अनुनाद

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पंकज चतुर्वेदी की कुछ और कवितायें …

यहाँ पंकज चतुर्वेदी की तीन कवितायें और प्रस्तुत हैं। हिंदी के कुछ समकालीन कवि( अग्रज भी और हमउम्र भी) उन्हें महज एक महत्वपूर्ण युवा आलोचक मानने में अपनी सुविधा समझते हैं, लेकिन इस सुविधा के थोपे हुए दायरे में भी देखें तब भी देखने वाली बात है कि बेहद सहज दिखाई देनेवाली उनकी अत्यन्त मूल्यवान कविता उनके आलोचन का कितना अद्भुत और महत्वपूर्ण विस्तार है !




सरकारी हिन्दी

डिल्लू बापू पंडित थे
बिना वैसी पढ़ाई के

जीवन में एक ही श्लोक
उन्होंने जाना
वह भी आधा
उसका भी वे
अशुद्ध उच्चारण करते थे

यानी `त्वमेव माता चपिता त्वमेव
त्वमेव बन्धुश चसखा त्वमेव´

इसके बाद वे कहते
कि आगे तो आप जानते ही हैं
गोया जो सब जानते हों
उसे जानने और जनाने में
कौन-सी अक़्लमंदी है ?

इसलिए इसी अल्प-पाठ के सहारे
उन्होंने सारे अनुष्ठान कराये

एक दिन किसी ने उनसे कहा :
बापू, संस्कृत में भूख को
क्षुधा कहते हैं

डिल्लू बापू पंडित थे
तो वैद्य भी उन्हें होना ही था

नाड़ी देखने के लिए वे
रोगी की पूरी कलाई को
अपने हाथ में कसकर थामते
आँखें बन्द कर
मुँह ऊपर को उठाये रहते

फिर थोड़ा रुककर
रोग के लक्षण जानने के सिलसिले में
जो पहला प्रश्न वे करते
वह भाषा में
संस्कृत के प्रयोग का
एक विरल उदाहरण है

यानी `पुत्तू ! क्षुधा की भूख
लगती है क्या ?´

बाद में यही
सरकारी हिन्दी हो गयी

आम

रसाल है रामचरित
और रसाल है
अवधी में उसका विन्यास

भक्ति का रस
और काव्य का रस
जानने में
शायद इससे भी मदद मिले
कि कौन-सा आम
खाते थे तुलसीदास

आते हैं
जाते हुए उसने कहा
कि आते हैं

तभी मुझे दिखा
सुबह के आसमान में
हँसिये के आकार का चन्द्रमा

जैसे वह जाते हुए कह रहा हो
कि आते हैं

0 thoughts on “पंकज चतुर्वेदी की कुछ और कवितायें …”

  1. शिरीष जी,

    श्री पंकज जी चतुर्वेदी की बेहतरीन कवितायें पढवाने के लिये आपका शुक्रिया।

    पंडित डिल्लू बापू के माध्यम से आज के दौर पर करारा व्यंग्य करती रचना मोह लेती है।

    सादर,

    मुकेश कुमार तिवारी

  2. पंकज जी की उम्दा कवितायें हर बार. वे कवि ज़्यादा अच्छे हैं या आलोचक – आप ही बताइए !

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