Friday, December 18, 2009

हरेप्रकाश उपाध्याय की कविता

हरेप्रकाश उपाध्याय युवा पीढी के कवियों में एक चर्चित नाम है। उन्हें २००६ का अंकुर मिश्र कविता पुरस्कार मिला है और इस वर्ष उनका पहला संग्रह "खिलाड़ी दोस्त और अन्य कविताएँ" ज्ञानपीठ प्रकाशन से छप कर आया है।

वर्तमान परिदृश्य में

यह जो वर्तमान है
ताजमहल की ऐतिहासिकता को चुनौती देता हुआ
इसके परिदृश्य में
कुछ सड़कें हैं काली-कलूटी
एक दूसरे को रौंदकर पार जातीं

बालू से भरी नदी बह रही है
पानी है, मगर मटमैला

कुछ सांप हैं फन काढ़े हुए
कुछ नेवले मरे पड़े हैं
जाने कितना लीटर खून बिखरा है
जाने किसका है

एक कुत्ता हड्डी चाट रहा है
कुत्ते की बात से
याद आया वह दृश्य
जिसमें पत्तलों की झीनाझपटी खेलते थे कुत्ते
यह दृश्य इस परिदृश्य में
कहीं नहीं है

इस परिदृश्य में एक पोस्टर है
इसमें लगभग बीस साल का लड़का
चालीस साल की औरत की नाभि में वंशी डुबोए हुए है
पोस्टर के सामने क़रीब दस साल का लड़का मूत रहा है
बगल में गदहा खड़ा है

इसकी आंखों में कीचड़
पैरों में पगहा
और पीठ पर डंडे के दाग़ हैं
यह आसमान में थूथन उठाए
कुछ खोज रहा है

सफ़ेदपोश एक
भाषण दे रहा है हवा में
हवा में उड़ रही है धूल
वृक्षों से झड़ रही हैं पत्तियां
मगर मौसम पतझड़ का नहीं है
परिदृश्य में नमी है

इस परिदृश्य में
मंदिर है मस्जिद है
दशहरा और बकरीद है
आमने सामने दोनों की मिट्टी पलीद है

प्रभु ईसा हैं क्रास पर ठुके हुए
महावीर नंगे बुद्ध उदास
गुरु गोविंद सिंह हैं खड़े
विशाल पहाड़ के पास
यहीं ग़लत जगह पर उठती दीवार है
एक भीड़ है उन्मादी
इसे दंगे का विचार है

सीड़ और दुर्गन्ध से त्रस्त
साढ़े तीन हाथ ज़मीन पर पसरा
इसी परिदृश्य में
मैं कविता लिख रहा हूं।


***

6 comments:

  1. जी हाँ ये बिलकुल अलग रंग है अनुनाद पर छपी कविता का - जनाब व्योमेश जी, जनाब लाल्टू जी, जनाब गिरिराज जी, जनाब पंकज जी और खुद जनाब शिरीष जी की कविताओं से बिलकुल जुदा रंग. इस मायने में ये एक सरल कविता है और सरलता इसका गुण भी हो सकता और दोष भी. लेकिन इस परिदृश्य के कई दृश्य निश्चित रूप से दिलचस्प हैं....ख़ास कर दशहरा और बकरीद के आमने सामने होने पर उनकी मिटटी पलीद होने का. यह एक आवश्यक राजनीतिक बयान है इसलिए बहुत प्रभावशाली भी.

    इस पोस्ट पर पहली टिप्पणी करने का मौक़ा भी मुझे मिला है - आगे यह शायद बेहतर खुलेगी.

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  2. सही कहा. काफी बड़ा बयान है इस छोटे ( उम्र के लिहाज़ से ) कवि का . और पोज़ देखिए, कि कविता के अंत में कहने का मन होता - इरशाद!
    इस कविता को खुलने की ज़रूरत तो नहीं दिखती. खैर, अच्छी कविता का कोई भी पाठ अंतिम नहीं हो सकता.
    ऐसे कवि पुरस्कृत क्यों न हों !

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  3. अच्छे विसुअल्स हैं हरेप्रकाश की इस कविता में । बधाई ।

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  4. कुछ नहीं कह पाऊंगा ।

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  5. Hare bhai, is kavita ke bhahane aap se varshon baad fir mulakaat ho gayi, Facebook per aapka message nahi pad paya..., sunder kavita ke liye badai va subhkamnai. Shirishji aapka abhar.

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  6. maine shrish bhaiya ka yh sneh aaj dekha. sabko parnam! aashrvad dijiye aaplog mujhe

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