Tuesday, December 29, 2009

मारियो सुसको की कविताएँ


बोस्निया के युद्ध की विभीषिका झेल चुके मारियो सुसको सरायेवो के रहने वाले हैं. 1993 में सरायेवो छोड़ कर अमेरिका में बस गए सुसको के अट्ठाइस कविता संग्रह प्रकाशित हैं. वे एक उत्कृष्ट सम्पादक और अनुवादक भी हैं, उनकी कविताओं को कई सम्मान प्राप्त हुए हैं.

पुनर्निर्माण

ठंडे सफ़ेद रसोईघर में
माँ बैठेगी मेज़ के किनारे,
प्रतीक्षा में कि मैं लाऊं मेरी वह किताब
जिसमें मैं लिखता हूँ कि

कैसे उसकी हड्डियों को मैं खोद निकालता हूँ
उन्हें वापिस घर ले जाने के लिए.

वह होगी वहाँ, पुनर्निर्मित,
घरों के बाहरी हिस्सों की मानिंद
और मैं इस हैरत में कि
पार्क का कौन सा पेड़ उसका ताबूत था
जिस पर अब कभी शाखें नहीं आएँगीं.
कचरे और सड़ी पत्तियों से गन्धाएँगे मेरे हाथ
उस सुबूत की तलाश में पन्ने पलटते हुए
जो न हो कोई लिपा-पुता सच.
यह जानकर कि माँ सचमुच कहाँ है
मैं शायद यह भूल जाऊं कि मुझे कहाँ होना चाहिए.
वह कहेगी, मैं कभी नहीं समझ पाई
तुम्हारी कोई भी कविता, और मैं पाऊंगा खुद को
उसकी गोद में चुपके से पुस्तक बंद करते,
और झूठमूठ यह जताते हुए
कि मैं गलत सफ़हे पर,
गलत मकान या गलत शहर में हूँ.

***


फ्रेम जड़ी यादें

और एक दिन आया जब हर कोई
बचता फिर रहा था छुपकर बरसाई जा रही गोलियों से

अ.हेलमेट और बुलेटप्रूफ जैकेट पहने एक औरत
गोडॉ* और एक पेड़ की तलाश में
ब. ढंके-छुपे इतिहास के जर्जर हॉल में
विकलांग से ऑर्केस्ट्रा का संचालन करता हुआ एक आदमी
क. तुरत-फुरत बनी कब्रगाह से
छोटी डंठलों वाले फूल चुनती हुई एक औरत
ड .एक लड़की जो चुपके से निकल पड़ी बाहर
बाज़ार और माचिस की डिबिया ढूँढने
ई. एक लड़का जो दौड़ पड़ा घूरे के ढेरों के बीच
अपने भटके हुए कुत्ते की खोज में
फ. एक बूढी अन्धी औरत जो समझा नहीं पाई
क्यों उसने यकायक फैसला लिया अपनी तंग कोठरी से बाहर निकलने का

ड. ई. और फ. उस दिन मारे गए
-- मुझे कैसे पता?
उस दिन मैं भी था उनके साथ मरा.

फिर भी,
ड. बाहर जाती रहती है,
जबकि मैं उसके लिए माचिस ला चुका हूँ
ई. ढूँढता फिरता है, जबकि मैंने
उसके कुत्ते को नदी की धारा में बहकर जाते हुए देखा
फ. बाहर खड़ी रहती है, जबकि मैं
अपने अदृश्य हाथ हिला हिला कर उसे अन्दर जाने को कहता हूँ

मैं उन्हें देखता हूँ अपनी स्क्रीन पर,
फिर स्क्रीन के रंग ऑफ कर देता हूँ
और निहारता हूँ फ्रेम जड़ी यादों को,
इस बात का इन्तज़ार करते हुए कि
कब मैं लड़की को उसकी माचिस देने जाता हूँ
भटक गए लड़के के लिए कोई और कुत्ता कब ढूँढता हूँ
कब बूढी अन्धी औरत का हाथ पकड़ कर
उसके साथ सड़क पर चलता हूँ

और हम दोनों मुस्कुराते हैं और टटोलते हैं अपनी राह
सूरज की उस तेज़ रौशनी में जो परछाई नहीं छोड़ती.
*****
*सैमुएल बेकेट के प्रसिद्द नाटक 'वेटिंग फॉर गोडॉ' का एक रहस्यमयी चरित्र जिसका नाटक के अन्य चरित्रों को इंतज़ार रहता है

5 comments:

  1. बढ़िया रचना प्रस्तुति के लिए आभार . नववर्ष की हार्दिक शुभकामना .

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  2. भारतभूषण जी आप बहुत अर्थवान समसामयिक कविताएँ लाते हैं. अनुनाद के पिछले पेजेज़ पर जाने से पता लगता है कि आपने कितना मूल्यवान कार्य शिरीष जी के ब्लॉग के लिए किया है. वे तो आपको शुक्रिया कहते ही होंगे--मुझ जैसा पाठक भी आपको शुक्रिया कहता है.

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