
यह कविता प्रतिलिपि में प्रकाशित हुई है तथा पिकासो की यह विख्यात पेंटिंग यहाँ से साभार !
एक बच्चा सड़क पर रोता-रोता जाता था
पीछे मुड़कर न देखता हुआ
उसकी माँ पहनावे से ग़रीब
उसके थोड़ा पीछे-पीछे आती थी
न बच्चे को रोकती थी
न ख़ुद रुकती थी
वो क्यों रोता था कोई नहीं जानता
वह क्यों उसे बिना चुप कराए
बिना ढाढ़स बँधाए उसके पीछे जाती थी
कोई नहीं जानता
मेरे लिए हर कहीं उठता था रूदन विकल
मानव-समूह में
हर तरफ़ से आती थी ऐसी ही आवाज़
मैं भी कहीं रोता हुआ जाता था
पर मेरे पीछे कोई नहीं आता था !
***
गहरे अर्थों की भावपूर्ण कविता है
ReplyDeleteपहले सोच में डुबाती है और फिर उदास कर देती है…
बहुत सुन्दर, सारगर्भित और भावमय रचना.
ReplyDeleteरूदन तभी सार्थक है
जब दिलासा की आहट मिले
बच्चे की तरह हम भी इसी आशा में रोते हैं कि कोई मां की तरह पीछे आये ।
ReplyDeleteये बीच मझदार में छोड़ने वाली कविता है... चरम पर जा कर ख़तम हो रही है...
ReplyDeleteहमारे समय में रोने के भी वर्गीय आयाम हैं. जटिल. गहरे.एक दुनिया है जिस में केवल बच्चों का ही रोना सुन पड़ता है. बड़ों का नहीं.वे रोते नहीं ?या उनका रोना ईथर की तरह इतना सूक्ष्म और ब्रह्माण्ड व्यापी है ki सुनाई दिखाई नहीं देता?लेकिन वे जरूर अपने रोते हुए बच्चों के पीछे पीछे होते हैं.और एक वह दुनिया है जिसे हम ज्यादा जानते हैं . यहाँ भी सब का अपना अपना रोना है , लेकिन उसे सुन ने वाला आगे पीछे कोई नहीं.कितने vikat हैं रोने के मायने हमारे समय में!
ReplyDeleteइस कविता को पढ़ते हुए असद जैदी की 'रो ना' की याद तो आती ही है , कबीर भी याद आते हैं-
ऐसा कोई ना मिले जा संग मिलिए लाग
सब जग जलता देखिया अपनी अपनी आग '{ठीक से याद भी है या नहीं?}
लेकिन इस कविता का अपना एक अलग लोक है. ठीक हमारे समय की विडंबनाओं से बना हुआ.
एक और अद्भुत कविता के लिए हमारी मुबारकबाद कबूल करें.
मनुष्यों के बीच इसी रिश्ते की ज़रूरत है शिरीष । अच्छी कविता ।
ReplyDeleteashutosh jee kabeer ne ye bhee kahaa thaa:
ReplyDeletekabira jab ham ham paidaa bhaye
jag hase ham roye...
इंसानियत का रुदन सुनाई दे रहा है आपकी कविता से . बहुत बधाई .
ReplyDeletebahut samvedansheel kavita. sari tippaniyon me meri hi baat hai- alag se kya likhoon. aapki pichhali kavita bhi bahut achchhee thi.
ReplyDeletebahut achchhi, maarmik kavitaa. is
ReplyDeletebaabat ashutosh kumar ji kee tippani se behtar kuchh kahne kee koshish karnaa himaaqat hogi.
---pankaj chaturvedi
kanpur