ये अनुनाद की तीन सौवीं पोस्ट है और मुझे समझ में नहीं आ रहा कि क्या लगाऊं? सौवीं और दो सौवीं पोस्ट की तरह संगीत अपलोड करने का समय नहीं है इस बार मेरे पास, इसलिए ये सूखी सूखी कविता ही...........

आठ हज़ार प्रतिमाह पाने वाला एक आदमी किराने की दुकान पर उधारखाते में सामान लिखा रहा है
इस इतने लम्बे वाक्य का मुझे नहीं मालूम मैं क्या करूंगा
पता नहीं किस तरह इसे इतना छोटा करूं
कि यह शीर्षक लगे किसी कविता का
जबकि मेरे समय में आदमी के दुख और तकलीफ़ें अछोर है और एक जीवन ही है
जो उतना लम्बा नहीं
तब क्यों मैं अपने लिखे एक वाक्य को इतना छोटा करूं?
मैं भाषा से खेलना नहीं चाहता
सिर्फ उसे बरतना चाहता हूँ
जो आदमी सामान लिखा रहा है
मैं जानता हूँ कि उसके जीवन में पांच बरस पहले किसी दुर्घटना की तरह घटा प्रेम
वह परेशान हुआ
भाग जाना चाहा उसने
अपनी प्रेयसी से विवाह कर लेने से पहले वह
सिर्फ़ उसे ही प्यार करने के उसके झूट और रस्म अदायगी पर रोया
फूट-फूटकर
आज वह किराने की दुकान पर उधार की उम्मीद में खड़ा एक आदमी है
टूटी टहनियों वाले पत्रहीन पेड़ जैसा आदमी जो हवा चलने पर
समूचा ही चरर-मरर हिलता है
मुझे पता लगा वह पिता है तीन बरस की बेटी का
और उसकी अपनी भी कुछ ज़रूरतें हैं
वह महीने में एक दिन शराब पीना चाहता है माँस खाना चाहता है
एक मोटरसाइकिल भी लेना चाहता है ताकि काम पर जाते हुए टेढ़े-मेढ़े पहाड़ी रास्तों पर
बस में धक्के न खाने पड़ें
अपनी असफल प्रेयसी पत्नी को भी वह प्रेम करता है और उसके लिए उपहार में सोने का कोई ज़ेवर लाना चाहता है
अपनी नन्हीं बेटी को बड़े स्कूल में पढ़ाना और परी बनाना चाहता है
इस तरह वह हमारे समय के बाज़ार में जाना चाहता है
आठ हज़ार प्रतिमाह में महज कुछ ही दुकानें हैं जो उसे अपने आगे खड़ा होने देती हैं
और ऐसी दुकानें बाज़ार में नहीं मुहल्ले की तंग गलियों में हैं
उन्हीं में से एक के आगे वह खड़ा है और सामान लिखा रहा है
अपने सामने पड़े कोरे पन्ने पर अब मैं भले कविता न लिख पाऊँ
पर यह एक वाक्य ज़रूर लिखूंगा कि आठ हज़ार प्रतिमाह पानेवाला एक आदमी किराने की दुकान पर
उधारखाते में सामान लिखा रहा है !
2009 के इस मध्यकाल में चाहें तो आप देश के प्रधानमंत्री से पूछ सकते हैं
पर मेरा निवेदन है कि इस तरह की शुष्क भाषा के लिए मुझसे कुछ न पूछें !
कभी कविता का निष्फल या असफल हो जाना भी जीवन में मनुष्यता का आभास देता है।
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बहुत सुंदर,
ReplyDeleteअभी किसी अलग दुनिया में हूँ कल फिर से कोशिश करूँगा फिलहाल तो बधाई स्वीकारें.
तीसरा सैकड़ा पूरा करने की बधाई। लिखते चलें।
ReplyDelete.. शब्द शुष्क हैं ... पर कविता संवेदना में सनी हुई है इतनी गहरी संवेदना के लिए शब्द नहीं हैं आपको बधाई
ReplyDelete.. शब्द शुष्क हैं ... पर कविता संवेदना में सनी हुई है इतनी गहरी संवेदना के लिए शब्द नहीं हैं आपको बधाई
ReplyDeleteभाई शिरीष पहले तो 300 वी पोस्ट के लिये बधाई और कविता के लिये क्या कहूँ वह तो भेजा हिलाने वाली है ही . हाँ लम्बी पंक्ति के लिये क्या सोचना इसे संग्रह का शीर्षक बना दो तो विनोद जी का रिकार्ड टूट जायेगा - बस लिखते रहो-- शरद कोकास,दुर्ग
ReplyDeleteतीसरे शतक के लिए बधाई और अनेक शुभकामनाऐं.
ReplyDeleteबिज़ली चले गई इसलिए भाग रहा, आ कर टिप्पणी करता हूँ
ReplyDeleteबेहद संवेदनशील कविता।
ReplyDeleteमुझे लम्बे शीर्षक अच्छे लगते हैं. वक़्त कुछ ऐसा आया है कि छोटे शीर्षक नही चल सकते. यह मेंगोसिल का ज़माना है. सारी चीज़ें सिर मे इकट्ठा होती जा रही हैं. हमारे नायक का सिर बड़ा हो गया है. ज़ाहिर है कविता भी इस बीमारी कि चपेट में आ गई है.
ReplyDeleteबधाई. बड़े सिर वालो के लिए बड़ॆ सिर वाली इस अद्भुत कविता के लिए. कोई कविता निष्फल नही होती शिरीष ! हां वो खुलने मे अपना समय ज़रूर ले लेती है. 300 वीं पोस्ट की अलग से बधाई. अनुनाद का च्स्का सा लग गया है.
प्रिय अनुनाद की तीन सौवीं पोस्ट पर विराट अनुनाद परिवार ख़ुशी महसूस करता है.
ReplyDeleteकविता शब्दों की जगलरी में खुश हुए बिना ८००० में घर चलाने की जुगत करते और शेष रहे को उधारी खाते से समायोजित करते असंख्य लोगों के दुःख और संघर्ष के स्वरों से तादात्म्य स्थापित करती है....
शिरीष जी, अगस्त महीने में कम पोस्ट की शिकायत भी साथ में दर्ज करें.
शिरीष जी, जो लोग वापस आने का वादा करते हैं अक्सर नहीं आते. कल तीन सौवीं पोस्ट को देखते ही कविता और कविता के प्रयोजन पर बात करने वाले अनुनाद की दीर्घायु की कमाना वाली कोई टिप्पणी करना चाह रहा था. कर तो अब भी नहीं पाउँगा इसलिए संजय व्यास की टिप्पणी को मेरा समझ लिया जाये सिर्फ उनकी आखिरी पंक्ति को छोड़ के क्योंकि मांग के अनुरूप उत्पादन ना होने से वस्तुओं के दाम बढ़ जाते हैं कविताओं के नहीं. कविता तो अब भी अचीन्ही और उपेक्षित सी पड़ी है.
ReplyDeleteप्रिय संजय भाई,
ReplyDeleteअनुनाद पर अगस्त में कम पोस्ट आईं हैं. वजह कुछ व्यक्तिगत भी है - मैं अपने विश्वविद्यालय की परीक्षा समिति का सदस्य होने के कारण आजकल विलंब से संपन्न हुई परीक्षा के रिज़ल्ट निकालने में खपा हुआ हूँ और ज़्यादा पोस्ट के लिए सहलेखकों से उम्मीद कर रहा हूँ, पर हो सकता है उनकी भी अपनी व्यस्ततायें हों.
प्रिय किशोर भाई,
आप वादा करके लौटे, अच्छा लगा.
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दोस्तो आपकी टिप्पणियाँ मुझे आश्वस्त करने वाली हैं. धन्यवाद कहना नाकाफ़ी होगा, तब भी ......
शिरीष
तीन सौवीं पोस्ट की बधाई !
ReplyDeleteयह कविता कहाँ पढ़ी ? अभी हाल ही में ?
'लमही' में ..
मैं गलत तो नहीं हूँ..?
पुन: बधाई !
सफल कविता भला मनुष्यता का अहसास क्यूँ देने लगी? बधाइयाँ
ReplyDeleteतीन सौवी पोस्ट पर मुबारकबाद! उम्मीद है कि आप इसी तरह लिखते रहेंगे !
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