आज सुबह कविमित्र तुषार धवल ने दिलीप जी के न रहने का दुखद समाचार दिया। अनुनाद परिवार उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करता है। उनके निधन पर कवि पत्रकार राजकुमार केसवानी की बेहद भावशील त्वरित टिप्पणी आप उनके ब्लॉग पर यहाँ पढ़ सकते हैं। यहाँ प्रस्तुत है तुषार धवल द्वारा अनूदित उनकी एक कविता ..... कविताकोश से साभार।
धरती तेज़ी से अपनी स्मृति खोती जा रही है
और इसमें मैं अपनी स्मृतियों को खोता हुआ पाता हूँ
क्योंकि मैं बहुत पहले से जानता हूँ कि
स्मृति केवल आपराधिक ऐतिहासिक दस्तावेज़ नहीं है
स्मृतियाँ हैं जो लगातार आती हैं
जड़, तने और टहनियों से
और ज़िन्दा रहती हैं आसन्न भविष्य के बाद भी
स्मृतियाँ पुनर्सृष्ट होती उगती हैं
गढ़ती हैं अपना काम, पहचान और रूप
वे उस जीवन से ज्यादा अलग नहीं हैं जिसे हमने जाना है
घाव, उत्सव और
ज्ञान में उठते चक्र और भंवर
शून्यता के प्रति
अब मैं पाता हूँ कि यह धरती छोटी पड़ गई है
अपनी असंख्य और अकबकाई मनुष्यता के लिए
जहाँ हर कोई एक-दूसरे की जगह हड़प लेना चाहता है
और जगह बचती नहीं है किसी की स्मृतियों के लिए
ख़ुद स्मृति की भी नहीं।
और जब स्मृति खो जाती है
पागल हिंसाओं का युग आता है
भय की कोई स्मृति नहीं होती
घृणा की कोई स्मृति नहीं होती
अज्ञान की कोई स्मृति नहीं होती
एक बेलगाम हिंसक पशु अब संभावित ईश्वर नहीं रहा।
***
अनुवाद : तुषार धवल
आज ही उदय प्रकाश जी के ब्लॉग पर इनके निधन की खबर पढ़ी, दुख हुआ. आपने उनकी कविता पेश की तो उनको पढ़कर उनके बारे में तमाम बातें दिमाग़ में घूम गयी. निश्चय ही एक अच्छा कवि अब हमारे बीच नही रहा. लेकिन उनकी रचनायें हमेशा रहेंगी.
ReplyDeletebahut sunder rachana !!! hamari shradhanjaliyan !
ReplyDeleteभावपूर्ण श्रधांजली
ReplyDeleteमैंने दिलीप जो उनकी हिंदी में अनुदित रचनाओं से जाना है। मैं अपनी पसंद के कवियों का जिक्र करूं तो वे भी उनमें हैं। अपने प्रिय कवि के विदा हो जाने की खबर दुखद है भाई, मेरी विनम्र श्रद्धांजलि।
ReplyDeleteकवि को विनम्र श्रद्धांजलि।
ReplyDeleteऔर जब स्मृति खो जाती है, पागल हिंसाओं का युग आता है. .......
ReplyDeleteयाद पड़्ता है , शायद देवताले जी कह रहे थे अर्द्ध्सत्य वाली वह इंटेंस कविता चित्रे जी की रचना का अनुवाद था. शिरीष कृपया कंफर्म करेंगे, मेरे पास देवताले जी का नम्बर नहीं है.उन्हे कंडोलेंस भी भेजना था.