Sunday, July 12, 2009

बाग़ीचे के सिपाही - मार्टिन एस्पादा की एक कविता


आज पाब्लो नेरुदा का जन्म-दिन है. मैं इसे कभी नहीं भूलता क्योंकि इसी दिन मेरी पत्नी का भी जन्म-दिन होता है. आज नेरुदा को याद करते हुए प्रस्तुत है मार्टिन एस्पादा की यह कविता.









बाग़ीचे के सिपाही
इएला नेग्रा, चीले, सितम्बर 1973

तख़्ता-पलट के बाद,
नेरुदा के बागीचे में एक रात
सिपाही नमूदार हुए,
पेड़ों से पूछ-ताछ करने के लिए लालटेनें उठाते,
ठोकरें खाकर पत्थरों को कोसते.
बेडरूम की खिड़की से देखे जाने पर वे
किनारों पर लूट मचाने के लिए
समंदर से लौटे,
डूब चुके जहाजों वाले मध्य-युगीन आक्रान्ताओं की तरह
लग सकते थे.

कवि मर रहा था;
कैंसर उनके शरीर के अन्दर से कौंध गया था
और शोलों से लड़ने के लिए
उन्हें छोड़ गया था बिस्तर पर.
इतने पर भी, जब लेफ्टिनेंट ने ऊपरी मंजिल पर धावा बोला,
नेरुदा ने उसका सामना किया और कहा:
यहाँ तुम्हें सिर्फ एक ही चीज़ से ख़तरा है: कविता से.
लेफ्टिनेंट ने अदब के साथ टोपी उतारकर
श्रीमान नेरुदा से माफ़ी माँगी
और सीढ़ियाँ उतरने लगा.
पेड़ों पर के लालटेन एक एक करके बुझते चले गए.

तीस सालों से
हम तलाश रहे हैं
कोई दूसरा मंतर
जो बागीचे से
सिपाहियों को ओझल कर दे.

*****

प्वेर्टो-रिकन मूल के अमेरिकी कवि मार्टिन एस्पादा 'उत्तरी अमेरिका के पाब्लो नेरुदा' कहे जाते हैं. स्पॅनिश में 'एस्पादा' का अर्थ होता है 'तलवार'. अपने नाम को सार्थक करते हुए एस्पादा एक 'फाइटर' हैं. उनका कवि नस्ली भेद-भाव के खिलाफ़, उत्पीड़न के खिलाफ़, साम्राज्यवाद के खिलाफ़ लगातार संघर्षरत है; और अमेरिकी समाज में हाशिये पर पड़े समुदायों के लिए सामाजिक न्याय की लड़ाई में उसकी पक्षधरता एकदम साफ़ है.
यह कविता इएला नेग्रा,चीले में स्थित पाब्लो नेरुदा के घर को 1973 में दी गई भेंट के दौरान लिखी गई थी और 2006 में प्रकाशित 'रिपब्लिक ऑफ़ पोएट्री' में संकलित है.

7 comments:

  1. bharat ji
    u always post lovely posts
    i highly admire ur selections

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  2. ओह! मेरे प्रिय कवि पाब्लो नेरुदा का जन्मदिन...याद दिलाने का शुक्रिया! आज का दिन पाब्लो के नाम.

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  3. ek vishwakavi ko sharaddhanjali dene ke liye is se behtar guldasta aur kya ho sakta tha mitr....aap chamakdar duniya ke andheri galiyon me ummeed ke aise heeron ko hamtak pahuchate rahen....aapki patni ke swasth,sukhad aur sarthak bhavishya ke liye shubh kamnayen

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  4. Thank you very much for translating the poem and posting it on Neruda's birthday. This is my first translation into Hindi. May there be many more!

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