Friday, October 23, 2009
11 comments:
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प्रतिरोध की बहुत सुंदर ..कविता !! सर्वोत्तम साहित्य से नियमित मिलवाने का शुक्रिया !!
ReplyDeleteबहुत सुंदर और गहरी कविता।
ReplyDeleteवही कवितायेँ होनी चाहिए ,अब ...
ReplyDeleteअनुनाद पर आना सफल होता है सदा
यह कविता अंत में समझ में नहीं आयी! के समझाने की कृपा करेंगे ?
ReplyDeleteबहुत दिनो बाद पढ़ी लाल्टू जी की कविता । ये भी उन कवियों मे से है जिनका अभी सही मूल्यांकन होना शेष है । आभार ।
ReplyDeleteबढि़या कविता ।
ReplyDeleteबढि़या कविता ।
ReplyDelete''जिन्हें न जाने कब से हमने नही लिखा'' ...........जो अब तक पढ़ा नही गया उसे ही तो पढना है ......रुका है बहुत कुछ ,इसी इंतजार में .छोटी सी कविता बहुत बडे कैनवास के साथ आई है .......आभार .
ReplyDeleteआओ हम सब मिलकर बांटे
ReplyDeleteयह वक़्त की आवाज़ है शिरीष भाई
भारत भाई बहुत अच्छी कविता लगायी आपने. शरद कोकास जी ने सही कहा है कि लाल्टू का मूल्यांकन होना अभी शेष है - मेरा प्रस्ताव है कि वे या कोई और मित्र इस दिशा में पहल करें और अपना लेख अनुनाद को अवश्य भेजें. मैं ख़ुद भी कुछ लिख रहा हूँ.
ReplyDeletesundar!
ReplyDeleteइस कविता से प्रेरित हो कर मैं ने " कविताओं के बारे कविताएं " लिखी थी.
और ऐसे पर्चे बाक़ायदा बँटते थे.
4/3 , एम सी एम हॉल, पी यू 14 सेक्टर ....
सहगल जी के पास ऐसा ही एक पर्चा देखा था नाम याद नही, लेकिन उस मे लाल्टू, रुस्तम और सहगल की सुन्दर कविताएं थीं.
वह पर्चा मेरे लिए पवित्र था. आज भी है, स्मृतियों में .... ओ चण्डीगढ़ !