पाती

कोई देख नहीं रहा है
यहां आओ
यहां, दीवार से और सटकर
झांको इसकी दरार के अंदर
जो बनी हुई है ईंटों के बीचो-बीच :
एक खत !
इरादा
इतने सारे हैं
तुम्हारे नाम
जितने हैं दाँत
बार बार तुम्हें पुकारते मेरे मुंह में -
हर बार हर गीत में
उनको मिल जाते हैं
इन्हीं स्वरों के आरोह-अवरोह
जैसे मैं ख़ुद को ही पुकारूं
सब के बीच
तुम्हारे ही कई नामों से
उड़ान
परिंदा है
हवा का
और हवा है
परिंदे की
हवा ने
नहीं चाहा कभी
कि कब्ज़ा कर ले परिंदे पर
परिंदे ने नहीं चाहा कभी
कि बांध ले हवा को किसी खूंटे से
परिंदा है
हवा का
हवा है
परिंदे की -
और इन दोनों के साझे में है
उड़ान का निस्सीम विस्तार
अक्षत अखंड
प्रेम
अपनी लालिमा का शबाब ओढ़े
वो गुलाब
खिल रहा है डाल पर
क्या मजाल कि माली दे दे
ये ललछौंही
सौगात गुलाब को ...
और चाहे कितना भी जोर लगा ले अंधड़
छीन नहीं सकता
चिटके हुए गुलाब से
उसकी अरुणाभ लज्जा
सबसे बेख़बर खिल रहा है गुलाब
लाल लाल !
तुम और मैं
तुम रात की मानिंद हो -
जैसे बिलकुल यही रात
घुप्प काले लिबास में
लपेटे हुए अपना सारा बदन
छुपाने हैं तुम्हें अपने सूरज
छुपाने हैं तुम्हें अपने इंद्रधनुष
और बड़ा-सा रस से भरा सेब भी
मैं वक़्त की मानिंद हूं -
जैसे बिलकुल यही वक़्त
प्यार से फिरती हुई अंगुलियां रात के बदन पर
धीरे धीरे हटाते हुए
उसके लिबास की परतें
पहले एक
इसके बाद दूसरी
फिर एक और...
आहट
धरती डोल जाती है नींद में
पर अपनी जगह से खिसकता नहीं एक भी सामान
यहां तक कि एक पिद्दी-सर पंख भी ...
धधक उठती है ज्वाला नींद में
पर जलती नहीं कहीं एक भी चीज़
यहां तक कि मरियल-सी तीली माचिस की भी...
मैं मूंद लूंगी अपनी आंखें
और सोती रहूंगी बेख़बर गहरी नींद में
जब तक कि सुनाई न दे
तुम्हारे पैरों की आहट
बढ़ती हुई मेरी ओर
धीरे धीरे..
***
कुछ लोग महज़ "प्रेम के खयाल" से प्रेम करते हैं,जब कि कुछ वास्तविक चीज़ों से....यारी दूसरी तरह की इनसान लगती हैं. तभी ये खूब्सूरत कविताएं निकलीं !
ReplyDeleteइश्क़ -ए- हक़ीक़ी .
शुक्रिया याद्वेन्द्र जी.
शुक्रिया शिरीष.
शुक्रिया खुदा, तुम ने यारी जैसे लोग पैदा किए.
उड़ान..khaaskar bahut pasand aayii..
ReplyDeleteप्रेम के प्रतीक वही जो अब तक इस्तेमाल होते ए हैं,पर कविता एकदम ताज़ा. बहुत कुछ पहली बार सा!
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