
एक तारवाद्य कुछ बोलता है और कुछ बोलने से आवाज़ होती है
उस आवाज़ में तारामंडलों जैसी कुछ संरचनाएँ हैं
उनमें कुछ सुर दिखाई देते हैं
सुरों का तो काम ही है बोलना
उस आवाज़ में तारामंडलों जैसी कुछ संरचनाएँ हैं
उनमें कुछ सुर दिखाई देते हैं
सुरों का तो काम ही है बोलना
वो बोलते हैं कि हमें एक चेहरे की तरह देखो
हमें एक नाम की तरह पुकारो
मैं पुकारता हूँ - माझ खम्माज !
मैं पुकारता हूँ - हेम विहाग !
मैं पुकारता हूँ - सिंधी भैरवी !
सुरों के सवेरे में एक साँवला आदमी
धीरे-धीरे कहीं जाता दीखता है
उसे पुकारो तो वह पलटकर देखता और धीरे से मुस्कुराता है
और अपने सधे हुए हाथ हिलाता है !
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कुछ देर पहले टी.वी. पर यह दुखद समाचार देखा. नेट पर आई तो यहाँ यह सादा काव्यात्मक श्रद्धांजलि देखी. मेरा भी नमन.
ReplyDeleteनमन
ReplyDeleteसुरों के आशियाने से
ReplyDeleteएक पछी ने ली परवाज़
अनंत की ओर....
दुनियावी कारोबार तो
चलता रहेगा बदस्तूर
पर कल भोर बेला में
भैरवी कैसे चहकेगी ?
sunder kavyanjali!
ReplyDeletebehad achchhe kavita hai - utna hee upayaukt tribute.
ReplyDeletedil ko chhu lene wali kavita. Ustaad ko salam
ReplyDelete"उसे पुकारो तो वह पलटकर देखता और धीरे से मुस्कुराता है !"
ReplyDeleteना जाने कितने अपने जाने वाले याद दिला दिए आपने ! वैसे आपने कहना ठीक नहीं - तुमने कहना चाहिए तुम्हें पर ......
एक विलक्षण संगीतकार का जाना- दुखद है ! आपकी कविता ने बताया कि आपको संगीत की समझ है !
ReplyDelete------- सुब्रतो विश्वास
अरबसागर पार
आप जो माझ खंमाज, हेम विहाग और सिंधी भैरवी का नाम ले रहे हैं - उस कंसर्ट में रविशंकर और अल्लारक्खा भी शामिल हैं उनका भी नाम लेते तो अच्छा लगता था. दो कैसेट हैं.
ReplyDelete-------सुब्रतो विश्वास
सुब्रतो जी आप अरब सागर पार से आए, शुक्रिया! मैने आज ही ब्लॉग के टिप्पणी बॉक्स को सबके लिए खोला है. पहले कुछ अभद्र टिप्पणियों के चलते गूगल यूज़र तक ही सीमित रखा था. आपकी टिप्पणी से लगा कि खोल कर अच्छा किया. आप जिस कंसर्ट की बात कर रहे हैं बिल्कुल उसी कंसर्ट की स्मृति कविता में है. मेरे पास इसकी मूल रिकार्डिंग है जो मेरे बहुत प्रिय और आदरणीय दिवंगत मित्र अरुण बनर्जी मुझे दे गये ! 8 अक्तूबर 1972 को न्यूयार्क के फिलहारमॉनिक हाल में हुआ कंसर्ट लाइव मेरे पास है - सोच कर रोमांच होता है... तब मैं दुनियानशीं नहीं हुआ था ! अनुनाद पर आने का शुक्रिया.
ReplyDeleteउस्ताद को आपकी विलक्षण काव्यांजलि के ज़रिये हमारा भी नमन. उस्ताद ने कई साल जोधपुर की आत्मा को अपने सुरों से समृद्ध किया है.
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