को पढ़ते हुए भी. यह कविता की बजाय मेरे गुण-दोष हैं. तो, इस प्रकार, गीत, गिरिराज, शिरीष - तीनों कवियों को बधाई.
badhai!
ReplyDeleteआजकल कवि-मित्रों की किताबें लगभग किसी सनसनीखेज़ समाचार की तरह आती हैं - महीनों उनसे बातें करते हो जाते हैं लेकिन किताब का कोई जिक्र नहीं आता,अलबत्ता किसी रोज किताब जरूर आ जाती है। पर ये सब इस जालिम जमाने की करतूत है, कवियों के उतने जालिम होने के दिन अभी नहीं आये हैं खुदा करे।
ReplyDeleteइस संग्रह की ज़्यादातर कविताएँ पढ़ी हुई हैं और उनमें से ज़्यादातर पसंद हैं। बहुत खुशी में भी सुपरलेटिव्ज इस कमबख़्त मुँह से नहीं झरेंगे लेकिन किताब के आने की खुशी को उसके साथ एक आलोचनात्मक संबंध बनाने की आदत तक ले जाना होगा। व्योमेश जैसे कवि के संग्रह पर कोई समीक्षा मेरे देखने में नहीं आई है ना किसी के, मुझे मिला के,ऐसा करने की ख़बर है।
शिरीष ने जो नुक्ता काम में लिया है वो आठवें-नवें दशक की तरह का ही है, इक्कीसवीं का पहला। हमारे कवि अगर दस दस बरस की प्रासंगिकता के कवि होते जा रहे हैं तो यह तारीफ़ की नहीं,ख़तरे की बात है पर ख़तरे की यह घंटी बजायेगा कौन?
kitaab ko dekhane padhne kee utsuktaa rahegi
ReplyDeletebahut-bahut badhai aur shubhkamnayen...
ReplyDeleteगिरि मुझे तुम्हारी टिप्पणी का इंतज़ार था...वो आ गई.
ReplyDeleteतुम तो कब से घंटी बजा रहे हो प्यारे पर कोई सुने तो....कभी न कभी तो सुननी ही होगी.....
हाँ अपने एक बिंदु को स्पष्ट कर दूँ....मैंने गीत के लिए २००१ का उल्लेख किया तो बस इसलिए कि उसकी कविता यहीं से शुरू होती है...जैसे तुम्हारी भी.....यह रचना के प्रासंगिक होने - रहने की तिथि नहीं बस शुरूआत की तिथि है...हो सकता है मैं ठीक से कह नहीं पाया....आगे १० साल की कोई सीमा नहीं ....कौन कहाँ तक जाता है यह तो उम्र गुजरने के बाद ही पता चलेगा....शायद तब हम न होंगे.
तुम्हारी बात में दम है दोस्त.
संग्रह के आने पर गीत को बधाई. गीत, इस वक्त वो ग्रुप फोटो याद आ रहा है, बहुत बरस पहले का.
ReplyDeleteगिरिराज ने बहुत गंभीर बात कही है भाई…इस पर अलग से बात होनी ही चाहिये
ReplyDeleteशुक्रिया दोस्तो.
ReplyDeleteअनूप जी, जि़क्र छेड़ा और वह ग्रुप फोटो फिर याद आ गया.
देखिए, मैंने चिपका भी दिया ब्लॉग पर.
http://geetchaturvedi.blogspot.com/2010/02/blog-post.html
प्रथम कविता-संग्रह के प्रकाशन पर गीत को बहुत-बहुत आत्मीय बधाई! समकालीन परिदृश्य में गीत की कविताओं का स्वर सचमुच अलग है. यह आश्वस्तिकारक है.
ReplyDeleteगीत जी की कविताओं के संकलन का सचमुच इंतजार था अर्से। हिंदी कविता का मे्रे पसंदीदा ह्स्ताक्षरों में से सबसे सुडौल हस्ताक्षर लगते हैं मुझे गीत साब।
ReplyDeleteगिरिराज जी और आपका संवाद भी दिलचस्प बन पड़ा है इसी बहाने। कविता को इन दमदार हाथों में थमा देख खुशी होती है दिल से।
बधाई हो बधाई।
ReplyDeleteबधाई हो ! गीत की कविताओं का इंतजार रहता है हमेशा ही ।
ReplyDeleteगीत जी को बहुत-बहुत बधाई!!!
ReplyDeleteकितनी खुशी कि बात है गीत भाई की लिखी , एक ही जगह पर भी मिल सकती है अब /
ReplyDeleteएक फ़ायदा मुझे लगता है वो ये की , कवी की विविधता भी सम्प्रेशीत होती है,सन्ग्रह से /
उस्के जीवन की/कवी जीवन की यात्रा के पडाव का भी अन्दाज़ा आता है मस्लन एक दशक या दो दशक/
(क्योन्कि कई बार तारिखे भी तो मिल जाती है )
कई बार इन पडाव पर अन्दाजा होता है कि वो रुक कर लिख रहा है ? रुक कर पीछे/आगे देख रहा है ? चलते हुए लिख रहा है,या लेट कर या मर्णासन्न हालत मे या ...........
कहना ये चाहता हु कि सन्कलन सिर्फ़ कविताओ का ही नही,अन्ततः कई चीज़ो का हो जाता है /
अब इसे कौन कैसे देखे,ये तो है हि नीजी !
और इतना की कवी,उस्के पडाव,समय मे उसका विभाजन आदि...कोई करे
बशर्ते
कवी आपका प्रिय हो,जो कि गीत भाई हमारे है /
खूब सारी बधाई ,
गीत जी,
ReplyDeleteपहली किताब छपण ते साडे वल्लों
लख लख वधाइयां कबूल करनीआं।
मुद्दत हो गई उनको देखे हुए
ReplyDeleteशब्दों ने आज उनका अक़्स घड़ा है
इश्क़ आ गया भाजी तुहाडे ते. बहुत-बहुत वधाई होवे।
गीत भाई को बधाई । इस संग्रह का इन्तजार था । वह सर्वश्रेष्ठ युवा कवि है । उनकी कहानियां भी पढी हैं । और मानता हू कि वह सर्वश्रेष्ठ कहानीकार भी है । वह कवि बेहतर है या कहानीकार इस पर भी चर्चा होना चाहिये ।
ReplyDeleteएक साथ दो विद्याओं में इतना श्रेष्ठ लेखन चमत्क्रत करता है और आश्वस्त भी करता है । पुन: बधाई ।
शुरुआत तो मुझे भी सब की तरह बधाई से करनी है. लेकिन इस में जोड़ना चाहूँगा कि इस पोस्ट की कविता को हम में से ज़्यादातर लोग भूल सा गए.( बधाईयों के चक्कर में) मुझे लगता है कि टिप्पणी इस कविता पे फोकस होनी चाहिए थी. शायद इसी मे ब्लॉग्गिंग की सार्थकता है. क्यों शिरीष ?
ReplyDeleteभाई, पहली किताब पहले बच्चे की तरह होती है, घर के सब लोग आनंदित होते हैं। हम सब गीत की किताब को लेकर जो खुशियां मना रहे हैं, वह गीत के कहानी संग्रह आने तक जारी रहेंगी। बहुत बहुत बधाइयां गीत भाई।
ReplyDeletegeet ji ko badhai. sath mein di hayee kavita bahut achchi lagi. anya kavitayein padhne ki kamna jagi. manmohan saral
ReplyDeletebadhaee. kavita bhee bahut achchhee heiy. kitab kahan se chhapee heiy?
ReplyDeletegeet bhai,
ReplyDeleteaapke aane wale kavya-sangrah ka mukhda dekh kar man mugdh ho gaya...sachmuch.
kavita padhne ke baad kitab kharidne ki lalak badh gai.
kitab kab tak aa rahi hai?
pratiksha mein...
एक अच्छी कविता पढने को मिली
ReplyDeletepyare geet ko dher saari badhaiyan.
ReplyDeletebahut dino se sun raha tha iske ane ki ahat. ab jake ayi hai. badhai.
Rahul Rajesh.
बधाई और उम्मीद कि यह सफर जारी रहे...
ReplyDeletegeet, shirish, vyomesh, giriraj, anurag ... sabhi diggaj yahan ek swar men 'geet' gaate mile. achha laga. kuchh jo chhoot gaye, bhula diye gaye ya fir yun hi rah gaye the, un sab ki taraf se badhayee.
ReplyDeleteTushar
मुखपृष्ठ पर एक पैराडाइम शिफ्ट देख रहे हैं भाई लोग. पुस्तक का नाम तो पढ़ने में नहीं आ रहा, लेकिन कवि का नाम लार्जर दैन लाइफ. अंग्रेजी इस्टाइल कई तरीकों से आता है. पर इस स्टेटमेंट को किराडू उवाच के साथ्ा जोड़ कर भी पढ़ा जाए.
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