पक्षधरता
हम बारह राक्षस
कृतसंकल्प यज्ञ ध्यान और प्रार्थनाओं के ध्वंस के लिए
अपने समय के ऋषियों को भयभीत करेंगे हम
हमीं बनेंगे प्रतिनिधि सभी आसुरी प्रवृत्तियों के
`पुरुष सिंह दोउ वीर´ जब भी आएं, आएं ज़रूर
हम उनसे लड़ेंगे हार जाने के लिए, इस बात के विरोध में
कि असुर अब हारते नहीं
कूदेंगे उछलेंगे फिर फिर एकनिष्ठ लय में
जीतने के लिए नहीं, जीतने की आशंका-भर पैदा करने के लिए
सत्य के तीर आएं हमारे सीने प्रस्तुत हैं
जानते हैं हम विद्वान कहेंगे यह ठीक नहीं
`सुरों-असुरों का विभाजन
अब जटिल सवाल है´
नहीं सुनेंगे ऐसी बातें
ख़ुद मरकर न्याय के पक्ष में
हम ज़बरदस्त सरलीकरण करेंगे।
***
Sunday, October 18, 2009
व्योमेश शुक्ल की एक कविता
दीपावली के अगले दिन और हिंदी में मचे समकालीन हाहाकार के बीच मैं आपको हमारे समय के एक समर्थ युवा कवि व्योमेश शुक्ल की यह कविता पढ़वाना चाहता हूं। व्योमेश ने पिछले चार साल में अपने आगमन के साथ ही हिंदी समाज के बीच वह सम्मान और स्नेह अर्जित किया है, जिससे किसी नवतुरिया ही नहीं, बल्कि पुराने गाछ को भी ईर्ष्या हो सकती है। मेरे लिए व्योमेश की कविता का एक विशिष्ट सामाजिक मूल्य है, जिसे आप यहां दी जा रही कविता में आसानी से पहचानेंगे। कवि का पहला कविता संकलन भी कुछ समय पूर्व राजकमल प्रकाशन से आया है। आज की कविता की इस अनिवार्य किताब का मुखपृष्ठ नीचे दिया जा रहा है। व्योमेश को आगे होने वाली अत्यन्त उर्वर रचनायात्राओं के लिए हार्दिक शुभकामनाएं।
6 comments:
यहां तक आए हैं तो कृपया इस पृष्ठ पर अपनी राय से अवश्य अवगत करायें !
जो जी को लगती हो कहें, बस भाषा के न्यूनतम आदर्श का ख़याल रखें। अनुनाद की बेहतरी के लिए सुझाव भी दें और कुछ ग़लत लग रहा हो तो टिप्पणी के स्थान को शिकायत-पेटिका के रूप में इस्तेमाल करने से कभी न हिचकें। हमने टिप्पणी के लिए सभी विकल्प खुले रखे हैं, कोई एकाउंट न होने की स्थिति में अनाम में नीचे अपना नाम और स्थान अवश्य अंकित कर दें।
आपकी प्रतिक्रियाएं हमेशा ही अनुनाद को प्रेरित करती हैं, हम उनके लिए आभारी रहेगे।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
आप बहुत सौम्यता से सख़्त बात कह जाते हैं. यहाँ भी आपने यही किया है पर मैं अपनी बात भी कहना चाहूँगी - यह कविता और संकलन की ऐसी दस और कवितायें बहुत अच्छी हैं, लेकिन सभी के लिए यह निष्कर्ष नहीं दिया जा सकता. मुझे क्षमा करेंगें- यह संकलन मैने दो महीने पहले लिया - अच्छा भी है पर अनिवार्य किताब ! ज़रा खुद ही सोचिए ! आपके ब्लॉग से मैने कविता की तमीज़ सीखी है और आज आपसे ही यह बात कहते हुए शर्मिंदा भी हूँ पर यही मेरे दिल की बात है. आप सभी को दीपावली की बधाई. मैने आपको आर्कुट का निमंत्रण भेजा है, उम्मीद है स्वीकार करेंगे - अभी तक आपका रेस्पोन्स नहीं आया है पर मैं उमीद कर रही हूँ.
ReplyDeleteरागिनी आपकी टिप्पणी देखी. बहुत दिनों में दिखाई दी आप !
ReplyDeleteसबको अपनी धारणा बनाने का हक़ है - आपको भी. लेकिन आप अपनी धारणा कम से कम मुझ पर तो मत ही लादिए.
संतोष हुआ कि आप अनुनाद को कुछ श्रेय देती हैं.
व्योमेश जी को पढ़कर आनन्द आया. आपका आभार.
ReplyDeleteजीतने के लिए नही, जीतने की आशंका भर पैदा करने के लिए.........बहुत खूब !
ReplyDeleteव्योमेश की यह अच्छी कविता है " न्याय के पक्ष मे सरलीकरण " । बधाई ।
ReplyDeleteVyomesh ki rajnaitik samajh-samajik pratibaddhta kamal ki hai. Sangrah shandar hai.
ReplyDelete